रिटायरमेंट के बाद #1/ After retirement #1

After retirement work

Synopsis

हमने सोचा कि क्यों न अब हम वह काम करने कि कोशिश करें जो हमने कभी सोचा तो था पर कभी कर नहीं पाए। मैंने देखा हैं कि हरेक का कोई न कोई सपना अधूरा ही रह जाता हैं।”

 रिटायरमेंट के बाद #1

लगभग तीन साल हो गए इंदिरा से मिले हुये। आज उसके साथ दस बजे मेंरी मैंगजीन के एक कालम के लिए इंटरव्यू था। मैं उसके पास ठीक समय पर पहुंचना चाह रही थी, इसलिए सुबह जल्दी तैयार होकर घर से निकल गई। उसका घर मेंरे घर से करीब पच्चीस किलो-मीटर की दूरी पर था।

मेंरी मुलाक़ात इंदिरा से पहली बार एक जिम में हुई थी और कुछ ही समय में हम अच्छे दोस्त बन गए थे। मैं उसके असाधारण व्यक्तित्व और स्वभाव से बहुत प्रभावित थी। मुझे लगता हैं कि शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जो इंदिरा से प्रभावित न हो।

करीब एक घंटे में मेंरी कार इंदिरा के घर के सामने रुकी। उसका घर एक स्काटिंश बंगले की तरह खूबसूरत लग रहा था। घर के अंदर प्रवेश करते ही एक सुंदर सा बगीचा था जिसमें बहुत सारे फूल खिले हुये थे। मैं कुछ देर ठहरकर कुदरत की नायाब खूबसूरती उन रंग बिरंगे फूलों को देखने लगी। दस बजने वाला था इसलिए मैंने, दरवाजे पर लगी घंटी बजाई।

दरवाजा खुला और नीले रंग की जींस और सफ़ेद टी-शर्ट पहने एक लंबा सा व्यक्ति एक सौम्य मुस्कुराहट के साथ बाहर आया और बोला,

“हैंलो अंशु मैं जाँन हूँ इंदिरा का पति। आप अंदर आइए।” उसने शिष्टता के साथ मुझे अंदर आने का इशारा किया।

“हैंलो जाँन आप कैसे हैं,” मैंने कहा और एक सुव्यवस्थित सजे हुये कमरे में प्रवेश किया।

घर ढूढ़ने में कोई परेशानी तो नहीं हुई। जाँन ने मुझसे पूछा चूंकि मैं उनके घर पहली बार गई थी।

“नहीं बिलकुल नहीं, मैं सीधे यहां आ गई। आपका घर बहुत खूबसूरत हैं।”

“शुक्रिया,” जाँन मुसकुराते हुए बोला।

“इंदिरा कहां हैं?”

“उसका किचन का काम खत्म ही हो गया हैं, वो बस पाँच मिनट में आ जाएगी,” जाँन ने तुरंत जवाब दिया।

“नहीं, कोई जल्दी नहीं हैं। असल मेँ, मैं समय से पहले पहुंच गई हूँ,” मैंने कहा और वहीं इंतजार करने लगी।

“हैंलो अंशु इतने दिनो के बाद तुम्हें देख कर बहुत अच्छा लगा,” इंदिरा ने कमरे में प्रवेश किया।

इंदिरा पहले से भी ज्यादा ‘स्वस्थ और सुंदर’ लग रही थी। वह ट्राउजर और शर्ट पहने थी जो उसके व्यक्तित्व से मेंल कर रहा था।

“हैंलो इंदिरा हमेंशा की तरह आप बहुत सुंदर लग रही हो और आपकी सफलता के लिए भी बहुत-बहुत बधाई।” मैंने कहा।

तभी जाँन हाथ में नाश्ते की ट्रे लेकर वहां आ गया।” यह लीजिये, मेंरी बनाई हुई रेसिपी चखकर बताइये, कैसी बनी हैं।” वह स्ट्राब्रेरी शेक और चीज पीज़ा लाया था। मैंने आश्चर्य से जाँन की तरफ देखा तो इंदिरा मेंरी बात असमंजस्यता समझ गई और बोली,

“जाँन को कुकिंग करने का शौक हैं इसलिए वह आजकल अंतर्राष्ट्रीय डिशेज बनाने का कोर्स कर रहा हैं। इसलिए वह जानना चाहता हैं कि यह उसने कैसा बनाया हैं।”

फिर जाँन कि तरफ देखकर हंसते हुए बोली,

“दोनों चीजे बहुत कमाल कि बनी हैं, तुम तो मुझसे भी अच्छा बनाने लगे हो।”

“वास्तव में दोनों चीजे लाजवाब हैं। मैंने इतना स्वादिष्ट शेक और पीज़ा कभी नहीं खाया।” मैंने भी जाँन से तारीफ करते हुए कहा।

“मेंरा हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद, अब आप लोग अपनी काम की बातें करिए, मैं लाँन में पौधों को पानी डालने जा रहा हूँ,” मुस्कान के साथ वह बाहर चला गया।

“मैंने आपको तीन सालो मेँ कई बार याद किया, लेकिन कभी आप से संपर्क नहीं हो पाया। फिर जब मैंने अखबार मैं आपके बारे में पढ़ा तब से मैं आपकी सफलता के लिए व्यक्तिगत रूप से आपको बधाई देना चाहती थी। यह वास्तव में बहुत बड़ी उपलब्धि हैं।मैं यह जानने के लिए उत्सुक हूँ कि रिटायर होने के बाद आपने कैसे इतना काम कर लिया।”

“मैं बताती हूँ, अंशु! हम लोग जब जिम में मिले थे तब मैं और जाँन रिटायरमेंट के बाद आराम की जिंदगी बिता रहे थे। लेकिन कुछ ही महीनो के बाद हमें अपने जीवन में उत्साह की कमी महसूस होने लगी और तब मैंने और जाँन ने अपनी जीवन शैली बदलने की योजना सोची जिससे हम वही उत्साह वापस ला सकें।”

“किस तरह की योजना?” मैंने बीच में पूछा।

हमने सोचा कि क्यों न अब हम वह काम करने कि कोशिश करें जो हमने कभी सोचा तो था पर कभी कर नहीं पाए। मैंने देखा हैं कि हरेक का कोई न कोई सपना अधूरा ही रह जाता हैं।”

मैं एक चौसठ वर्ष कि महिला के उत्साह को देखकर चकित थी। उसकी आंखो में एक युवा लड़की कि तरह कुछ कर दिखाने की चमक थी।

उसने जारी रखा,” हम दोनों ने नए काम की शुरूआत करने का विचार किया। बचपन से ही मेंरा एक मनोवैज्ञानिक बनने का सपना था। एम. बी. ए. करने से पहले जब मैं मनोविज्ञान की छात्रा थी। मेंरे पास मनोविज्ञान में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, की एक डिग्री हैं जो मैंने पार्ट टाइम में किया था।

“बड़े आश्चर्य की बात हैं, सिर्फ तीन साल में आपने बच्चों के मनोविज्ञान के क्षेत्र में इतना काम कैसे कर लिया।” मैंने पूछा

“हाँ, दुर्भाग्य से अब तक भारत में इस विषय पर बहुत काम नहीं किया गया हैं लेकिन इस पर पश्चिम में बहुत काम किया गया हैं।”

“आपने काम कैसे शुरू किया था?”

“शुरू में मैं एक संस्था जो पहले से ही मुंबई में बच्चों के पोषण के लिए काम कर रही थी उसमें शामिल हो गई। संस्था के कुछ सदस्यों की मदद से, मैंने विभिन्न स्कूलों में जाकर वंहा बच्चो को शिक्षा देने की पद्धति पर चर्चा की। टीचर और बच्चो के माँ-बाप को भी सही ढंग से बच्चो को शिक्षा देने की ट्रेनिंग दी। लोगो ने इसकी सराहना की और महसूस किया की धीरे-धीरे बच्चो के प्रदर्शन में सुधार हुआ हैं, न केवल पढ़ाई बल्कि सामाजिक और भावनात्मक रूप से भी बच्चे ज्यादा परिपक्व हो गए हैं। बाद में, सरकार ने काम को मान्यता दी और हमें और अधिक जागरूकता पैदा करने के लिए सरकार से मदद मिलने लगी।”

“आप एक महीने में कितने दिन इस काम में लगातीं हैं?” मैंने पूछा।

“एक महीने में लगभग दस सेमिनार कर लेती हूँ। मुझे दूसरे शहरों से भी निमंत्रण मिलते रहते हैं। लेकिन मैं ज्यादा यात्रा नहीं कर सकती हूँ इसलिए, मैंने एक ऑनलाइन पोर्टल पर काम शुरू किया हैं। उम्मीद हैं, वेबसाइट अगले महीने से शुरू कर दी जाएगी और उसके बाद मुझे बाहर जाने कि जरूरत नहीं पड़ेगी। मैं अपने पोर्टल द्वारा ही देश भर में पहुँच सकती हूँ।

“आपका मतलब हैं कि आप इंटर्नेट से लोगो तक पहुँच जाएगी।” मैंने उनकी कार्य की शैली समझते हुए कहा।

“बिलकुल सही!”

मुझे इंदिरा के इतने सक्रिय जीवन शैली को देख कर बहुत आश्चर्य हुआ।

“फिर तो आप को घूमने का या और कहीं जाने का समय तो मिल नहीं पाता होगा।”

“नहीं ऐसा नहीं हैं, लगभग हर सप्ताह के अंत में हम दोस्तों से मिलते हैं। हम साल में दो बार परिवार के साथ छुट्टियों पर जातें हैं। असल में, हम अभी भी सब कुछ करते हैं जो हम पहले किया करते थे। फर्क सिर्फ इतना हैं कि अब हमारे जीवन में सुस्ती के लिए कोई जगह नहीं हैं,” इंदिरा ने जवाब दिया. उसकी आँखों में उत्साह की झलक थी।

“बहुत बढ़िया!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

मेंरे जीवन शैली में ये सकारात्मक बदलाव लाने के लिए एक किताब “Four hour work weekby Tim Ferris को मैं हमेंशा अपने मिलने वालों को पढ़ने को कहती हूँ।” अच्छी पुस्तकें जीवन को परिवर्तित कर सकती हैं और किसी ने ठीक ही कहा हैं कि वे हमारी सबसे अच्छी दोस्त हैं,” इंदिरा बोली।

“अच्छा! मैं भी अपने पाठको को पढ़ने की राय दूँगी। आज आप सेमिनार में किस समय जाएगी?” मैंने पूछा।

“मुझे 12:30 बजे तक वहां पहुचना हैं,” इंदिरा ने बताया।

“ठीक हैं, फिर मुझे आप से इजाजत लेनी चाहिए। हमेंशा की तरह आपसे मिल के बहुत अच्छा लगा,” मैंने कहा।

बचे हुये प्रश्न पूछने के लिए मैंने अगली मुलाक़ात तय कर ली। इंदिरा ने मुझे पृथ्वी थियेटर में मिलने को कहा। मैंने उससे ‘बाय’ कहा और कमरे से बाहर आ गई जहा जाँन अपने पौधों के साथ व्यस्त थे।

After retirement

मुझे जानने की बहुत उत्सुकता थी कि इंदिरा ने पृथ्वी थियेटर में आने के लिए क्यो कहा हैं, लेकिन मैं पूछ नहीं सकती थी क्योकि उस समय वह जल्दी में थी।

“बाय जाँन, अगले हफ्ते मिलते हैं,” मैंने घर के मुख्य द्वार से जाते हुए जाँन से कहा।

“बाय अंशु, संभल के जाना,” जाँन अपना काम छोड़ के मुझे बाहर गेट तक छोड़ने के लिए आए।

कुछ सवाल अभी मेंरे मन में रह गए थे जिन्हे मुझे अगली मुलाक़ात में इंदिरा से पुछने थे। ऐसे लोगो के बारे में लिखना और सुनना दोनों ही बहुत अच्छा लगता हैं लेकिन अपने ऊपर आजमाना बहुत मुश्किल। उन्हे कैसे अपने जीवन में उतार सकते हैं, यह जानने के लिए मुझे एक हफ्ते का इंतजार करना पड़ेगा।

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Anshu Shrivastava

Anshu Shrivastava

मेरा नाम अंशु श्रीवास्तव है, मैं ब्लॉग वेबसाइट hindi.parentingbyanshu.com की संस्थापक हूँ।
वेबसाइट पर ब्लॉग और पाठ्यक्रम माता-पिता और शिक्षकों को पालन-पोषण पर पाठ प्रदान करते हैं कि उन्हें बच्चों की परवरिश कैसे करनी चाहिए, खासकर उनके किशोरावस्था में।

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