“पिंक सिटी, जयपुर, वहाँ की सभी इमारतें, घर और बिल्डिंग सब पिंक कलर के। यह तो पुराना आईडिया है, सब जानते हैं। फिर नया क्या है, वहाँ के बादल, पेड़-पौधे पिंक, लेक का पानी पिंक, हाँ, यह सही है। वहाँ के लोगों की ड्रेसज पिंक। नहीं, यह बोरिंग है, कॉमन है। जो चीज़ सोची नहीं जा सकती कि वह पिंक हो या वह होनी चाहिए जैसे, लोगों की बात। हाँ यह ठीक है।
बिल्डिंग्स और लोगों के कपड़ों पर कैमरा का कलर मुख्य नहीं होगा। बाकी बैकग्राउंड सीन धुँधला होगा। पिंक प्रसिद्ध होगा। सीन को एक के बाद एक फास्ट ट्रैक पर रखना होगा, फिर लेक पर लास्ट सीन होगा जिसमें फोकस लेक और लेक पर ही मौजूद महल होगा। बैक ग्राउंड में पूरा जयपुर दिखेगा।
अब बैक ग्राउंड म्यूजिक कैसा हो? ट्रेडिशनल, इंडियन फोक या वेस्टर्न म्यूजिक शायद तीनों का मेल होना चाहिए, क्योंकि हमें नेशनल, इन्टरनेशनल सभी को यह एड दिखाना है। जयपुर को अपने इंडिया में भी पॉपुलर करना है और इन्टरनेशनली भी।“
“अनु क्या सोच रहे हो? देखो, तुम्हारी कॉफी ठंडी हो गई है। अब गरम कर लाऊँ क्या?” अनु की मम्मी ने उसके कमरे में आकर जब उसे सोच में डूबा हुआ देखा तो वह उससे बोली। अनु अकसर अपने ख्यालों में खो जाता था, खासकर पढ़ाई करते समय।
अनु की बारहवीं क्लास के बोर्ड की परीक्षा शुरू होने वाली थी। सात दिन के बाद उसका साइंस का पहला पेपर था। उसने अपने पापा, मम्मी के कहने पर साइंस सब्जेक्ट ली थी लेकिन उसे अपने सब्जेक्ट पसंद नहीं थे और इसलिए समझ नहीं आते थे। साइंस तो वह किसी तरह से पढ़ लेती थी लेकिन मैथ्स समझ ही नहीं आती थी। कई बार उसने यह बात पापा, मम्मी को बताई भी थी लेकिन वह लोग उसे समझा बुझा कर मना लेते कि कुछ साल मेहनत कर लो फिर तो जिंदगी भर आराम रहेगा। अनु को भी लगता कि उनकी बात सही है लेकिन जब पढ़ने बैठती तो परेशान हो जाती। मन लगता ही नहीं था बल्कि पढ़ते समय उसका मन एड फिल्में बनाने की ओर मुड़ जाता। अनु के मामा जब से कैमरा गिफ्ट कर गए थे, उसका फोटोग्राफी का शौक बहुत बढ़ गया था। बचपन से ही उसे प्रकृति के सुंदर दृश्य ने बहुत प्रभावित करते थे। कई दृश्य उसके दिमाग में बसे हुए थे। उसे उन दृश्यों में कोई कहानी छुपी हुई लगती। इस बारे में उसने कई बार अपनी मम्मी को बताया। वह उसकी बातों को सुनती तो थी पर कभी समझ न सकी कि इन बातों का क्या मतलब है।
अनु जब अपने दोस्तों को यह बताता तो वह भी उसकी बात सुनते तो थे, पर फिर जल्दी ही विषय बदल देते। कई बच्चे उसका मज़ाक भी उड़ाते। क्लास में भी जब टीचर पढ़ाती तो वह अपने ध्यान में मगन हो जाता और टीचर क्या पढ़ा रही है उसे सुनाई ही नहीं पढ़ता। इस कारण क्लास में भी डाँट पड़ती रहती।
“कॉफी बहुत गरम थी इसलिए अभी तक नहीं पी थी।” यह कहकर अनु पूरा कप एक बार में ही पी गया और खाली कप मम्मी की ओर बढ़ा दिया।
“तैयारी कैसी चल रही है?”
“ठीक चल रही है मम्मी।”
“बस कुछ ही दिनों की बात है। फिर आराम करना,“ मम्मी बोली। उनकी आवाज़ में परेशानी साफ नज़र आ रही थी कि वह अपने बच्चे के भविष्य को लेकर कितनी चिंतित है।
अनु भी मम्मी को देखकर थोड़ा सहम गया। उसे लगा कि अभी तो झूठ बोल दिया लेकिन जब रिजल्ट आयेगा तो वह क्या कहेगा और पापा मम्मी जो उससे इतनी उम्मीदे लगाए हैं उन्हें कितना दुख होगा।
उसने अब मन में ठान लिया था कि चाहे जो भी अब वह कुछ और नहीं सोचेगी और ध्यान से बस पढ़ाई ही करेगी। उसने पुस्तक खोल ली और अपने फोन पर गाने लगा दिये ताकि उसका मन कहीं भटक न जाए।
कुछ देर पढ़ने के बाद उसकी फेवरेट फिल्म ‘कोई मिल गया’ का गाना ‘जादू’ बजने लगा और अनु अपने फिजिक्स के विषय से निकलकर ‘जादू’ के पास पहुँच गया।
‘एलियन’ एक अनोखा पात्र है जो सहीं ढंग से दिखाया जाये तो हमेशा लोगों के जहन में याद रहता है।
पिंक सिटी में घूमता एक एलियन बहुत जल्दी प्रसिद्ध हो जाएगा। एलियन की ड्रेस पिंक कलर की होगी, ‘येस!’ यह सोचते हुए वह बहुत खुश हो गया। अपनी मुट्ठी बंद कर के उसने तेजी से टेबल पर मारा।
आवाज़ इतनी तेज़ आई कि मम्मी भागती हुई आई,
“क्या हुआ? बड़ी ज़ोर से आवाज़ आई।”
“कुछ नहीं मम्मी एक मच्छर था, उसे मार रहा था।”
“आल आउट जला देती हूँ। बहुत मच्छर हो गए हैं। पढ़ाई में डिस्टर्ब कर देते हैं,” मम्मी बातों बातों में हर बार, पढ़ाई करना है यह याद दिलाना नहीं भूलती।
एक हफ्ता बीत गया, फिजिक्स का पेपर हो गया। अनु को यह विश्वास था कि वह इस पेपर में पास हो जाएगा लेकिन केवल पास होगा मम्मी-पापा के लिए काफी नहीं था उन्हें तो अच्छी परसेंटेज चाहिए थी। वह सबजेक्ट पता नहीं क्यों बनाया था। समझ ही नहीं आता था। कितना भी याद रखने की कोशिश करो, भूल जाता था। पुस्तक खोली तो देखा कि सभी चैप्टर बड़े अंजाने से लग रहे थे। उसने ध्यान लगा कर पढ़ने की कोशिश की फिर भी उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे कुछ याद ही नहीं आ रहा। उसने अपने दोस्त अरनव को फोन किया और उससे यह बात बताई तो अरनव बोला,
“अनु, ऐसा हम सबको लगता है कि याद नहीं है लेकिन ऐसा होता नहीं हैं। परीक्षा फोबिया है यह। तुम घबराओ नहीं, रिविज़न करो। पेपर जब मिलेगा तो सब कुछ याद आ जाएगा।”
अरनव की बात सुनकर कुछ राहत मिली और उसने फिर पढ़ना शुरू किया। लेकिन एक दिन निकल गया। केवल दो चैप्टर का रिविज़न ही हो पाया। दरअसल उसे पूरा फिर से समझ कर पढ़ना ही पड़ा क्योंकि उसे कुछ याद नहीं आ रहा था। अब दस चैप्टर बचे थे और केवल एक ही दिन बचा था। टेंशन बहुत बढ़ गया। पापा, मम्मी से कहने का कोई फायदा नहीं था। वह लोग परेशान हो जाएँगे और फिर डाटेंगे भी। उसके सबजेक्ट अगर इकानोमिक्स या पोलटिकल साइंस होते तो वह पढ़ सकता था। उनमें अनु को रुची थी। दसवीं कक्षा पास करने के बाद उसने हयूमैनिटीस लेने को कहा था लेकिन घर में किसी ने उसकी बात सुनी ही नहीं। उसे इंजीनियर जो बनाना था।
केमिस्ट्री में पास होना मुश्किल लग रहा था। जैसे-जैसे समय बीत रहा था, अनु की टेंशन बढ़ता जा रही थी। फेल हो गया तो क्या होगा। सभी दोस्तों ने ठीक से पढ़ाई की होगी वह सब अच्छे नंबर से पास हो जाएँगे। मेरे पापा, मम्मी कितना दुखी हो जाएँगे। उनको मुझसे कितनी उम्मीद थी। इंजीनियर बनाना चाह रहे थे। लेकिन इंजीनियर बनकर वह करेगा क्या। इंजीनियर का काम उसे बिलकुल पसंद नहीं था। जिस काम को करना अच्छा ही नहीं लगता उस काम को वह क्यों करे। पैरेंटस की इच्छा पूरी करने के लीए वह क्यूँ रोये, ऐसा क्यों करे। अपने पसंद का काम करने से क्या पैरेंटस खुश नहीं होंगे। क्या मैं उन्हें समझा नहीं सकता कि मुझे एड फिल्म बनानी हैं। यह सही है कि समझा नहीं सकता लेकिन कोशिश तो कर ही सकता हूँ। वह समझ गए तो ठीक, नहीं तो मुझे उनका गुस्सा, शिकायत को समझाना-बुझाना और इन सब का सामना करना होगा। यह सब तो मैं सह लूँगा लेकिन उनका दुख मुझसे नहीं देखा जाएगा। मम्मी का तो दिल टूट जाएगा। लेकिन मैं उनको एक अच्छा एड फिल्म प्रोड्यूसर बनकर दिखाऊँगा।
यह सोचते हुए कब अनु को नींद आ गई, पता ही नहीं चला। सुबह जब पाँच बजे का अलार्म बजा, तब जाकर नींद खुली। पेपर साढ़े सात बजे का था। मम्मी ने उठकर चाय बनाकर दी और नाश्ता तैयार करने किचेन में चली गई। परीक्षा सेंटर में पहुँचने के लिए घर से सात बजे निकलना था। पापा ने गाड़ी निकाल ली थी।
पापा, अनु के कमरे में देखने के लिए आए कि वह तैयार हुआ कि नहीं। अनु तैयार था, बिलकुल तैयार। उसने मम्मी को भी बुला लिया फिर, पापा और मम्मी को बैठने को कहा और खुद भी अपनी सीट पर बैठ गया।
“क्या बात है बेटा? क्या कोई परेशानी है?” पापा ने असमंजस से पूछा। मम्मी भी परेशान दिख रही थी। तरह-तरह के सवाल मन में आ रहे थे। कहीं पढ़ाई पूरी तो नहीं हो पाई है। तबीयत तो नहीं खराब है। किसी बच्चे ने तो कुछ कह तो नहीं दिया। अगर फेल हो गया तो…..
“मम्मी, पापा, मुझे कुछ कहना है। आप लोग शांति से सुनिएगा और समझदारी से डिसीजन लीजिएगा। मैं अपनी परेशानी आप को बताने जा रहा हूँ। मैं इस पढ़ाई से तंग आ गया हूँ। यह साइंस के सबजेक्ट मुझे समझ ही नहीं आते। मैथ्स करते समय मेरी धड़कने बढ़ जाती हैं।
नहीं हो रहा है मुझसे। बहुत कोशिश करता हूँ लेकिन दिमाग लगता ही नहीं। मैं परीक्षा में लिखूंगा क्या, कुछ आता ही नहीं। फेल होने से अच्छा है कि मैं परीक्षा छोड़ दूँ। और फिर अगले साल मैं अपनी पसंद के सबजेक्ट लेकर फिर परीक्षा दूँ। हो सकता है कि तब मैं अच्छा परसेंटेज ला सकूँ।“
पापा, मम्मी सन्नाटे में आ गए थे। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोले। मम्मी के तो आँसू बहने लगे थे। उनकी सारी उम्मीदें आँसूओं के साथ बहती जा रही थी। उनका अपने बेटे को इंजीनियर देखने का सपना चूर-चूर हो गया था। वह सबको क्या जवाब देंगी कि अनु ने क्यों एग्जाम छोड़ दिया। क्या होगा मेरे बेटे का भविष्य?
“यह सब क्या कह रहे हो अनु और वह भी अभी?” पापा ने पूछा। उनके माथे पर पसीने की बूंदे आ गई थी,
“पापा मैंने पहले भी कहा था कि मुझे साइंस साइड नहीं लेनी है।”
“हाँ, कहा था लेकिन फिर ले क्यों ली? पहले ही मना कर देते तो साल न बर्बाद होता।” पापा की आवाज़, में तल्खी थी।
“यह गलती हो गई मुझसे। मुझे उसी समय कह देना चाहिए था।”
“अब क्या करना है?”
“पापा मैं एड फिल्म की पप्रोडक्शन कंपनी बनाना चाहता हूँ। मुझे एड फिल्म बनाने का शौक है और विश्वास है कि मैं बहुत अच्छे एडस बना सकता हूँ। मैं इसी लाइन में काम करना चाहता हूँ।
“एड फिल्म? यह क्या होता है, तुम्हारे दिमाग में यह कैसे आया?” पापा ने डांटते हुए पूछा,
“पापा, एड फिल्म जो टीवी या मूवी के समय देखते हैं। प्रोडक्ट के प्रमोशन के लिए जो फिल्म बनती है, वही एड फिल्म होती है और मैं भी वही फिल्म बनाना चाहता हूँ। मुझे अब यही शौक है।” अनु बोला
“पापा-मम्मी, मुझे विश्वास है कि मैं बहुत अच्छी फिल्म बना पाऊँगा। आप लोग मेरा विश्वास करिये।”
“आजतक कितनी फिल्में बनाई हैं तुमने? और कैसे मान लें कि तुम अच्छी फिल्म बनाओगे और सफल होगे? पापा बोले
“पापा, अभी बनाई नहीं हैं, लेकिन मैं अच्छी बनाऊँगा। और पापा, अगर अच्छी नहीं भी बनी तो भी मेरा मन बनाने का है।”
“जिस लाइन को हम जानते नहीं और तुम भी नहीं जानते, उसमें भेजकर तुम्हारे भविष्य के साथ खेल नहीं सकते। यह सब चीज़े दूर से अच्छी लग सकती हैं लेकिन इनमें सफल होना बहुत मुश्किल होता है। तुम्हें शौक है तो अपने शौक के लिए कभी कोई फिल्म बना लेना लेकिन पढ़ाई बीच में छोडकर नहीं, मम्मी ने सख्ती से कहा।
“तुम्हारी मम्मी ठीक कह रही हैं, चलो अब एग्जाम देने चलो नहीं तो देर हो जाएगी। यह सब बातें एग्जाम के बाद करेंगे।” पापा कुर्सी से खड़े होते हुए बोले। मम्मी भी उठ गई और बोली,
“जाओ बेटा, पेपर ठीक से करना।”
“पापा-मम्मी, मैं एग्जाम देने नहीं जा रहा हूँ। मेरी तैयारी नहीं हैं। मैं दूसरे सबजेक्टस लेकर अगले साल ही एग्जाम दूँगा। आई एम सॉरी।” यह कहकर वह चुप हो गया।
अनू ने जो तय किया था वह पापा मम्मी को बता दिया था, अब फिर भी अगर वह उसकी परेशानी नहीं समझ पा रहे और उससे वह काम कराना चाह रहे हैं जिसे वह नहीं कर सकता तो इसमें गलती पापा मम्मी की है। शायद वह अनू को समझ नहीं पा रहे हैं कोई बात नहीं उन्हें थोड़ा समय देना पड़ेगा। कभी-कभी माँ बाप और बच्चों को एक दूसरे का रोल निभाना पड़ता है।