Ajita Chapter 17 : नया मकान / New House
अभिनव जो अपने पिता के बगल में बैठा हुआ था उसने विजय से पूछा,
“दूसरा मकान? यह तो हमारा घर है, हम यहाँ से क्यों जाएँगे?
अंकल ऐसा क्यों कह रहे हैं?” अभिनव के चेहरे पर चिंता की छाया दिख रही थी।
वो अपना जवाब जानने के लिए सबकी तरफ देख रहा था।
अजिता उसे लेकर अंदर आ गई।
अभिनव को समझ नहीं आ रहा था कि उनको घर क्यों बदलना पड़ेगा।
उसे अपने घर से बहुत लगाव था, उसका जन्म उसी घर में हुआ था, उसके सब दोस्त भी वहीं के हैं, वो वहाँ बहुत खुश था,
“मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा, आप लोगों को जाना है तो जाओ, मैं यहीं रहूँगा” वो परेशान होकर बोला।
वो अपनी माँ से सुनना चाहता था कि वो लोग वहाँ से कहीं नहीं जा रहे हैं।
“मेरी बात सुनो अभिनव, जैसे तुम्हारे पास अपना बैट बॉल है और अगर तुम उसे आनंद को खेलने के लिए दो, फिर जब तुम्हें खेलने के लिए चाहिए तो उसे वापस कर देना चाहिए कि नहीं?
“हाँ मम्मी, ये मेरा बैट है जब मैं माँगू तो उसे ये मुझे ज़रूर देना चाहिए।”
“पर अगर वो कहे कि उसे ये पसंद है और वापस नहीं करे तो क्या वह बात ठीक होगी?”
“नहीं, उसे मेरा बैट बॉल वापस करना ही पड़ेगा, दूसरो की चीज़ अपने पास रख लेना गलत बात होती है।”
“तो तुम इस बात से सहमत हो कि जब मालिक को जरुरत पड़े तो उनकी चीज़ उन्हें वापस कर देनी चाहिए?”
“हाँ, मैं ये मानता हूँ।”
अभिनव को याद आया की एक दिन पहले उसने अपना बैट खेलने के लिए आनंद को दिया था।
लेकिन अब वो इसे किसी को नहीं देगा।
उसको यह सोच कर डर लगा कि कहीं आनंद उसे वापस ही नहीं करता तो?
“ठीक इसी तरह ये घर श्री बनर्जी का है और अब वो हमसे वापस चाहते हैं।
उन्होंने ये घर हम लोगों को तब दिया था, जब उनको इसकी ज़रूरत नहीं थी पर अब उनको इसकी ज़रूरत हैं,
इसलिए हमें अब उनको वापस दे देना चाहिए,”
अजिता ने समझाया, लेकिन वो जानती थी कि मासूम अभिनव को ये नहीं मालूम कि किराये के घर का क्या मतलब होता है।
इतनी छोटी सी उम्र के एक बच्चे को किराए के मकान का मतलब समझ भी नहीं आ सकता है।
वह सिर्फ यही जानता है कि वह उसका अपना घर है जहाँ वो बचपन से पला बड़ा है।
दुख की भावना से अजिता का मन भर उठा।
उस घर की सभी खूबसूरत यादें उसके मन में आने लगी वह शादी के बाद उसी घर में आई थी, उसके जीवन का एक नया चरण वहाँ से शुरू हुआ था।
उसे वहाँ बिताया हुआ हर पल याद आ रहा था।
इतने दिनों में पड़ोसियों के साथ भी एक घनिष्ठ संबंध विकसित हो गया,
सभी पड़ोसी एक साथ त्यौहार मनाया करते थे।
अभिनव ने वहाँ कभी भाई बहन न होने की कमी महसूस नहीं की क्योंकि वहाँ उसके बहुत से दोस्त थे जो उसके साथ काफी घुल मिल गए थे।
जीवन एक सुन्दर यात्रा की तरह बीत रहा था क्योंकि वहाँ हर दिन ख़ुशी और उल्लास से भरा होता था। यादों का एक झोंका अजिता के मन से गुज़र गया।
बनर्जी साहब के जाने के बाद अजिता विजय के पास आई तो उसने देखा, विजय की आँखों में आँसू थे और वो काफी परेशान लग रहे थे।
अजिता जानती थी कि क्यों वह असहाय सा महसूस कर रहे थे।
विजय एक साधारण और सच्चे व्यक्ति थे जो किसी भी परेशानी वाली बात पर जल्दी घबरा जाते थे।
इतने कम समय में नया मकान / New House खोजना न तो सिर्फ शारीरिक रूप से कठिन बल्कि भावनात्मक रूप से भी बहुत मुश्किल था।
जितना ज़्यादा वो सोच रहे थे उतना ही ज़्यादा परेशान होते जा रहे थे।
“चिंता मत करिये। हम इस समस्या का हल निकाल लेंगे।
हमें सिर्फ घर ही तो बदलना है,
बहुत से लोग तो हर साल घर बदलते हैं,
यह कोई बड़ी बात नहीं है।”
अपने चेहरे पे झूठी हँसी रखते हुए अजिता ने अपने पति से कहा।
परिवर्तन जीवन की वास्तविकता है, और उन लोगों को भी यह स्वीकार करना पड़ा।
अजिता ने अभिनव और विजय दोनों को साहस बंधाते हुए आगे आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किया।
सभी ने तय किया कि वे इस बदलाव को लेकर दुखी नहीं होंगे।
हालाँकि सभी यह जानते थे कि ये सिर्फ सांत्वना के शब्द हैं, लेकिन किसी के पास और कोई रास्ता नहीं है।
नया मकान / New House की तलाश तो करनी ही होगी।
दो दिन बाद अजय यात्रा से लौट आया और घर ढूँढने में उनके साथ शामिल हो गया।
आखिरकार उन लोगों ने नया मकान / New House ढूँढ लिया।
जिसमें जगह कम थी और किराया ज़्यादा। नया घर उनके उस घर से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर था, उन लोगों ने अजिता की परीक्षा शुरू होने से पहले ही जल्द से जल्द मकान बदलने की सोची।
हर कोई पैकिंग में व्यस्त था, लेकिन अजिता की सास इस दौरान बहुत परेशान थी और मकान बदलने को लेकर बहुत नाराज़ थी।
वह स्थिति को समझने के लिए तैयार नहीं थी।
घर बदलने वाले दिन:
“अरे बदमाशों! सामान को ध्यान से रखो।
तुम कोई भी अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हो।
अगर कोई भी सामान टूटा तो मैं तुम लोगों को एक कौड़ी भी नहीं दूँगी।”
अजिता की सास उन मज़दूरों पर चिल्ला रही थी जो सामान ट्रक पर चढ़ा रहे थे।
ट्रक जब नए घर पहुँचा और वह मजदूर सामान उतार रहे थे तब भी जया का गुस्सा नहीं रुक रहा था।
“मैं तुम लोगों से फिर कह रही हूँ मूर्खों! तुम लोग मेरी बात क्यों नहीं समझते?
सीढ़ियों पर सामान ठीक से चढ़ाओ। एक भी सामान टूटना नहीं चाहिए।”
वह दिन भर मजदूरों पर गुस्सा करती रही।
वे मज़दूर चुपचाप उनके गुस्से का सामना करते रहे, इसलिए क्योंकि शायद वो उनकी घर बदलने की पीड़ा को समझ रहे थे।
अजिता गत्तों से सामान निकालने में व्यस्त थी।
विजय और अभिनव छोटी सी जगह पर कुर्सी, फर्नीचर, और अन्य चीज़ों को व्यवस्थित करने में उसकी मदद कर रहे थे,
वह उनके लिए बहुत निराशाजनक दिन था, शायद इसलिए उस दिन अजिता काम करके थक गई थी।
“सभी लोग खाना खाने जाइए,” अजय ने जया, अजिता, विजय और अभिनव को बुलाया।
वो बाहर एक होटल से खाना लेकर आया था, क्योंकि रसोईघर व्यवस्थित नहीं हो पाई थी।
सभी को एक लंबे और व्यस्त दिन के बाद बहुत भूख लगी थी।
वे समय नष्ट न करते हुए तुरंत खाने की मेज़ पर पहुँच गए लेकिन अजिता की सासु माँ ने सबसे कह दिया था कि वो खाना नहीं खाएँगी क्योंकि उन्हें भूख नहीं है और वो सोने जाना चाहती हैं।
सभी जानते थे कि जया खाना क्यों नहीं खाना चाहती।
ये कोई पहली बार नहीं था जब उन्होंने ऐसा कहा था, जब भी वो गुस्से में या उदास होती थीं तो वह खाना खाने के लिए मना कर देती थीं।
अभिनव और विजय को खाने और अचार की खुशबू से मुँह में पानी आ रहा था, वह खाना खाने बैठ गये लेकिन अजिता अपनी सास के बिना खाना नहीं खाती थी।
हर बार की तरह वो उनको खाना खाने के लिए निवेदन करने गई।
एक लंबे मनुहार के बाद वह खाने के लिए सहमत हो गई।
तब सबने मटर पनीर, मलाई कोफ़्ता, मिश्रित सब्जी, गरम-गरम रोटियाँ और अचार के साथ आनंद लेकर खाया।
अजय ने उस अस्त-व्यस्त रसोईघर में किसी तरह चाय बनाने की व्यवस्था की।
स्वादिष्ट खाने ने उस दिन सभी को पूरे दिन हुई मानसिक और शारीरिक रूप से पीड़ा से राहत दी।
जल्द ही उनको एहसास हुआ।
वे कितना थक गए हैं और जिसे जहाँ जगह मिली वह वहीं सो गया।
बिना ये सोचे कि मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई है।
बल्कि उनका इंतजार कर रही है।