“अभी आये हुये कितने दिन हुए हैं। इतनी जल्दी थोड़े ही जाएँगे। सुनने मे आया है कि वह काफी कड़क मिज़ाज के है। वह खुद आठ नौ बजे के पहले घर नहीं जाते हैं,” गुप्ता जी चाय के चुस्की लेते हुए बोले। दोनों के चेहरे पर गुस्सा और मायूसी थी।
“इनके घर परिवार नहीं है क्या? भाई हम लोग परिवार वाले लोग हैं। समय पर घर पहुँच जाते हैं। कुछ समय परिवार के लिए भी तो निकालना चाहिए। सारा दिन तो ऑफिस मे नहीं रह सकते,” शर्मा जी चिढ़ते हुए बोले।
“अरे! छोटू, तुम्हारी दुकान के पास इतना कूड़ा क्यों जमा है? कितनी बदबू आ रही है।” गुप्ता जी चाय पीते हुए बोले।
“हाँ, मुझे भी बड़ी बदबू आ रही है।”
“सफाई क्यों नहीं करते? चाय पीने का सारा मज़ा ख़राब कर दिया।” शर्मा जी ने मुँह सिकोड़ते हुए कहा।
“साहब, यह मेरी दुकान की गंदगी नहीं है, यह तो सड़क के स्वीपर की स्ट्राइक चल रही है ना, उसकी बदबू है। अभी तो पहला दिन है, आगे आने वाले दिनों में देखिएगा कि शहर का क्या हाल होता है।” छोटू चाय के खाली कप उठाता हुआ बोला।
“अब इन स्वीपर को जाने क्या हो गया है। सैलरी पूरी लेंगे लेकिन काम नहीं करेंगे। चलो गुप्ता जी चलते हैं, यहाँ तो खड़ा होना मुश्किल है। वैसे भी ऑफिस में आज लोगों कि लाइन खतम करनी है।” शर्मा जी खिन्न से बोले।
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