किशोरावस्था और युवावस्था अक्सर depression की समस्या से परेशान होते देखे गए हैं।
डिप्रेशन होने के कुछ कारण ज्ञात होते हैं, लेकिन कई कारण अनजाने होते हैं।
जैसे जैसे बच्चे की किशोरावस्था तक पहुंचते हैं उनकी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास में बहुत बदलाव आ जाता है।
किशोरा अवस्था में बच्चों की सोच की क्षमता भी विकसित हो जाती है।
जिसके कारण वे अपनी व्यक्तिगत पसंद में अपनी स्वतंत्रता चाहने लगते है जो उनके और उनके माता पिता के बीच अलगाव पैदा कर देती है।
यह अलगाव इतना बढ़ जाता है कि बच्चे इस उम्र में अपने माता-पिता के बजाय अपने सहपाठियों के अधिक करीब हो जाते हैं।
किसी भी तरह के समर्थन और सुझाव के लिए अपने दोस्तों पर ज्यादा भरोसा करते हैं।
आजकल समाज में टेक्नोलॉजी के अंदर काफी बदलाव आ गया है।
बहुत तेजी से टेक्नोलॉजी विकसित हो गई है।
इस कारण से आए सामाजिक बदलाव से आज का युवा वर्ग और किशोर बहुत कंफ्यूज रहते हैं, और उनका काफी समय, ऊर्जा और कौशल बर्बाद हो जाता है।
अपने जीवन में आए इन्ही परिवर्तनों के कारण किशोर डिप्रेशन की ओर अग्रसर होते है।
इसलिय प्रत्येक मां बाप को डिप्रेशन के कारण, लक्षण और उपचार के बारे में जानकारी होनी ही चाहिए ताकि वह अपने बच्चो को मानसिक रूप से स्वस्थ रख सकें।
डिप्रेशन के बारे में जानकारी होने से ही किशोरों पर इसके घातक प्रभावों को कम किया जा सकता है।
किशोरो में डिप्रेशन की अतिसंवेदनशीलता के कारण:
१. शारीरिक प्रदर्शन के प्रति संवेदनशीलता –
जब बच्चे छोटे होते है तब वे दुनिया को उसी रूप में स्वीकार कर लेते है जैसे वह है ।
बच्चे संसार को अपने नज़रिये से देखते है।
और वे इस बात की भी परवाह नहीं करते है कि लोग उनके बारे में क्या सोचते है।
परन्तु जैसे जैसे वे बडे होते है उनमे दुसरो की नज़र से खुद को देखने की क्षमता आती जाती है।किशोर संकोची हो जाता है और उसमें प्रत्येक चीजों के लिए अपनी पसंद नापसंद की भावना विकसित हो जाती है।
उनके लिए दुसरो की स्वीकृति और खास कर उनके अपने साथियों की स्वीकृति ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।
इसलिय जब उन्हें दूसरो से सकारात्मक रिमार्क नहीं मिलता तो उन्हें बहुत बुरा लगता है और वे डिप्रेशन में चले जाते है।
२. दबाव –
किशोरों को अपने परिवार एवं अपने मित्रो की बढ़ती माँगो का सामना करना पड़ता है।
परिवार की मांग करियर, पढ़ाई और प्रदर्शन से जुडी रहती है वहीं मित्र उनको शराब और सेक्स में शामिल करने के लिए प्रभाव डालते है।
यह किशोरो के लिए बहुत उलझन भरा समय होता है।
किशोरावस्था में बच्चे मार्गदर्शन के लिए अपने माता पिता के ऊपर निर्भर रहने से ज्यादा अपने साथियों की सलाह पर भरोसा करते है।
किशोरों के लिए उनके साथियों की स्वीकृति बहुत मायने रखती है।
इसलिए वे अपने माता पिता से डिसकस करना पसंद नहीं करते और स्वतंत्र निर्णय लेना ज्यादा पसंद करते है।
हालांकि उन दोस्तों के ग्रुप भी अनुभवहीन होता है और मार्गप्रदर्शन के लिए सक्षम नहीं होता है।
जिस रास्ते पर किशोर चलते है वह नया एवं अपरिचित होता है।
उसके बावजूद माता पिता को अपने बच्चो को साहसिक बनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिए।
माता पिता को उन्हें नये अनुभव करने की इजाजत देनी चाहिए भले ही वे उनके लिये सही न हो।
इससे बच्चे मज़बूत बनते है।
लेकिन जब कभी उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है तो वह टूट जाते हैं क्योंकि किशोर इतने दवाब को झेलने में सक्षम नहीं होते है।
इसलिय जब उन्हें अपने अनुभव हमें सफलता नहीं मिलती तब वे अत्यधिक दवाब महसूस करते है।
३. मित्रों के साथ रिश्ता –
किशोरावस्था में बच्चे अपने माता पिता से आज़ाद होना चाहते है इसलिए दोस्त सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते है।
उन्हें मित्रो की आवश्कता होती है मज़े करने के लिए, समस्या को बाटने के लिए, सलाह लेने के लिए और भावनात्मक सहायता के लिए।
लेकिन इस उम्र में जब बच्चों को अपने मित्रों से बहिष्कार, खिल्ली उड़ाना या रिजेक्शन जैसी चीजों का सामना करना पड़ता है तो वह बच्चों के ऊपर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव डालता है।
जिन मित्रों पर किशोर पूरी तरह से भरोसा करता है, जब उसका भरोसा उन मित्रों से भी टूटता है तो वह बिल्कुल अकेला महसूस करता है।
उसे अपनी खुद की पहचान पर शक होने लगता है। ऐसे हालत में वह डिप्रेशन की तरफ अग्रसर होने लगता है।
४. सोने में व्यवधान –
किशोरों में सोने के तरीके अलग अलग होते है। वे रात में देर से सोते है और सबेरे स्कूल और कॉलेज के लिए जल्दी उठ जाते है।
इस तरह से वे आठ घंटे से कम नींद लेते है और इसीलिए वे सारा दिन थका हुआ महसूस करते है।
जब सोने में कमी काफी दिनों के लिए हो जाती है तब वह डिप्रेशन की तरफ अग्रसर होने लगते हैं।
५. खानपान में अव्यस्था-
सेरोटोनिन एक न्यूरोट्रांसमीटर है जो मानव शरीर की पाचन तंत्र में पाया जाता है।
यह सभी में खुशगवार मूड के लिए जिम्मेदार होता है।
पाचनतंत्र एवं मस्तिष्क एक दूसरे से गहराई से जुड़े होते है।
इसलिय जब किशोर ड्रग और शराब के आदि हो जाते हैं तब उनका मानसिक स्वस्थ प्रभावित हो जाता है।
वे दुख, चिंता और तनाव महसूस करने लगते है, यहाँ तक की उनकी स्मरण शक्ति, निर्णय लेने की और सीखने की क्षमता भी कम होने लगती है।
इसलिय शरीर में सेरोटोनिन के स्तर को सही रखना आवश्यक है।
उसके लिए स्वास्थवर्धक भोजन पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
सेरोटोनिन एमिनो एसिड ट्रीप्टोफान से बनता है और यह प्रोटीन की सिंथेसिस में इस्तेमाल होता है।
ट्रीप्टोफन की उपस्थिति ज्यादातर प्रोटीन आधारित खाद्य प्रदार्थ में पाया जाता है।
जैसे कि- चॉक्लेट, ओट्स, सूखे खजूर, चीज़,और सूरजमुखी के बीजो में, मूंगफली, मांस, अंडे और मछली।
अपने मूड को खुशगवार बनाने के लिए ऊपर दिए गए पदार्थो को अपने भोजन में शामिल करना चाहिए।
अनियमित खानपान से दूर रहे और पदार्थो के इस्तेमाल करके डिप्रेशन से दूर रहे।
६. सोशल मीडिया के प्रभाव –
सोशल मीडिया से पहले लोगो के पास बात करने का, खेलने, घूमने और नए चीज़े सीखने का समय था।
बच्चे सुरक्षित एवं संरक्षित पर्यावरण में मज़े करते थे।
जो भी हो, सोशल मीडिया के इस युग में लोग बहुत दूर दूर तक लोगों से आपस में जुड़े हुए है।
लोग असीमित ज्ञान को और असंख्य सम्पर्को को पा लेना चाहते है। यह उन पर सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रभाव डालता है।
इसमें साइबर बुलीइंग और नकारात्मक बातों का खतरा रहता है जो कि डिप्रेशन को बढ़ाता है।
आज के किशोर वह पहली पीढ़ी है जो सोशल मीडिया के साथ बढ़ रही है।
वह इसके माध्यम से नकारात्मक सोच को ग्रहण कर रही है।
ऐसा नहीं है कि उनमे सही और गलत को पहचाने की क्षमता नहीं है।
लेकिन वास्तविकता यह है कि टैक्नोलॉजी के गलत प्रभाव किशोरों के लिए बहुत दुःख दायी है।
७. आत्म-सदेह
इन दिनों, बाजार सौंदर्य प्रसाधन और फैशन उत्पादों और कपड़े से भरे हुए हैं।
ब्यूटी सैलून, स्पा, बुटीक अधिकतम विकास पर हैं।
किशोर अनजाने में ही अपने लुक्क और इमेज के बारे में बेहद जागरूक हो गए हैं।
किशोरावस्था के दौरान, शरीर और त्वचा में होने वाले परिवर्तन उनके नियंत्रण में नहीं होते है।
वे खुद की तुलना मीडिया में दिखने वाले हीरो वा हीरोइन से करते हैं।
लड़कियां अधिक प्रभावित होती हैं क्योंकि वह अपनी तुलना अधिक करती है।
लड़कियां हिरोइनों की झूठी छवि में विश्वास करने के जालमें आ जाती हैं और अपने असली खुद से अलग हो जाते हैं।
जब उनकी असली छवि, काल्पनिक से मेल नहीं खाती है, तो वे निराश महसूस करते हैं और इस कारण लड़कियां अपने शरीर से असंतुष्ट हो जाती हैं।
और जब वह हकीकत में ऐसा नहीं पाती तो वे अवसाद, चिंता और क्रोध महसूस करने लगती हैं।
डिपैशन किसी भी समय किसी को लक्षित कर सकता है।
हालांकि, यह किसी भी कारण से यह हो सकता है लेकिन किशोरों के बीच यह बहुत आम है।
इसलिए, डिप्रेशन के कारण, लक्षण और उपचार के बारे में जानकारी आवश्यक है।
इस बिमारी के जोखिमों के बारे में जागरूकता इस बीमारी की संभावनाओं को सीमित कर सकती है।
हम सभी को किशोरों को साहसी, मजबूत और लचीला बनने में मददकरनी चाहिए ताकि वह अपना खुशहाल जीवन जी सकें।
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