मुझे इंदिरा से मिलने पृथ्वी थिएटर जाना था। मन में बहुत उत्सुकता थी कि इंदिरा ने पृथ्वी थिएटर में बैठक की योजना क्यों बनाई थी। ये मेंरे घर से लगभग बीस किलोमीटर दूर हैं, इसलिए मैं वहां समय से पहुँचने के लिए दो बजे निकली। पृथ्वी थिएटर उन जगहों में से एक हैं जहां मैं बार-बार जाना पसंद करती हूँI मुझे थिएटर के बाहर कैफेटेरिया में बैठना बहुत अच्छा लगता हैं।
कभी-कभी कुछ मशहूर हस्तियों को भी वहाँ आते-जाते देखा जा सकता हैं।
उस दिन मैं वहां 2:30 बजे पहुंची । वहां उस दिन सामान्य से ज्यादा भीड़ थी। उनमें से कुछ संगीत उपकरण लिए हुए थे।
“क्या वहां एक संगीत कार्यक्रम चल रहा था?’ मैंने सोचा और सीधे डिस्प्ले बोर्ड पर देखने चली गई कि अगला कार्यक्रम कौन सा हैं। वहा किसी जगदीश ओंकार नाथ का एक अंग्रेजी नाटक था।
“मैंने सोचा शायद वह दल इंग्लैंड से भारत के दौरे पर आया हो ।”
सामने कोने की तरफ एक पेड़ की छाव के नीचे मुझे एक टेबल खाली दिख गई। मैं इंदिरा का इंतजार करने के लिए वहां बैठ गई। कुछ समय बाद मैंने इंदिरा की एक झलक देखी जो जल्दी में थिएटर की तरफ जा रही थी।
“मुझे यकीन था कि वो इंदिरा थी। लेकिन वो अंदर क्या कर रही थी।” इस बात को इंदिरा ही बता सकती थी।
कुछ देर में कुछ को छोडकर बाकी अंग्रेज़ थिएटर के अंदर चले गए। शायद जो बाहर रह गए थे वे महज़ दर्शक ही थे।
इंदिरा 3:15 बजे मेंरे पास आई।
“ओह!” माफ करना मुझे। तुम्हे इतने लंबे समय के लिए इंतज़ार करना पड़ा। असल में, मैं तैयारियों में जाँन की मदद कर रही थी। मैं इस ग्रुप के सभी सदस्यों को इकट्ठा कर रही थी कि वह समय पर यहा पहुँच जाएं। यह ग्रुप कल ही लंदन से आया हैं। अब, चूँकि सभी आ चुके हैं, तो मैं यहाँ तुम्हारे सामने हूँ।” इंदिरा ने तेजी से कहा।
“कोई बात नहीं इंदिरा! मैं ठीक हूँ,” मैंने कहाI इंदिरा अपनी सफेद ड्रेस में बहुत खूबसूरत लग रही थी।
“जाँन यहां थिएटर में क्या कर रहे हैं?” मैंने जिज्ञासा से पूछा।
“ओह!” तुम्हे बताना भूल गई की जाँन इस नाटक के निर्देशक हैं। जब हम लन्दन में थे, तब वो इस ग्रुप से जुड़े थे I यह नाटक लंदन में ‘विंडसर’ के नाम से लोकप्रिय हैं। जाँन को निर्देशन का शौक था इसलिए इसमें एक बहुत छोटी सी भूमिका निभाई थी। भारत में आने के बाद, मैंने उसे थिएटर शुरू करने के लिए जोर दिया। पहले तो वह नहीं माना लेकिन बाद में जब वह मान गया तो उसने कोशिश की और देखो आज एक नाटक का निर्देशन करने का उसका सपना सच होने जा रहा हैं I”
“ओह!, मैंने बोर्ड पर नाम देखा था, लेकिन उस समय पता नहीं था कि वह जाँन का नाम हैंI” मैंने आश्चर्य से कहा
“तुम्हें कैसे पता होता, मैं हमेंशा उसे जाँन बुलाती हूँ I” इंदिरा ने मुस्कुराते हुए कहा I
“अब तुम इंटरव्यू शुरू करो क्योकि नाटक ठीक चार बजे शुरू हो जायेगा। हमारे पास बात चीत करने के लिए सिर्फ आधे घंटे का समय हैंI”
“ठीक हैं इंदिरा, मेंरे इंटरव्यू का विषय हैं रिटायरमेंट के बाद कोई नया काम कैसे शुरू करें। मैंने ज़्यादातर लोगों में देखा हैं कि वे दूसरों के महान कामों की प्रसंशा तो करते हैं, लेकिन जब उनसे कुछ करने के लिए कहा जाता हैं, तो वे संकोच करते हैं। वे अपनी समान्य जिंदगी से बाहर आकर काम नहीं करना चाहते। मुझे यकीन हैं कि जो कोई भी जाँन कि कहानी सुनेगा वे ज़रूर उसके प्रयासों कि प्रसंशा करेंगे, लेकिन अगर खुद उनसे कुछ करने को कहा जाये, तो वे सैकड़ो बहाने बनाएंगेI”
“ऐसा हैं क्या?” इंदिरा ने मुस्कुराते हुए कहा।
“हाँ, हमेंशा होता हैं,” मैंने कहा।
“कुछ कहने से पहले मैं यह जानना चाहती हूँ कि तुम लोगों को क्यों प्रेरित करना चाहती हों?” इंदिरा ने मुझसे पूछा।
“मैंने गौर किया हैं कि अपनी नौकरी से रिटायर होने के बाद कुछ लोगों में एक निराशावादी दृष्टिकोण विकसित होता हैं और वह अपने जीवन में उत्साह खो देते हैं।मैं उनके जीवन में एक सकारात्मक बदलाव लाने के लिए इस लेख को लिखना चाहती हूँ।”
इंदिरा ने एक पल के लिए सोचा और फिर कहा,” यह वास्तव में एक बहुत अच्छा विचार हैं, लेकिन क्या तुम जानती हो कि अगर हम किसी व्यक्ति को बदलने की इच्छा रखते हैं, तो हमें पहले उनके नज़रिये को बदलने की जरूरत होती हैं।”
उसने आगे जारी रखा,” क्या होता हैं, अंशु, कि ज्यादातर लोगों का मानना हैं कि एक खास उम्र के बाद वे कुछ काम करने में सक्षम नहीं हैं। उनका यह भी मानना हैं कि उनको अपने जीवन में आगे किसी भी उपलब्धियों कि जरूरत नहीं हैं। इसलिए, जब तुम्हारी तरह कोई उन्हें उनकी जीवन शैली बदलने के लिए कहता हैं तो, वे इसे अनदेखा कर देते हैं।”
उसने आगे जारी रखा,” पहले, जाँन भी कुछ नया नहीं करना चाहता था। उनका मानना था कि उन्होंने अपना काम ख़त्म कर लिया हैं और अब उन्हे कुछ करने की जरूरत नहीं हैं। मैंने उसे कभी जोर देकर नहीं कहा और उस पर चीजों को थोपा नहीं बल्कि मैंने अपनी परियोजना को लेकर उसके साथ विचार-विमर्श किया और अपने अनुभव कि चर्चा उससे की। उसने मेंरे जीवन में आए परिवर्तन को महसूस किया। धीरे-धीरे वह मेंरे विचार से सहमत हुए और वह थियेटर करने के लिए सहमत हुए। धीरे-धीरे चीज़ें आगे बड़ी और आज वह यहाँ अपने नाटक का निर्देशन कर रहें हैं।” इंदिरा ने बताया।
“क्या उन्हे अपने काम में अच्छा लग रहा हैं?” मैंने जिज्ञासा के साथ पूछा।
“हाँ, बहुत। अब तो वह मुझसे भी ज्यादा अपने काम को समय देते हैं।” इंदिरा ने उत्साह से कहा।
“वह इस बात से बहुत खुश हैं कि मैंने उनके अंदर उत्साह जगाया और उन्हे विश्वास दिलाया कि यह प्रतिभा उनमें हैं और वह अब भी करने के लिए सक्षम हैं।”
“बहुत बढ़िया हैं। मैं तुम दोनों के खुशहाल जीवन की कामना करती हूँ। हमेंशा कि तरह आपसे बात कर के बहुत अच्छा लगा। मुझे आशा हैं कि मेंरे पाठकों के लिए यह लेख उपयोगी होगा और निश्चित रूप से इसे पढ़ने के बाद वे सब भी उनके शौक को कोशिश का एक रूप देंगे,” मैंने कहा।
यह नाटक प्रारम्भ होने का समय था, इसलिए हम दोनों ने हमारी चर्चा को समाप्त किया और सभागार की ओर नाटक देखने के लिए चले गए।