“बच गए यार, नहीं तो गए थे आज,” बाइक को रोड किनारे लगाकर, अर्जुन वहीं फुटपाथ पर बैठ गए। सारा शरीर काँप रहा था। आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया था। सर मे खून का दौरा रुक सा गया था और दिल ज़ोर से धडक रहा था। सांस लेना भी भारी हो रहा था।
““तू ठीक तो है? संभाल अपने आप को। कहीं चोट तो नहीं आई?” पुलकित भी अपनी बाइक को किनारे रोक कर अर्जुन के पास आ गया। अर्जुन को ध्यान से चेक किया कि कहीं चोट तो नहीं आई।
““थैंक गॉड! चोट तो नहीं लगा तुझे। अब परेशान न हो। मै घर पर फोन कर देता हूँ, गाड़ी आ जाएगी तो चलकर तुझे डॉक्टर को दिखा दूँगा,” पुलकित बोला और पॉकेट से अपना फोन निकालने लगा।
“नहीं-नहीं फोन नहीं करना। घर पर किसी को नहीं बताना। बहुत डांट पड़ेगी। पापा, मम्मी, दीदी; सभी तेज चलाने से मना करते है। गलती मेरी है।” इतना कहकर अर्जुन चुप हो गया। उसका दिल अभी तक ज़ोर से धडक रहा था। कितनी बड़ी दुर्घटना हो सकती थी,बाल-बाल बच गया। इतनी तेज स्पीड थी कि स्पीड ब्रेकर दिखा ही नहीं, और बाइक टकरा कर उछल गयी, सामने से आ रही कार ने अगर समय पर ब्रेक न लगाया होता तो वह कार से टकरा कर नीचे गिर जाता और लेफ्ट से आ रहे ट्रक के नीचे आ जाता। एक ही पल में क्या से क्या हो गया होता। यह ख्याल आते ही वह सर पकड़ कर बैठ गया।
““परेशान नहीं हो अर्जुन। कभी-कभी ऐसा हो जाता है। तुम्हें कोई चोट नहीं आई है लेकिन अब घर कैसे जाओगे?”
“कुछ देर रुक जाओ, फिर चलते हैं। प्लीज घर में किसी को न बताना। वैसे ही वह लोग बहुत डरते है और परेशान हो जाएँगे।”
“ठीक है, नहीं बताऊंगा। तुम थोड़ी देर आराम कर लो। मैं तुम्हारे लिए जूस लाता हूँ।” सामने जूस वाले की ओर इशारा करते हुए पुलकित बोला।
कुछ देर बाद जब अर्जुन बेहतर महसूस करने लगा तो वह दोनों उठे और बाइक स्टार्ट करके घर की ओर चल दिये। पुलकित और अर्जुन का घर पास-पास ही है और वे दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ रहे थे लेकिन कोर्स अलग होने के कारण, दोनों के कॉलेज जाने का समय अलग-अलग था। आज बाय चांस उनकी छुट्टी एक साथ ही हुई तो उनका घर लौटने के पहले बर्गर खाने का प्रोग्राम बन गया तो वह मार्केट चले गए फिर वहीं से एक दूसरे रास्ते से घर लौट रहे थे। बाइक की स्पीड तेज होने के कारण स्पीड ब्रेकर दिखाई नहीं पड़ा और यह हादसा हो गया।
अर्जुन के पापा, मम्मी दोनों का उसे बाइक देने का मन नहीं था, फिर जब अर्जुन ने जिद की तो वह लोग राजी हो गए लेकिन समझाते रहे कि अर्जुन बाइक को धीरे और संभल कर चलाएगा।
पहले तो अर्जुन ने सब बातें मान ली लेकिन बाद में उसे अपने दोस्तों के साथ तेज चलाने में मजा आने लगा। अक्सर उन लोगों की रेस हो जाती।
अर्जुन और पुलकित जब घर पहुंचे तो कुछ लड़को को बंगला नंबर चार के सामने खड़ा देखा। वह सब आपस में कुछ बात कर रहे थे। इस तरह से उनका खड़ा होना, अजीब लग रहा था।
““कुछ खास बात होगी, चलकर पूछना चाहिए।” दोनों ने एक दूसरे को देखा और बाइक से उतर कर उस तरफ बढ़े।
“यहाँ कैसे खड़े हो?” पुलकित ने गौरव से पूछा। गौरव, नीरज, समीर सभी पुलकित और अर्जुन के बचपन के दोस्त थे जो एक ही गली में रहते थे।
इसी गली में बंगला नंबर चार, जिसमें एक अंकल रहते हैं, वहाँ उनके अलावा कोई और नहीं दिखता था, अगर कोई और आता तो बस दूधवाला, पेपरवाला, कामवाला लड़का और कभी-कभी प्रेसवाला। इलेक्ट्रिशियन और प्लमबर भी कभी-कभी दिखाई पड़ जाते। पता नहीं उनकीं क्या कहानी थी कि न तो उनके घर में कोई और रह्ता था और न ही कभी कोई रिश्तेदार आता था।
दोस्त के नाम पर जरूर दो-तीन-लोग कभी-कभी उनसे मिलने आते थे। ऑफिस जाने के अलावा उनका सारा समय घर गृहस्थी करने में और बगीचे की देखभाल में निकल जाता। कभी-कभी उनके घर से गिटार की आवाज सुनाई पड़ती थी। वह कई गानो की धुन बजाते, जिस गाने को वह सबसे ज्यादा बजाते थे, वह था;
“जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मक़ाम, वह फिर नहीं आते, वह फिर नहीं आते।”
गाने में अजीब सा दर्द महसूस होता था।
उनकी नेम प्लेट पर, ‘स्वामी नाथन’ लिखा था लेकिन गली के सभी बच्चे पहले उन्हें लंगड़े अंकल कहकर बुलाते थे। उन्हे शायद अपने इस नाम से कोई परेशानी नहीं थी, वह बच्चों से हमेशा मुस्करा के ही बात करते थे। कुछ टेढ़ा होकर चलते, क्योंकि उनके दोनों पैरो में तकलीफ थी।
“अंकल को हार्ट अटैक हुआ है। थोड़ी देर पहले ही उन्हें देखकर, डॉक्टर गये हैं।” गौरव ने जवाब दिया।
“कैसी तबीयत हैं अभी?” पुलकित ने पूछा।
“हार्ट अटैक?” अर्जुन ने आश्चर्य से पूछा। अभी कुछ दिनों पहले उसके दादा जी को हार्ट अटैक हुआ था तो उसके पापा, दादा जी को फौरन हॉस्पिटल ले गए थे।
“हार्ट अटैक में तो तुरंत हॉस्पिटल ले जाते हैं। वह घर पर कैसे है? उन्हे एंबुलेंस से, डॉक्टर के पास जाना चाहिए था।” इतनी देर में अपने साथ हुई घटना को भूल गया था।
““चलो, अंदर चलकर देखते हैं,” अर्जुन बोला।
““क्या कोई उनकीं देखभाल करने वाला होगा?” पुलकित बोला।
“मुझे तो नहीं लगता कि कोई हैं। केवल उनका नौकर हैं साथ में,” गौरव बोला।
सभी लोग घंटी बजाकर अंदर चले गए। घर में केवल अंकल और उनका नौकर रवि था। लड़को को देखकर स्वामी नाथन जो लेटे थे, उठकर बैठे गये और अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ बोले,
“आओ-आओ बच्चों! यहाँ बैठो,” सामने पड़े हुए दीवान की तरफ इशारा करते हुए वह बोले। घर बहुत ही साधारण था लेकिन सुव्यवस्थित लग रहा था। सभी समान करीने से रखा था।
“कॉलेज “से आ रहे हो तुम लोग?”
“जी अभी कॉलेज से लौटे तो पता चला कि आपको हार्ट अटैक आया है। इसी कारण हम लोग आपसे मिलने आए है। जरूरत हो तो हम लोग आपको हॉस्पिटल ले चले,” पुलकित बोला। पता नहीं क्यों उसे आज अंकल को देखकर कर दया आ रहा था। बेचारे इस अवस्था में भी बिलकुल अकेले बैठे थे। उनके पास घर का कोई सदस्य नहीं था। पहले कितनी बार वह लोग उनका मज़ाक बना चुके थे, अब उन्हें बहुत ग्लानि हो रही थी।
“नहीं-नहीं बेटा, मुझे हार्ट अटैक नहीं आया था, बस एंजाइना पेन हुआ था।” उसके लिए कल टेस्ट हो गया था, डॉक्टर ने दवा दे दी हैं और आराम करने को कहा है। बस वही कर रहा हूँ। यह रवि मेरा पूरा ध्यान रख रहा है।
“तुम लोग मेरे लिये आए, इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!’ बहुत अच्छा लगा तुम्हें देखकर।”
“धन्यवाद की कोई बात नहीं है अंकल। हमें लगा कि हार्ट अटैक है इसलिए हम सब घबरा गए थे।” अर्जुन बोला।
अंकल ठीक हैं, यह जानकार सभी लड़को ने राहत महसूस की। फिर सभी ने एक दूसरे को जाने की इशारा किया और चलने की सोची।
स्वामी नाथन उनके इशारे की भाषा समझ गए और बोले, “अभी बैठो बच्चो,” फिर अपने नौकर रवि को देखकर बोले,
“जाओ कुछ नाश्ता लेकर आओ। यह बच्चे पहली बार घर आए हैं।”
“आपको अगर किसी चीज की जरूरत हो तो हमको बता दीजिएगा, कॉलेज के बाद हम लोग फ्री होते हैं,” पुलकित बोला और अपना फोन नंबर उन्हे दे दिया।
“थैंक्यू बच्चों! तुम लोगो का इतना प्यार देखकर बहुत अच्छा लगा। बहुत अच्छे बच्चे हो तुम सब,” यह कहकर अंकल की आंखो में आँसू आ गये।
“एक बात पूँछू अंकल, आप बुरा मत मानियेगा। हम लोग अक्सर आपके बारे में बात करते है कि आप बिलकुल अकेले रहते हैं। कभी आपकी फैमिली नहीं दिखी।” अर्जुन ने हिम्मत करके पूछा।”
‘मेरी फैमिली,’ यह कहकर अंकल सोच में पड़ गये फिर बोले,
“कोई नहीं है मेरा या यूँ कहो कि मुझे कोई अपना नहीं मानता।”
“ऐसा क्यों? आपकी फेमिली अपको मिस नहीं करते? कौन-कौन हैं आपकी फैमिली में?”
“पहले सभी थे, मेरे पापा, मम्मी, बड़ा भाई और भाभी। जब मैं कॉलेज में था तो मेरे बहुत सारे दोस्त थे और एक खास दोस्त थी, सुंगंधा।” सुंगंधा, नाम लेते ही आँखों में एक चमक आ गई, लेकिन अगले ही पल वह मुस्कान किसी छुपे हुए गहरे दुख से ढक गई।
“किस कॉलेज में थे आप?”
“मैं असम के एक कॉलेज में पढ़ता था। मेरे पापा की नौकरी भी वहां थी इसलिए हमारा बचपन असम में ही बीता।
“फिर आप यहाँ महाराष्ट्र में कैसे आ गये?”
“नौकरी और किस्मत यहाँ ले आई, फिर कुछ देर रुककर वह बोले,
“जानना चाहोगे कि कैसे यहाँ आया।”
यह बात सुनकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि अंकल उन लोंगो से इतना मुखर क्यो हो रहे हैं। फिर सोचा कि शायद वह किसी से ज्यादा बात नहीं कर पाते है इसलिए बताना चाह रहे होंगे।
“हाँ! अंकल हम आपके बारे में जानना चाहेंगे और वह सुंगंधा कौन थी?
“मै उस समय इंजीनियरिंग कर रहा था। सेकंड ईयर में था, वह मेरे बैच में पढ़ती थी। कॉलेज की सबसे सुंदर लड़की थी। भगवान ने उसे सर्वगुण सम्पन्न बनाया था। रंग-रूप, व्यवहार, कला में निपुण और पढ़ने मे तो वह गोल्ड मेडलिस्ट रही थी। पूरा कॉलेज उससे प्रभावित था। लेकिन पता नहीं मेरा भाग्य अच्छा था या बुरा, उसे मैं पसंद आ गया। मेरी तो दुनिया ही बादल गयी थी। उसकी फैमिली को भी मै ठीक लागने लगा था। सुंगंधा को अपनी बहू के रूप में स्वीकार करना, मेरी फैमिली के लिए एक खुश्किस्मती की बात थी।
“मैंने और सुंगंधा ने तय किया था कि शादी के बाद हिमांचल के एक गाँव में रहेंगे। उसे पहाड़ बहुत पसंद थे। हमने वहाँ एक फैक्ट्री बनाने का प्लान किया और उसकी सारी रूप रेखा तैयार कर ली थी। उसका सपना था कि घर ऐसी पहाड़ी पर हो जिसकी छत से चारों तरफ पहाड़ की चोटियाँ दिखे और सुबह-सुबह उन पहाड़ियों के पीछे से सूरज उगता देख सके।”
फिर कुछ देर बाद रुकने के बाद बोले,
“लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। हम लोग उस समय फ़ोर्थ ईयर में थे। शादी तय हो चुकी थी, कुछ दिनो के बाद मंगनी की रस्म होनी थी। मैं बहुत उत्साह में था, उसे हीरे की अंगूठी देना चाहता था। उसके मना करने पर भी मैं उसे शहर के सबसे बड़े ज्वेलर्स के शो रूम ले जा रहा था। वह बार-बार मुझे बाइक धीरे चलाने के लिए बोल रही थी लेकिन मैं कितना एक्सपर्ट हूँ, यह दिखने के लिए मैं स्पीड बढ़ाता ही जा रहा था। सड़क बिलकुल खाली थी इसलिए तेज चलाने मे मजा आ रहा था,थोड़ी देर के बाद उसने मना करना बंद कर दिया, शायद उसे यकीन हो गया था कि मैं मानने वाला नहीं हूँ।
फिर वह मनहूस क्षण आ गया जिसकी वजह से मेरी ज़िंदगी की रंगीन किताब रंगहीन बन गया। अचानक बाइक टकराकर इतनी ज़ोर से उछली कि बाइक से मेरी पकड़ छुट गई और मैं जमीन पर आ गिरा और बाइक मेरे दोनों पैरो पर गिर गई। मैं वही बेहोश हो गया और जब होश आया तो खुद को हॉस्पिटल में पाया। मेरे दोनों पैरो में मल्टीपल फ्रेक्चर हो गया था। एक हाथ की भी हड्डी टूट गई थी। बाकी कुछ खरोंचे आई थी। होश आते ही मैंने सुंगंधा के बारे मे पूछा। पता चला कि उसको कहीं भी चोट नहीं आई, कोई फ्रेक्चर भी नहीं हुआ लेकिन वह कोमा में चली गई थी। उसके माँ-बाप बहुत दुखी थे, उनकी इतनी होनहार बेटी का भविष्य अंधकारमय हो गया था। मैंने जब कहा कि मैं हमेशा उसका ध्यान रखूँगा तो उसके माँ-बाप का जवाब आया,
“सुंगंधा को भूल जाओ, अब हम जिंदगी भर तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहते। मेरी बेटी का जीवन खराब कर दिया, अब क्या उसका ध्यान रखोगे।”
“मेरे घरवाले भी मुझसे नाराज हो गए थे और मैं हर तरफ से टूट गया था तो यहाँ आकर नौकरी कर ली।”
यह कहकर अंकल चुप हो गए। उनके चेहरे से साफ लग रहा था कि वह जख्म उनका आज तक भी भरा नहीं था।
“अंकल, फिर सुंगंधा आंटी का क्या हुआ?”अर्जुन ने पूछा।
“तीन साल बाद वह कोमा से बाहर आ पायी थी, उस एक्सीडेंट से उसकी याददाश्त काफी हद तक चली गई थी। पहले तो उसे अपने घरवाले भी याद नहीं थे फिर बाद मेँ वह सबको वह पहचानने लगी और कुछ याद भी वापस आ गयी लेकिन मुझे भूल गई थी। पता नहीं यह सच था कि नहीं, उसके घर वालों ने मुझे उससे कभी मिलने ही नहीं दिया और बाद मेँ उसकी शादी एक बहुत बड़े खानदान में करवा दी।”
““ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ। आपके घरवालों ने सुगंधा के घरवालों को समझाने की कोशिश नहीं की?”
“मेरे पापा, मम्मी की जल्दी ही मृत्यु हो गई और मेरे बड़े भाई की पत्नी यानि मेरी भाभी ने मेरे अपाहिज होने की वजह से मुझसे किनारा कर लिया। भाई का कभी-कभी फोन आ जाता है और साल दो साल में कभी वह मुझसे मिलने आ जाते है।”
माहौल काफी भारी हो गया था। सभी लड़को को अंकल के लिए बहुत अफसोस हो रहा था।
“चुप्पी तोड़ते हुए अर्जुन ने पूछा, “अंकल, वह एक्सीडेंट हुआ कैसे था?”
“तेज स्पीड के कारण मैं स्पीड ब्रेकर नहीं देख पाया, उसी से टकरा गया।”
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