रक्षाबंधन Rakshabandhan
जिंदगी की रफ्तार में मैं कहीं जा रही थी।
तभी एक लम्हे ने पुकारा, सुनो, जरा ठहरो
चौकं कर मैं ठहर गई, तो उसने पूछा,
इतनी जल्दी में कहां भागी जा रही हो?
फिर एक पल आह भर के वह बोला,
वैसे तुम पहली हो जो मेरे बुलाने पर रुक गई,
यहां तो सब भागते हैं, ठहरता कोई नहीं।
मैं बोली, कल (Rakshabandhan ) रक्षाबंधन है राखी लेने जा रही हूं,
भाई और भाभी की कलाई में प्यार बांधने जा रही हूं।
यह बात सुनकर वह लम्हा मुस्कुराया
और फिर खूब जोर से खिलखिलाया,
अब मेरी दोबारा चौंकने की थी बारी,
कहा मैंने मुझे समझ में न आयी हँसी तुम्हारी,
मुझे देख वह थमा और फिर बोला,
अरे नादान! राखी तो तुम्हारे पास ही है
बाजार में कौन सी राखी लेने जा रही हो?
राखी कौन सी है मेरे पास? मैं बोली,
पहेली मत बुझाओ,साफ-साफ बताओ,
मुस्कुराता लम्हा अब संजीदा हो गया, बोला
सरगम, लय, ताल से संगीत तब बनता है,
जब फनकार अपने स्वर उसमें लगाता है।
वैसे ही प्रेम की भावना को स्वर जब मिल जाते हैं,
प्यार के बंधन आप ही राखी बन जाते हैं।
आज बेजुबान रेशम के धागों को अपनी जुबान दे दो
अपने स्नेह का इजहार “लव यू भैया” से कर दो
बेमोल ये राखी “लव यू भैया” बड़ी अनमोल है,
भाई बहन के रिश्ते को बनाती खुशियों की डोर है।
यह बात कहकर वह लम्हा कहीं खो गया,
और एक इस पल में यह अनमोल सीख मुझे दे गया।
रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जिसमें भाई बहन भले ही एक दूसरे से दूर हो लेकिन दिल में कभी दूर नहीं होते।
इस त्यौहार मैं अपने भाई बहनों को याद करते हुए मैं अपने मन के विचार व्यक्त कर रही हूं ।
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