गाँव का जीवन
“अम्मा, बहू तो आपकी रुप रंग से बहुत सुंदर है।
बातचीत भी अच्छी कर लेती है लेकिन अगर कामकाज़ नहीं जानती तो सब बेकार है।
सुना है कि पढ़ी लिखी है तो शायद उसकी माँ ने कुछ सिखाया भी नहीं।”
गाँव की एक महिला पड़ोसी अजिता की सास से कह रही थी।
“हाँ, काम तो अभी नहीं आता है पर धीरे धीरे सीख जाएगी।
अभी उम्र तो कम ही है उसकी।”
“हमने सुना है कि जब आप शादी होकर आई थी उम्र तो आपकी भी कम थी।
सोलह साल की उम्र में भी आप सारे काम में निपुण थी।
आपकी बहुरानी तो इतनी छोटी भी नहीं है, जो खा पीकर सोने चली गई है।” वह महिला हँसते हुए बोली।
“अरे! धीरे बोलो सुन लेगी वह। अभी थोड़ी देर पहले ही सोने गई है। उसके पहले मेरे साथ गेंहू साफ कर रही थी।” जया बोली।
इस बात पर वह महिला पहले हँसी और बोली “कोई बात नहीं अम्मा।
आपका मन न हो तो उससे काम मत कराओ लेकिन बाद में आप ही पछताओगी।
पता चला कि बहुरानी सो रही है और सासू माँ खाना बना रही है।
वह महिला यह कह कर चली गई। लेकिन अजिता की आँखों से उसकी अल्हना की खुमारी उड़ा दी और उसके अन्तर्मन को झकझोर कर रख दिया।
जब से वह गाँव में आई थी उसे इसी तरह की बातों का सामना करना पड़ रहा था। सभी आकर उसके रूप रंग की तो तारीफ करते लेकिन उसकी पढ़ाई और घर के काम काज़ का ताना जरूर मारते।
उसे उन औरतों पर बहुत गुस्सा आता।
“उन्हें क्या मतलब अगर उसे काम नहीं आता। उसकी अपनी सास को तो दिक्कत है नहीं।”
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“यह क्या कर रही हो भाभी?
लाइये रस्सी मुझे दीजिए।
मैं कुंऐ से पानी निकाल देता हूँ, औरतें पानी नहीं निकालती है। और आप तो बिलकुल नहीं।” बैग नीचे रख कर विजय का भाई अजय बोला।
वह उसी समय शहर से गाँव आया था।
बाहर अपनी भाभी को कुंऐ से पानी निकालते हुए देखा तो अपना सारा सामान उतार कर तेज कदमो से अंदर आ गया।
अजय और अजिता एक ही उम्र के थे, इसलिए अजय उसे अपने भाभी के रूप से ज्यादा हम उम्र की सहपाठी के रूप में देखता था।
वह अजिता के पढ़ाई में रुचि रखने से प्रभावित था क्योंकि उसने अपने परिवार की औरतों का पढ़ाई की तरफ रुझान बहुत कम देखा था।
भईया मैं रस्सी खीच लूँगी। मैं रोज़ ही सबके लिए पानी निकालती हूँ।
अजिता अचानक अजय को वहाँ देखकर हड़बड़ा गई थी।
“आप पानी की बाल्टी कुंऐ से खींच लेती हैं। मुझे तो लगता नहीं।” यह कहकर अजय ने ज़बरदस्ती रस्सी अपने हाथों में ले ली और बाल्टी ऊपर खींचने लगा।
अजिता वहाँ से हट गई।
“कब आए तुम यहाँ, भाभी का हाल चाल लेने आए हो।” पड़ोस की एक महिला ने अपनी छत से अजय को देखा तो बोली।
अजय मुस्कुराया और बोला- “हाँ चाची, भाभी का ही हाल लेने आया हूँ कि गाँव में रहकर कहीं गाँव वाली तो नहीं हो गई यह और देखिए सच ही निकला, यहाँ आकर पक्का गाँव वाली ही बन गई हैं।”
“गाँव वाली, अरे तुम्हारी भाभी एक महीने में बहुत काम सीख गई है।
इसे तो पहले कुछ भी नहीं आता था, अब तो सारे काम कर लेती है।
एक महीना और रहेगी तो निपुण हो जाएगी।”
“काम सीख गई है” अजय ने बाल्टी से रस्सी खोलते हुए चौंक कर कहा और अजिता की तरफ देखा।
दो दिन अजय वहाँ रहा तो देखा कि बारहवीं पास शहर की एक लड़की घर में झाड़ू पोंछा, बर्तन, कपड़े धोना, पानी भरना, चूल्हे में खाना बनाना और गेहूं साफ करना, जैसे काम कर रही है।
“अम्मा, भाभी यह सारे काम क्यों कर रही हैं। यहाँ क्या यह सब काम करने आई थी?” अजय अपनी माँ से बोला।
“तुम चुप रहो, बेकार की बातें मत करो।
औरतों को यह सारे काम तो आने ही चाहिए, ब्याह हो गया है।
क्या अब भी नहीं सीखेगी?”
“हाँ तो इतना सब काम एक साथ सीखने की क्या ज़रूरत है। धीरे-धीरे आ जाएगा। उनकी यह सब करने की आदत नहीं होगी।”
“आदत नहीं है तो पड़ जाएगी।
यही उम्र है सीखने की और हमने तो इतना भी कहा नहीं था।
वह तो अपने आप ही सब सीखकर कर रही है।
तुम ना टोको, वह कर रही है तो करने दो।
गाँव वाले मेरा मज़ाक बनाते नहीं थकते हैं कि पढ़ी लिखी बहू लाई हो तो घर के काम नहीं करेगी।”
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