माता-पिता अक्सर शिकायत करते हैं कि उनके बच्चे उनकी बात नहीं मानते। बच्चों से कभी धीरे से बात करते हैं और कभी गुस्से में समझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन बच्चे उनकी बात पर ध्यान नहीं देते। इसलिए, माता-पिता का निराश और परेशान महसूस होना स्वाभाविक है। हालांकि, यह बच्चों की गलती नहीं है। बच्चे स्वाभाविक रूप से खिलखिलाते हैं, और उनका स्वभाव है कि वे किसी की नहीं सुनते और ध्यान नहीं देते। वे बस मजे करते हैं। इसलिए, उनको डांटना, चिल्लाना, और उन पर गुस्सा करना पूरी तरह से गलत है। बड़ों से बात करना और बच्चों से बात करना बहुत अलग है। इसलिए, आपको यह समझना बहुत जरूरी है कि बच्चों से कैसे बात करना चाहिए ताकि वे आपकी बात को समझें और सुनें। इस आर्टिकल में, हम बच्चों से कैसे बात करें, इस पर चर्चा करेंगे ताकि आप आसानी से उन्हें अपने विचारों को समझा सकें।
बच्चे के जिद्दीपन को प्यार और सूझबूझ से डील करें :
कई बार माता-पिता अपने बच्चों से बहुत जोर-जोर से बात करते हैं, और वे अक्सर गुस्से में होते हैं। इसलिए, बच्चे इस आदत को अपना लेते हैं कि माता-पिता हमेशा ऐसे ही बात करते हैं। उन्हें नार्मल बोलने और चिल्लाने में कोई फर्क नहीं महसूस होता। इसलिए, कई बार सुनने को मिलता है कि बच्चे बहुत जिद्दी हो गए हैं और हमारी बात कभी नहीं मानते। या कभी-कभी जब बच्चे कुछ गलत करते हैं, तो माता-पिता उन्हें डांटते हैं, तो ये दोनों स्थितियाँ सही नहीं हैं। यानी , बच्चों को डांटना या उन्हें दोषी ठहराना ठीक नहीं है। वास्तव में, किसी को भी यह पसंद नहीं आता। बल्कि, अगर आप बच्चों से प्यार और मुस्कुराहट के साथ जुड़ेंगे और उनके पास बैठकर कुछ समझाने की कोशिश करेंगे तो बच्चे आपकी बात जरूर सुनेंगे। क्योंकि अगर आप चिल्ला रहे हैं या डांट रहे हैं तो बच्चों के अंदर नकारात्मकता का भाव आ जाता है और इस वजह से कई बार वे चुप हो जाते हैं क्योंकि उन्हें आपकी बात समझ में नहीं आती या कई बार वे उल्टा व्यवहार करने लगते हैं।
ये चीजें सही नहीं हैं। इसलिए, जब भी आप बात करें, सबसे पहले अपने मन को शांत करें और फिर प्यार और मुस्कान के साथ बच्चों से जुड़ें और बात करें। आप बहुत अच्छे परिणाम देखेंगे।
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उन्हें एकसाथ बहुत कुछ करने को न कहे/ बच्चों को बच्चों की तरह समझाएं :
कभी-कभी हम पेरेंट्स बच्चों को एक साथ बहुत सारी बातें एकसाथ बोल देते हैं, और वे इतने छोटे होते हैं कि वे एक साथ बहुत सारी बातों को समझ नहीं सकते। इसीलिए वे उनका पालन नहीं कर पाते। अगर आपको बहुत सारी बातों उनको बताना हो, तो उन्हें एक-एक करके बताएं और जब एक को समझ लें तो उस बात को उन्हें समझाएं। फिर अगले की ओर आएं, उन्हें नंबर दें और उनसे कहें कि नंबर वन के लिए तुम्हें यह करना है, नंबर टू के लिए तुम्हें यह करना है, नंबर थ्री के लिए तुम्हें यह करना है। इससे वे बेहतर समझ पाएंगे और अगर आप बिना sequence के चीजें बताते हैं, तो बच्चे उसे बिल्कुल नहीं समझेंगे। वे इसे कैसे अपनाएंगे ?
बच्चों की बातों को भी ध्यान से सुने :
आपको लगेगा कि बच्चे आपकी बात नहीं मानते। इसलिए, इस बात को ध्यान में रखें। कभी-कभी ऐसा होता है कि जब बच्चे पेरेंट्स से कुछ कह रहे होते है और वह किसी अन्य काम में व्यस्त होते है जैसे कि रसोई में काम कर रहे हो, घर साफ कर रहे हो, किसी दोस्त से बात कर रहे हो, या किसी अन्य काम में व्यस्त हो, और बीच-बीच में, वह निर्देश भी दे रहे होते है। उसी तरह, अगर बच्चे टीवी देख रहे हों, पढ़ रहे हों, खेल रहे हों, या कोई अन्य काम कर रहे हों, और आप जाकर कुछ कहते हैं, तो उनका ध्यान आपकी बातों पर बिल्कुल नहीं होता है, और फिर उन्हें उस बात का समझ नहीं आता है। जब भी आपको बच्चों से बात करनी हो, सबसे पहले उनके साथ बैठें, उन्हें पूरा ध्यान दें।
बच्चों के साथ कनेक्टेड रहें/ कनेक्शन बनाये :
बच्चों को फुल अटेंशन दीजिए। जब आप ऐसा करेंगे, तो बच्चे आपकी बात को सुनेंगे। किसी भी प्रकार के distraction को हटाइए और बच्चों से सीधे बात कीजिए। बच्चों के पास जाइए, उनके साथ बैठिए, आई कांटेक्ट करिए, उन्हें स्माइलिंग फेस दिखाएं, उन्हें प्यार करें ताकि उन्हें लगे कि यह टाइम हम दोनों एक साथ में हैं। जब ऐसा होगा, तो बच्चे बिल्कुल आपके साथ बात करने में इंटरेस्टेड होंगे। बस यह ध्यान रखिए कि आप जो समझा रहे हैं, वह एक सिंपल लैंग्वेज में हो। बच्चे अक्सर कोई भी बात मना करने पर मानते नहीं हैं, तो आपको जो अपना काम करवाना है, उसके लिए दो ऑप्शंस दीजिए और उनको चुज करने दीजिए कि तुम्हें क्या पसंद है। इस तरह से आपको मना नहीं करना पड़ेगा और आपकी बात भी वह बच्चे मान लेंगे।
हर काम के लिए एक फिक्स schedule बनाये :
उदाहरण के लिए, अगर एक बच्चा टीवी देख रहा है और आपको उसको पढ़ाई के लिए भेजना है, तो आप कहेंगे टीवी बंद करो और पढ़ो, तो डेफिनेटली बच्चा मना कर देगा क्योंकि उसको तो टीवी देखने में मजा आ रहा है। उस समय आप बच्चों को दो ऑप्शन दे सकते हैं, कि जैसे तुम्हें 10 मिनट्स और देखना है या 15 मिनट्स और देखना है, तो बच्चा 15 मिनट्स को चुज करेगा। उसको लगेगा उसने ज्यादा देख लिया है। 15 मिनट्स बाद आप दोबारा आइए और उससे पूछिए कि अब चलो तुम पढ़ाई करने।
अगर बच्चा उस समय उठ जाता है, तो ठीक है, लेकिन वह शायद फिर से कहे, “नहीं, मम्मा, मुझे और देखना है।” तब आप उससे पूछ सकते हैं, “दस मिनट और पंद्रह मिनट के बाद तुम कितनी देर में जाओगे?” बच्चे पर कहीं न कहीं थोड़ा सा दबाव होता है कि उसे पढ़ाई तो करनी ही है और उठना पड़ेगा, इसलिए वह फिर से कह सकता है, “दस मिनट बाद तुम आओ।” तब आप देखेंगे कि बच्चा टीवी बंद कर चुका है या आपके कहने पर बंद करेगा क्योंकि अब उसने पढ़ने चूज़ किया है। इस तरह, बच्चे आपकी बात सुनते हैं और आपको गुस्सा नहीं आता। बस, पेरेंट्स को धैर्य रखना होगा और अपने गुस्से को कंट्रोल करना होगा। अगर आप इस मेथड का उपयोग करेंगे, तो बच्चे निश्चित रूप से आपकी सुनेंगे।
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निष्कर्ष :
इस सब करने के बाद भी कई बार बच्चे सुनते नहीं हैं और आप गुस्सा हो जाते हैं। आप डांटते हैं, और फिर बाद में आपको गिल्ट फील होता है। ऐसा मत सोचिए। हर पर्सन की एक पेशेंस की एक सीमा होती है। अगर ऐसा हो गया है, तो अपने आप को समझाइए कि नेक्स्ट टाइम आप गुस्सा नहीं करेंगे या डांटेंगे नहीं बल्कि इन्हीं टिप्स को फॉलो करके समझने की कोशिश करेंगे। उससे बच्चे आपकी बात सुनेंगे ही नहीं बल्कि आपसे कनेक्टेड भी फील करेंगे। इस आर्टिकल का क्रक्स यह है कि आप बच्चों की समझ और उनके तरीके के हिसाब से उनको समझाने की कोशिश करें। डांटना या जरूरत से ज्यादा स्ट्रिक्ट होने से आपके और बच्चे के बीच में एक डिस्टेंस आ जाता है, और वक्त के साथ फिर बढ़ता जाता है। जबकि, प्यार और पेशेंस के साथ समझाने से आप दोनों के बीच का कनेक्शन मजबूत होता है, और बच्चे आपकी सुनते हैं और आपकी बात मानते हैं। याद रखिए, पेरेंटिंग कोई टैलेंट नहीं है; यह एक स्किल है जो आप प्रैक्टिस करके इम्प्रूव करते जाते हैं।
