बनी खरगोश की दादी माँ की सूझबूझ।

खरगोश और ईस्टर अंडा
बनी खरगोश और दादी माँ

Synopsis

बात बिल्कुल साफ थी बच्चों को अच्छा बढ़िया खाना चाहिए था जो उनकी रूटीन से अलग हटके हो।

आज बनी खरगोश (rabbit) बहुत खुश था, बात ही कुछ ऐसी थी।

1 साल  के बाद उसकी दादी माँ (grandmother )आ रही थी और वह भी केवल 15 दिन के लिए।

पिछले साल वह केवल 8 दिनों के लिए ही रही थीं। दादा जी कहीं भी आते- जाते नहीं थे इसलिए दादी को अकेले ही आना पड़ता था।

दादाजी मनाली में रहते थे और वह वहां के एक प्रसिद्ध डॉक्टर थे और हर समय मरीजों से ही घिरे रहते थे।

यही कारण था कि वह कहीं जा नहीं पाते थे।

बनी खरगोश कभी-कभी अपने मम्मी पापा के साथ मनाली छुट्टियां बिताने जाता रहता था।

बनी को मनाली में रहना बहुत पसंद था वहां का ठंडा मौसम और पहाड़ों की सुंदरता उसे बहुत भाती थी।

यहां दिल्ली में तो बहुत गर्मी पड़ती है इसलिए दादी भी अक्टूबर में ही आती थी ताकि मौसम ज्यादा गर्म ना हो।

“मम्मी  मैं आज स्कूल नहीं जाऊंगा, दादी माँ अब बस आने वाली होंगी ” बनी खरगोश ने सुबह उठते ही फैसला सुना दिया।

“नहीं बेटा स्कूल चले जाओ वरना दादी नाराज हो जाएंगी, उन्हें स्कूल से छुट्टी करने वाले बच्चे पसंद नहीं है”- बनी की मम्मी ने समझाया।

” नहीं मम्मी दादी नाराज नहीं होती हैं, वह हमेशा प्यार ही करती हैं”। बनी ने कहा

“हां तुम्हें करती हैं” – लेकिन यह कहते-कहते मम्मी चुप हो गई

“लेकिन क्या मम्मी ? आज मुझे नहीं जाना है ।”

“बनी बेटा इतनी भी ज़िद मत करो, स्कूल जाओ वहां से आ जाओगे तो दादी के साथ बाहर घूमने चलेंगे”-  बहुत देर तक समझाने बुझाने के बाद बनी मान गया और स्कूल जाने को तैयार हो गया । स्कूल में पूरे दिन वह यही सोचता रहा कि पता नहीं दादी मेरे लिए मनाली से क्या लेकर आएंगी?

उसे घर पहुंचने की जल्दी थी छुट्टी के बाद वह तेजी से घर की तरफ चल दिया। चूंकि दादी आ चुकी थी , घर के अंदर आवाज सुनाई पड़ रही थी, दादी से मिलते ही बनी उनसे लिपट गया।

लेकिन यह क्या दादी के चेहरे से आश्चर्यचकित होने वाले भाव को देखकर मम्मी अंदर भाग गई कि अब दादी के तीखे शब्दों को सुनना ही पड़ेगा।

“क्या हो गया है बनी को पिछले साल तक यह बिल्कुल ठीक था? अब कैसा हो गया ” – दादी ने बनी की मम्मी को देखकर लगभग चिल्लाते हुए कहा ।

बात और बढ़ जाती अगर बनी के पापा बीच में आकर बातचीत को दूसरी दिशा में मोड़ देते हैं।

दादी को मन में यह चिंता सताने लगी कि एक साल में बनी खरगोश इतना मोटा कैसे हो गया?

उन्होंने देखा की बनी की मम्मी घर में अच्छा खाना बनाती हैं और पौष्टिक भी होता है।

“पौष्टिक और अच्छा खाना बनाते हैं और बनी को वही खिलाते हैं। कभी कोई चीज बाहर कि नहीं आती, जो भी खाना है वह घर पर ही बनाते हैं।

“बनी भी बहुत नहीं खाता है और घर के बने खाने को भी टिफिन में भी लेकर जाता है तो फिर उस का वजन इतना बढ़ कैसे गया जरूर कोई खास बात होगी जो अभी तक समझ में नहीं आई है।”

डॉक्टर की पत्नी होने के नाते बनी की दादी को बनी की बहुत चिंता हो रही थी कि इतनी छोटी उम्र में इसका वजन इतना बढ़ गया है। जो उसके स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नहीं है। तो यह जानना बहुत जरूरी है कि बनी ऐसा क्या खा रहा है जिसके कारण से उसका वजन इतना बढ़ता जा रहा है।


एक दिन सुबह जब बनी स्कूल जा रहा था तो दादी ने बनी की मम्मी को पॉकेट मनी देते हुए देखा।

दादी को यह मामला पूरी तरह से समझने में देर नहीं लगी कि कहां पर गड़बड़ हो रही है।

बनी के स्कूल जाने के बाद वह थोड़ी देर में बाजार जाने के बहाने से घर से निकल गई और सीधा स्कूल के सामने जाकर एक दुकान के पीछे बैठ गई।

आधे दिन की छुट्टी होने के बाद बच्चे बाहर निकले तो दादी की नजर बनी पर पड़ी वह अपने दोस्तों के साथ बातें करते हुए उस दुकान की तरफ आ रहा था दादी ने अपने आप को संभाला और थोड़ा और छुप कर बैठ गई कि कहीं बनी की नजर उन पर ना पड़ जाए ।

बनी अपने दोस्तों के साथ आया और उसने कोला और चिप्स के पैकेट खरीदे और लेकर स्कूल के अंदर चला गया।
देखते देखते पूरी कोला और चिप्स के पैकेट साफ हो गए थे।

सभी बच्चे वही खा रहे थे।
दादी अगले दिन 4 दिन लगातार स्कूल गई और यही कार्यक्रम चलता रहा अब दादी को यकीन हो गया था कि बनी के वजन बढ़ने का कारण क्या है उनको अपने आप पर कोफ्त हुई कि वह अपनी बहू पर चला दी थी जबकि उनकी बहू की कोई गलती नहीं थी।

हां गलती यह थी कि पॉकेट मनी के पैसे देने के बाद यह ध्यान नहीं रखा की बनी उसे कहां खर्च कर रहा है यह जाना बहुत जरूरी है बच्चे दिए गए पैसे वह किस चीज पर खर्च कर रहे हैं।

दादी ने निश्चय किया कि अगले रविवार को सबके साथ बैठकर एक बात करेंगी और शायद उसी से इस समस्या का कोई हल निकल आएगा।

रविवार को दादी और बनी के पापा मम्मी की एक मीटिंग हुई जिसमें उन्होंने आपस में इस विषय पर बात करके कुछ तय किया मीटिंग के बाद सब के चेहरे पर एक खुशी की चमक दिखाई पड़ रही थी।

अगले दिन बनी के स्कूल जाने के बाद बनी की दादी, मम्मी और पापा तीनों तैयार होकर बनी के स्कूल प्रिंसिपल से मिलने गए और उनसे अपनी जो युक्ति  सोची थी उसके बारे में  प्रिंसिपल से बात की।

प्रिंसिपल ने तुरंत ही अपने स्कूल के कई सीनियर टीचर्स को बुलाकर इस बात के बारे में अवगत कराया और जब सबकी सहमति हो गई तो निश्चित हुआ कि वह इवेंट किस दिन रखें।

अगले दिन बनी जब स्कूल के लिए तैयार हो रहा था तो उसने देखा कि उसकी मम्मी और दादी दोनों ने मनाली से आए हुए ढेर सारे एप्पल  धोकर छील रहे हैं।

उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतने सारे एप्पल का क्या बनने जा रहा है?

दादी से पूछा तो उन्होंने हंसते हुए बताया कि बनी “तुम्हें एक सरप्राइज मिलेगा।

बनी की मम्मी और दादी दोनों उसको देख कर मुस्कुरा रही थी।

बनी को कुछ समझ नहीं आया कि सरप्राइस क्या हो सकता है?

उसी समय  स्कूल की बस आ गई, तो वह तुरंत ही चला गया।
बनी स्कूल पहुंचा तो उसको स्कूल में कुछ दूसरा ही माहौल दिख रहा था चारों तरफ रंग बिरंगे बैलून टंगे थे कुछ टेबल बाहर गार्डन में लगी हुई थी उसको लग गया था कि आज कुछ स्पेशल होने जा रहा है, लेकिन क्या यह नहीं समझ आ रहा था।

वह अपने क्लासरूम चला गया और पढ़ाई शुरू होते ही वह सब कुछ भूल गया।

इंटरवल होते ही बच्चों ने अपने-अपने टिफिन निकालकर गार्डन की तरफ भागे।

गार्डन पहुंचे तो वहां का नजारा कुछ अलग ही था वह कभी सोच भी नहीं सकते थे कि गार्डन इतना सुंदरता से सजाया जा सकता है चारों तरफ रंग-बिरंगे फूलों, टॉयज और बैलून से सजाया हुआ था।

टेबल पर तरह-तरह का खाना सजा हुआ था और बच्चों की ही मम्मी टेबल के पीछे खड़े हुए थे तभी उसकी नजर अपनी मम्मी और दादी पर भी पड़ी
‘ओह तो यह बात है! यही मम्मी और दादी ने मुझे बताया नहीं था सी सरप्राइस की बात कर रही थी।’

दौड़ता हुआ बनी उस टेबल पर गया तो दादी ने उसको प्यार से गले लगा लिया,’

यह देखो तुम्हारे लिए क्या लाए हैं।

बनी में देखा उसमें फेवरेट एप्पल पाई था।

गार्डन में तरह-तरह की खुशबू आ रही थी किसी टेबल पर मिल्कशेक था कहीं पर चॉकलेट मिल्कशेक था कहीं मांगों मिल्कशे था।

उसके बनी के फ्रेंड की मम्मी कोल्ड कॉफी लाई थी किसी टेबल पर लस्सी भी बच्चों को समझ नहीं आ रहा था कि यह अचानक क्या हो गया।

बच्चे अपने-अपने फेवरेट ड्रिंक ले रहे थे एप्पल पाई का मजा ले रहे थे एक टेबल पर घर की बनी आलू चिप्स रखे थे।

वाओ, बढ़िया कुरकुरे मसालेदार चिप्स वह भी घर के बने हुए बच्चों ने ऐसा चिप्स कभी खाया ही नहीं था।

सभी मदर्स बच्चों को देखने थी कि कोई भी उस दिन बाहर का कोला और बाहर के चिप्स खाने नहीं गया।

सब ने वहीं पर कॉफी लस्सी चिप्स और एप्पल पाई का मजा लिया एक बात बिल्कुल साफ थी बच्चों को अच्छा बढ़िया खाना चाहिए था जो उनकी रूटीन से अलग हटके हो वह चाहे वह घर का हो या बाहर का।

उनको तो अच्छे टेस्टी खाने से मतलब था।

मम्मी को यह बात अच्छी तरह से समझ में आ गई थी कि बच्चों को बाहर के खाने से कैसे रोका जा सकता है।

प्रिंसिपल ने इस बात पर बनी की दादी के साथ सहमति की कि अब आगे से स्कूल में है बच्चों के लिए इस तरह की कोई ड्राइंग चिप्स या अच्छी चीजें स्कूल ही प्रोवाइड करेगा जो कि हेल्थी तरीके से बना होगा और बच्चों को टेस्टी भी लगेगा।

बनी और उसके फ्रेंड्स की धीरे-धीरे कोला पीने की आदत बिल्कुल खत्म हो गई ।

क्योंकि उसको स्कूल में ही बनाई हुई हेल्दी ड्रिंक्स और स्नैक्स मिलने लगे।

घर में भी मम्मी उसके लिए टेस्टी और हेल्दी ड्रिंक्स बनाने लगी।

बनी की दादी की युक्ति का कमाल यह हुआ कि अगले साल जब आए, तब तक बनी का सारा एक्स्ट्रा वजन घट चुका था वह उसने एथलेटिक्स में भी हिस्सा लेना शुरू कर दिया था।

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Anshu Shrivastava

Anshu Shrivastava

मेरा नाम अंशु श्रीवास्तव है, मैं ब्लॉग वेबसाइट hindi.parentingbyanshu.com की संस्थापक हूँ।
वेबसाइट पर ब्लॉग और पाठ्यक्रम माता-पिता और शिक्षकों को पालन-पोषण पर पाठ प्रदान करते हैं कि उन्हें बच्चों की परवरिश कैसे करनी चाहिए, खासकर उनके किशोरावस्था में।

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