खैर, जैसे तैसे उस दिन वह काम खत्म करके घर पहुँचे तो आठ बज गए थे। उस दिन उन्हें दिल्ली वाली घटना याद आई। पिछले साल वह और सुमन पड़ोस के पाण्डे जी के लड़के की शादी में दिल्ली गये थे। वहाँ सुमन की चचेरी बहन दिव्या और उसका पति निर्मल रहते है। दिव्या और निर्मल दोनो नौकरी करते हैं। घर से उनके ऑफिस करीब तीस-चालीस किलोमीटर दूर है। सुबह आठ बजे घर से निकल जाते है और शाम को नौ बजे से पहले घर नहीं पहुँचते है। अक्सर दस भी बज जाते है। उसकी बहन को तो शहर से बाहर भी जाना पड़ता है क्योंकि वह मार्केंटिंग में है।
अजीब जिंदगी है। शर्मा जी तो सोच कर ही घबरा गए कि वह लोग इतना काम कैसे कर लेते है। वह बात अलग है कि उनका रहन-सहन शर्मा जी के यहाँ से बिल्कुल अलग है। दिव्या के बहुत बुलाने पर शर्मा जी और सुमन उनके घर गए थे, तो उनका घर देखते ही रह गए थे। वह दिल्ली के पास एक अपार्टमेंट में रहते हैं। जगह बहुत ही खूबसूरत थी, शर्माजी ने इससे पहले उतनी अच्छी सोसायटी नहीं देखी थी। सोसायटी इतनी बड़ी थी कि अंदर बाजार, बैंक, स्कूल, क्लब और ना जाने क्या-क्या था। दिव्या ने फ्लैट शानदार चीज़ों से सजा रखा था। इतने आलीशान फ्लैट में वे लोग पहली बार आये थे। घर देखकर शर्माजी और सुमन दोनो के चेहरे सफेद पड़ गए। शर्मा जी के तो ईष्र्या से पेट मे जलन होने लगी। चाह के भी वो वहाँ हँस नहीं पा रहे थे। घर देखने में तो बहुत सुन्दर लग रहा था पर उनके मुँह से तारीफ नहीं निकल रही थी और न कुछ कहने को दिल कर रहा था। वह लोग वहाँ आये तो थे दो तीन घंटे के लिए थे लेकिन एक घण्टे से ज्यादा नहीं बैठ पाये। बात क्या करे यह समझ में नहीं आ रहा था। घूमफिर कर सुमन और दिव्या वही बचपन के दिनों की बातें करती रही।
दिव्या पढ़ाई में बहुत होशियार थी और सुमन को पढ़ाई के अलावा सब कुछ पसंद था। किसी तरह से सुमन ने स्नातक की और फिर उसकी शादी हो गयी। लेकिन दिव्या पढ़ती रही और आई॰ आई॰ एम॰ बैंगलोर से एम बी ए का कोर्स पूरा किया। वही उसकी मुलाकात निर्मल से हुई और बाद मे दोनों ने शादी कर ली। निर्मल आई॰ आई॰ टी॰ से इंजीनियर है और एम॰ बी॰ ए॰, आई॰ आई॰ एम॰ से किया था। दोनों की नौकरी बहुत अच्छी है और वेतन भी बहुत ज्यादा है। कई साल दिव्या और उसके पति विदेश में भी रहे, अब पाँच साल से दिल्ली मे रह रहे हैं। दिव्या कह रही थी कि अब वे लोग इधर-उधर कहीं नहीं जाएँगे। बच्चे बड़े हो रहे हैं तो स्कूल बार-बार बदलने से उनकी पढ़ाई में असर पड़ेगा। बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे थे और पढ़ाई में माँ-बाप की तरह ही बहुत होशियार है।
एक घंटा बैठने के बाद सुमन और शर्मा जी जाने के लिए उठ गए।
“अरे सुमन, इतने दिनों बाद मिले हैं और इतनी जल्दी जा रही हो?’ थोड़ी देर और बैठो। अच्छा लग रहा है। कितने दिनों बाद वह पुरानी बातें करके मज़ा आ रहा है।” दिव्या ने सुमन को अनुरोध के साथ कहा। सुमन, दिव्या के प्यार भरे अनुरोध को मना नहीं कर पायी और शर्मा जी के तरफ देखकर और उनकी आँखो का इशारा पा कर बोली,
“ठीक है दिव्या थोड़ी देर और रुक जाते है। हम लोगों को भी आप लोगों से मिलकर बहुत खुशी हुई, बड़ा अच्छा घर सजा रखा है तुमने।”
“मैंने नहीं, निर्मल ने घर सजाया है। तुम्हें तो मालूम है कि मैं अपना समान भी कायदे से नहीं रख पाती हूँ। बचपन के दिन याद है?’ मुझे कितनी डांट पड़ती थी और सब कहते थे कि सुमन से कुछ सीखो। तुम तो शुरू से ही घर के काम में बहुत होशियार थी। तुम्हारा घर अब भी बहुत व्यवस्थित रहता होगा?” यह कहते हुए दिव्या ने मुस्कुराते हुए शर्मा जी को देखा।
शर्मा जी मुस्कुराते हुए बोले,
“बात तो आप बिलकुल सही कह रही है। सुमन घर के कामों में बहुत निपुण है, सारा घर सुचारू रूप से चलाती है।” शर्मा जी घर का कोई काम करते नहीं थे, सुमन सारा काम खुद ही करती है और सभी की जरूरतों की ध्यान भी खुद ही रखती है। जैसा भी उनका साधारण घर था, उसे सुवस्थित रखती है। घर में जो भी आता था सुमन की निपुणता की तारीफ किये बिना रह नहीं पाता था। उस दिन उन्हें सुमन से भी जलन हो रही थी। पता नहीं क्यों उस दिन शर्मा जी को सबसे ईर्ष्या हो रही थी। उस जगह वो अपने आप को सहज महसूस नहीं कर रहे थे। निर्मल उनसे प्यार और इज्जत से बात कर था। पर वह भी उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था।
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