“याद है सुमन?”
“हाँ याद है, पहली बार सारा बेसन जल गया था और हम दोनों को बहुत डांट पड़ी थी,” सुमन ने कहा और दिव्या को गले लगा लिया,
“दिव्या, तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई और सच में सुमन बहुत खुश थी, तो वह लड्डू तो रखे ही होंगे, अरे उन्हें कैसे भूल गया मैं?” दिव्या ने इतने प्यार से दिए थे, देखे तो कैसे बने है। वैसे सुमन से अच्छे तो नहीं बने होंगे। पर वह रखे कहाँ है? शर्मा जी ने अँधेरे में अलमारी, अटैची, मेज़ सब जगह देखा लेकिन कहीं मिले ही नहीं।
सुमन की यह आदत उन्हें बहुत बुरी लगती है। खाने की चीज़े छुपा देती है, घर में भी अक्सर फ्रीज और अलमारी में ताला लगा देती है, चाबी भी कहाँ रखती है पता नहीं कितना भी ढूंढो मिलती ही नहीं। पिछली बार घर में काजू की बर्फी बनायीं, फिर वहीं ताला लगा दिया अलमारी में। शर्मा जी ठहरे होशियार, एक दिन जब घर में कोई नहीं था, सब पड़ोस में कीर्तन में गए थे तो एक चाबी बनवाने वाले को पकड़ लाये और उनसे एक नकली चाबी बनवा ली। फिर तो वो सिकंदर हो गए। खूब बर्फियां खायी और डिब्बा वैसे ही बंद कर के अलमारी में रख देते थे और ताला बंद कर देते थे। दो-तीन दिन तक तो सुमन को पता ही नहीं चला, पर शक जरूर हो रहा था कि बर्फी इतनी कम कैसे हो रही है और तो और शर्मा जी ज्यादा लेने की जिद्द भी नहीं करते हैं। वह जितनी देती है वह बस उतनी ही खा लेते हैं।
पता तब चला जब शर्मा जी का पेट बुरी तरह से खराब हो गया। डॉक्टर ने जोर देके पूछा कि क्या खाया था। फिर न बताने पर ऑपरेशन का डर दिखाया, ऑपरेशन के नाम से वह सब कुछ सच-सच बता गये। सुमन ने तो सिर पिट लिया और आगे से उसने मिठाई या नाश्ता बनाने को मना कर दिया। शर्मा जी ने बहुत कस्में खाई कि अब वह आगे से ऐसी हरकत बिलकुल नहीं करेगें पर सुमन को विश्वास नहीं हुआ क्योंकि ऐसी कस्में वह बहुत खाया करते थे। काफी दिन इलाज चला, डॉक्टर ने बताया कि उनका लिवर बढ़ गया है अगर ठीक से परहेज नहीं किया तो खाना पीना बंद हो जायेगा।
बेचारे शर्मा जी डर गए और कई दिन सादा खाना खाया। फिर कुछ दिन बाद दीवाली थी। खुद के घर में मिठाई नहीं बनी, लेकिन मिलने वाले से क्या कहें। शर्माजी के मिलने वाले मिठाई ही लाये, मना करते-करते भी तीन किलो बढ़िया मिठाई के डब्बे आ गए थे। अब वह क्या करते, शर्मा जी ने एक डिब्बे का पैकेट खोला ही था कि सुमन तमतमाती हुई आई और सारी मिठाई के डिब्बों को पड़ोसियों और अपने भाईयों के यहाँ भिजवा दिया। बहुत गुस्सा आया शर्मा जी को और दो-तीन दिन तक सुमन से ठीक से बात तक नहीं की। पड़ोसियों और अपने सालों को खूब कोसा और उनके पेट खराब हो ऐसी बद्दुआ तक दे डाली।
काफी देर तक लड्डू ढूढ़ने के बाद शर्मा जी थक कर बैठ गए। सभी जगह देख लिया था, पर कही नहीं मिला। उन्हें विश्वास तो था कि लड्डू आये तो थे कमरे तक और अलमारी में रख दिए थे। ऐसा तो नहीं कि चोरी हो गए हो कमरे से। पर फिर सोचा कि ऐसा तो नहीं हो सकता। यहाँ और सब कुछ छोड़कर चोर केवल लड्डू ही क्यों चुराएगा और अगर चुराया है तो वो बहुत शातिर चोर होगा। उन्हें चोर पर बहुत गुस्सा आया, चुराना ही था तो तौलिया या चप्पल चुरा लेता, लड्डू ही चुराया जिसकी शर्मा जी को सख्त जरूरत थी। अब तक तो उन्हें बहुत जोर कि भूख लगने लगी थी। जब न रहा गया तो उन्होंने सुमन को जगा दिया,
“क्या हुआ?’ आपको नींद नहीं आ रही?” सुमन उठी और घड़ी में देखा रात के 1:30 बजे थे।
“अरे रात के 1:30 बज रहे हैं। क्या बात है आप परेशान दिख रहे हैं। तबियत तो ठीक है ना।” सुमन ने घबराते हुए पूछा।
“हाँ तबियत तो ठीक है।” शर्मा जी इस समय लड्डू के बारे में पूछने में झिझक रहे थे। इसलिए बोले, तुम सो जाओ।
“क्या बात है!” सुमन ने सहज होते हुए पूछा।
“अब आप बता ही दीजिये, क्या बात है। अब मुझे भी बिना जाने नींद नहीं आयेगी।” यह कहकर सुमन गौर से शर्मा जी को देखने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा है कि शर्मा जी को आखिर परेशानी क्या है। तबियत तो ठीक ही लग रही थी पर चेहरे से कुछ परेशानी झलक रही थी।
“भूख लग रही है, जोर से,” शर्मा जी ने सुमन की तरफ देखते हुए बोले। बेचारे झेंप रहे थे।
सुमन कुछ देर के लिए उन्हें देखती रही, फिर एकाएक बहुत जोर से हँस पड़ी। उसकी हँसी रुक ही नहीं रही थी।
शर्मा जी चुपचाप बैठे देखते रहे, क्या करते पर मन में सोच रहे थे, लड्डू के बारे में खुद कैसे बताये, सुमन हँसेगी और कहेगी कि मुझे लड्डू खाना है इसलिए मुझे नींद नहीं आ रही है।
“आपको भूख लगी है, मुझे मालूम था कि आज रात को आपको भूख जरूर लगेगी,” फिर हँसते हुए उसने तकिये के नीचे से लड्डू का डिब्बा निकाल कर शर्मा जी को दे दिया। फिर हँसी रोकते हुए बोली,
“खा लीजिये और हाँ दो-तीन से ज्यादा मत खाना,” शर्मा जी को भूख तो ज्यादा की थी पर उन्होंने दो ही लड्डू खाए और पानी पी कर सो गए। अगले दिन शादी में शामिल हो कर वह अपने शहर लौट आए।