मां सबसे अच्छी होती है, इस बात में कोई शर्त लागू नहीं है/Mother is the best, no conditions applied

Mother and daughter in hugging position

Synopsis

विविधता प्रकृति का मुख्य सार है और हमें विचारों को ज्यादा खुला बनाना चाहिए, आपस के विचारों का सम्मान करना चाहिए। किसी भी संबंध में यह अच्छे संबंध बनाने का सार है।

मां सबसे अच्छी होती है, इस बात में कोई शर्त लागू नहीं है, मैंने अक्सर लोगों को यह कहते सुना है कि उनकी मां दुनिया की सबसे अच्छी मां है।

यह सच है; मां हमेशा दुनिया में सबसे अच्छी होती है।

लेकिन यह सिद्धांत बच्चों पर, बहनों, भाइयों, पिता, पति-पत्नी या किसी और रिश्ते  के लिए प्रसांगिक नहीं होती है।

लोग कहते हैं कि उनका पति सबसे अच्छा है, पत्नी सबसे अच्छी है, भाई या बहन सबसे अच्छे हैं, परंतु यह यह बात पूरी तरीके से सच नहीं होती क्योंकि कभी-कभी यह बात  बिना शर्त के नहीं होती।

लोग यह बात  बिना तथ्य महसूस किए ही बोल देते हैं।

यह समझने के लिए कि मां सर्वश्रेष्ठ होती है, यही एकमात्र बयान है जिसका अर्थ वास्तव में सच है और बाकी सब बयान सच नहीं भी हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि:

1.मां सबसे अच्छी होती है, इस बात में कोई शर्त लागू नहीं होती है:

हर एक के जीवन में मां एक पहली महिला होती है।

जो बच्चे भाग्यशाली होते हैं वह उनका पालन-पोषण मां करती है।

दुर्भाग्यवश कुछ लोगों का पालन पोषण मां द्वारा नहीं हो पाता है।

जिस प्यार और ममता के साथ मां अपने बच्चे को पालती है, कोई दूसरा उसकी जगह नहीं ले सकता है।

इसीलिए हम अपनी मां को इतना प्यार करते हैं कि हम उसे जैसी वह है, वैसे ही स्वीकार कर लेते हैं।

हम ऐसा नहीं सोचते कि हमारी मां दूसरे की तरह होनी चाहिए।

वह जिस ढंग से और जिस तरीके से हमें पालती है हम अधिकतर उस में  खुश रहते हैं।

2.एक सच है कि बच्चे अपनी मां को उसकी कमियों बुराइयों, उसके सोचने के तरीके, योग्यता  इत्यादि के साथ स्वीकार कर लेते हैं। वह कभी प्रश्न नहीं करते हैं कि उसकी मां ऐसी क्यों है।

लेकिन यह भी आश्चर्यजनक सच है कि मां अपने बच्चे को उस तरह से स्वीकार नहीं करती है।

वह यह कहती जरूर है कि उसका बच्चा सबसे अच्छा है लेकिन यह बात पूरी तरीके से सच नहीं होती।

क्योंकि इस संबंध में बहुत सी शर्ते होती हैं।

हम देखते हैं कि ज्यादातर पेरेंट्स अपने बच्चों को उस मार्ग पर चलने के लिए मजबूर करते हैं जो मां बाप द्वारा बनाया गया है।

कभी कभी माता-पिता खुद अपने सपने पूरे करने के लिए बच्चों को मजबूर करते हैं।

माता पिता यह समझ नहीं पाते हैं कि बच्चे क्या चाहते हैं।

ऐसे कई उदाहरण हमें देखने को मिल जाएंगे जहां पर बच्चों को उस व्यक्ति से शादी करने की स्वतंत्रता नहीं होती है जिसे वह चाहते हैं।

उन्हें मजबूर किया जाता है कि वह माता पिता की इच्छा के व्यक्ति से ही शादी करें।

कई लड़कियों को अपनी पसंद का करियर लेने की भी अनुमति नहीं होती है बल्कि कई जगह लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना ही उचित नहीं माना जाता है।

इन सब का नतीजा यह होता है कि बच्चे अपने माता पिता की अपेक्षाओं के सीमा को पूरा नहीं कर पाते और  खुद को तनाव में महसूस करते हैं।

कभी-कभी बच्चों में यह तनाव बहुत बढ़ जाता है फिर भी मां बाप उसका कारण भी समझ नहीं पाते हैं।

ऐसी स्थिति को दूर किया जा सकता है।

अगर मां बाप अपने बच्चों की उनकी क्षमताओं की सीमा को समझें।

बच्चों को उनकी कमियों के साथ स्वीकार करें ठीक वैसे ही जैसे बच्चा अपने मां बाप को स्वीकार कर लेता है।

तब यह स्थिति नहीं आएगी।

इसलिए जब मां यह कहती है कि मेरा बच्चा सबसे अच्छा है

यह बात तभी सच होगी जब वह अपने बच्चे को उसकी कमियों के साथ स्वीकार करेगी और जितना उसकी क्षमता हो उतना ही काम करने देगी।

विवाहित लोगों पर भी यही सिद्धांत लागू होता है।

विवाह के बाद पत्नी पति एक दूसरे का स्वागत करते हैं लेकिन एक दूसरे के विचारों और धारणाओं का स्वागत नहीं करते हैं।

और इसीलिए वह एक दूसरे को बदलने की भी कोशिश करते रहते हैं।

यही बात दोनों के बीच में तनाव पैदा करती है।

अगर यह बात पति और पत्नी को समझ में आ जाए कि दोनों की अपनी स्वतंत्र सोच, काम करने का तरीका और धारणाएं हैं और दोनों एक दूसरे की इन बातों को स्वीकार कर ले तो उनके बीच का रिश्ता हमेशा सौहार्द्रपूण रहेगा।

यहां स्वीकृति का यह मतलब नहीं है कि हमें लोगों को दूसरों के जीवन में सुधार लाने के लिए कभी प्रोत्साहित न करे।

ऐसा नहीं है इसका मतलब यह है कि पहले व्यक्ति को स्वीकार किया जाए और उसकी भावनाओं को समझा जाए और b

हर व्यक्ति का आत्मसम्मान उसके लिए बहुत जरूरी होता है इसलिए किसी को प्रोत्साहित करना हो तो उसके सम्मान का ध्यान जरूर रखना चाहिए।

हम लोग आजकल देखते हैं कि तलाक, ब्रेकअप बच्चों में निराशा, डिप्रेशन आदि की प्रॉब्लम्स सामान्य रूप से हो रही हैं।

इन सभी चीजों का प्राथमिक कारण लोगों को एक दूसरे को स्वीकार ना करना है ।

हमें इस बात को समझने की जरूरत है कि कोई भी दो व्यक्ति एक समान नहीं होते।

विविधता प्रकृति का नियम है हमें लोगों के बीच की सोच और विचारों में विविधता और मतभेदों का सम्मान करने की जरूरत है।  हमें लोगों को उनका रास्ता खुद तय करने की स्वतंत्रता देनी चाहिए।

ऐसा नहीं कि माता-पिता अपने बच्चों को प्रोत्साहित ही ना करें

अपने बच्चों को उनकी लापरवाही और आलस के कारण अपना भविष्य बर्बाद होने दें।

मां बाप को अपने बच्चों का दृष्टिकोण समझना चाहिए।

अगर किसी वजह से उनका दृष्टिकोण अनैतिक, लापरवाह, अविवेकपूर्ण प्रतीत होता है,

उनकी भावनाओं को अपमानित किए बिना, करुणा और सहानुभूति के साथ में प्रोत्साहित करना  चाहिए।

जीवन में स्वीकृति का महत्व क्या है?/ what is the significance of acceptance in life?

हर व्यक्ति के विचार उसके अपने एक्सपीरियंस और ज्ञान से बनते हैं।

व्यक्ति अपनी निगाह से हमेशा सही होता है।

जो उससे अलग है,

जिसकी सोच अलग है उस से मिलता है तो वह व्यक्ति  गलत दिखाई पड़ता है।

वह चीजों और परिस्थितियों के अन्य संभावित विकल्पों को समझने के लिए तैयार नहीं होता।

परंतु यह सच नहीं होता।

इस तरह की सोच के परिणाम स्वरूप तलाक, ब्रेकअप, बच्चों में निराशा और डिप्रेशन का कारण बनती है,

इसीलिए इन चीजों की संख्या भी बढ़ने लगी है।

इन चीजों को दूर करने के लिए हमें यह समझना पड़ेगा-

विविधता प्रकृति का मुख्य सार है और हमें विचारों को ज्यादा खुला बनाना चाहिए,

आपस के विचारों का सम्मान करना चाहिए।

किसी भी संबंध में यह अच्छे संबंध बनाने का सार है।

तो जिस तरह से एक बच्चा अपनी मां को स्वीकार करता है,

उसी तरह से हमें भी अपने सभी के साथ अच्छे संबंध विकसित करना चाहिए।

इस तरह का व्यवहार करने से परिवार कभी टूटेंगे नहीं, कभी तलाक, झगड़ा या तनाव नहीं होगा,

हर व्यक्ति खुशहाल और स्वस्थ परिवार को बनाए रखने में सक्षम होगा।

इस दृष्टिकोण से बच्चे को करियर चुनने की आज़ादी मिलेगी,

जीवन साथी चुनने की आजादी मिलेगी जिसके परिणाम स्वरूप माता पिता और बच्चों के बीच में अच्छे मजबूत संबंध बनेंगे।

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Anshu Shrivastava

Anshu Shrivastava

मेरा नाम अंशु श्रीवास्तव है, मैं ब्लॉग वेबसाइट hindi.parentingbyanshu.com की संस्थापक हूँ।
वेबसाइट पर ब्लॉग और पाठ्यक्रम माता-पिता और शिक्षकों को पालन-पोषण पर पाठ प्रदान करते हैं कि उन्हें बच्चों की परवरिश कैसे करनी चाहिए, खासकर उनके किशोरावस्था में।

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