chapter 8 अजिता की उलझन
दोपहर के खाने में वह अभिनव की मनपसंद मटर पनीर की सब्जी और हलवा बनाने किचन में चली गई।
एक बजे बस की आवाज़ सुनाई पड़ी तो अजिता ने खाना टेबल पर लगा दिया और हलवा गरम करने के लिए चढ़ा दिया।
दस मिनट हो गए, अभिनव ऊपर नहीं आया तो उसने बालकनी से नीचे देखा।
बस तो न जाने कब की जा चुकी थी लेकिन उसे वहाँ कोई नहीं दिखा।
कहाँ रह गया अभिनव? हो सकता है कि सीढ़ियों पर बैठा हो।
वह दौड़ती हुई जीने पर गई और फिर नीचे देखा। कहीं नहीं दिखा वह।
मन घबरा गया, परेशान सी वह, उसने ज्योति के घर का दरवाजा खटखटाया जो अभिनव के साथ ही बस में जाती थी।
ज्योति का फ्लैट भी पहली मंजिल पर ही था।
उसी समय ऊपर आ गई थी, क्या अभिनव ऊपर नहीं आया ?” ज्योति की माँ, गुरिंदर ने पूछा।
“नहीं, ऊपर नहीं आया और वहाँ नीचे भी कोई नहीं है। मैं नीचे सब तरफ देख आई हूँ।” अजिता घबराई हुई बोली। उसका दिल बैठा जा रहा था और गला सुख रहा था।”
“घबराओ नहीं अजिता, इधर ही होगा।
अभिनव तो अभी ज्योति के साथ ही था।
मैंने बालकनी से दोनों को बस से उतरते हुए देखा था, फिर मैं ज्योति को खाना देने अंदर आ गई।
“कहाँ चला गया होगा?” अजिता को एक अंजान डर ने घेर लिया था।
“वह मुझसे गुस्सा होकर कहीं चला तो नहीं गया, सुबह-सुबह बेचारे को डाँट दिया था।
अगर वह पढ़ाई नहीं करना चाहता है तो न पढ़े।
वह इतना छोटा है अगर अभी नहीं पढ़ेगा तो कोई नुकसान नहीं हो जाएगा।
मैं क्यूँ इतना पीछे लग जाती हूँ।
हे भगवान मेरे बच्चे की रक्षा करना।
अब मैं उसे कभी कुछ भी नहीं कहूँगी। बस मेरे बच्चे को मुझसे मिलवा दो।”
“चलो अजिता सबके घर में चल के पूछते हैं कि कहीं वह किसी के घर न चला गया हो।”
अजिता को परेशान देखकर गुरिंदर ने कहा।
“मैं अपने घर में फिर से देख आती हूँ कहीं अब अंदर आ गया हो।”
मन में भगवान से प्रार्थना करते हुए अजिता चली गई।
सबसे पहले अपने बेडरूम में देखा।
बेड के नीचे झाँका।
उसके नीचे अभिनव के स्पोर्ट शूज पड़े थे।
मन उत्साह से भर गया।
दौड़ती हुई बाहर आई और बाथरूम मे झाँका।
वहाँ नहीं था फिर दूसरे कमरे में गई जहाँ अभिनव और अजिता की साथ सोते थे।
वह वहाँ भी नहीं था। उसका बैग भी नहीं दिख रहा था।
कमरा वैसा ही था जैसा अजिता ने थोड़ी देर पहले सफाई करके छोड़ा था।
अभिनव की सारी चीज़ें जो फैली थी वह अजिता ने समेटकर रख दी थी।
उस कमरे को देखकर लग नहीं रहा था कि अभिनव वहाँ आया हो।
अजिता का मन फिर से घबराने लगा वह तेज़ी से किचन में गई, वहाँ भी नहीं था।
एक बार फिर से वह सभी जगह देखने के लिए तेज़ कदमों से जाने लगीं तो जल्दी में उसका पाँव साड़ी में फँस गया और वह लड़खड़ा कर गिर गई।
गुरिंदर जो बाहर थी, आवाज़ सुनकर अंदर आई और अजिता को संभालते हुए बोली– “अजिता, तुम इतना क्यों परेशान हो रही हो?
अभिनव यहीं कहीं होगा, मिल जाएगा। देखो तुम्हारे हाथ में चोट लग गई है।
मैं बैंडेज लेकर आती हूँ।”
“नहीं गुरिंदर अभी नहीं।
पहले चलकर अभिनव को देखकर आते हैं।”
अजिता मुश्किल से खड़े होकर बोली।
उसकी आँखों में आँसू आ रहे थे।
दोनों घर से बाहर आ गए और अपनी बिल्डिंग के सारे घरों में देखने चली गई।
ज्योति अपने घर से अचानक दौड़ती हुई बाहर आई और सिढ़ियों पर बैठी अपनी मम्मी और अजिता को देखकर बोली,
“मम्मी, मैं अभी एक मिनट में आती हूँ।” यह कहकर जल्दी से सीढ़ियों से नीचे उतर गई।
“कहाँ जा रही है तू।” गुरिंदर भी उठी और ज्योति के पीछे नीचे उतर गई।
अजिता जो शिथिल सी बैठी हुई थी वह भी उठी और कुछ आशा के साथ नीचे उतर गई।
जब नीचे पहुँची तो उसे न गुरिंदर और न ही ज्योति कोई नहीं दिखाई दिए।
और लोग जो अभिनव को ढूँढने गए थे वह लोग कोई सड़क पर, कोई किसी दुकान पर या कोई आसपास के घरों से निकले हुए दिखे।
सभी के चेहरे पर निराशा दिख रही थी।
इतनी भीड़ वाली रोड पर उनका बच्चा कहाँ चला गया होगा किसी को कुछ पता ही नहीं चला।
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