Ajita chapter 4: अजिता की मज़बूरी
अम्मा का गुस्सा देखकर अजय चुप हो गया और उसने उसी दिन वापस शहर लौटने का मन बना लिया।
अजिता ने उसे रोकने की कोशिश की तो वह बोला,
“आपको जो करना है करीये और मुझे जो करना है मुझे करने दीजिए।
मैं यहाँ हँसने बोलने के लिए आया था।
लेकिन यहाँ किसी के पास बात करने का समय ही नहीं है।
वैसे भी मुझे शहर जाकर कॉलेज के लिए फॉर्म भरना है।
लग रहा है आपने तो घर ग्रहस्थी का फॉर्म भर दिया है।”
“नहीं भईया ऐसा नहीं है।
मैं भी फॉर्म भरूँगी।
आपको तो मालूम है कि मुझे पढ़ने का कितना शौक है।”
कहते-कहते अजिता का गला भर आया लेकिन खुद को संभालते हुए बोली,
“दरअसल मुझे वाकई में घर के काम बिल्कुल नहीं आते थे।
अब शादी हो गई है तो करना ही है।
इसलिए पहले मैं इन्हे सीख लूँ फिर पढ़ाई भी कर लूँगी।”
अजय ने भाभी का चेहरा देखकर और कुछ कहना ठीक नहीं समझा इसलिए बस इतना बोला,
“मैं अपना फॉर्म भरूँगा।
अगर आप कहें तो आपके लिए भी ले आऊँ।”
“नहीं अभी नहीं,” अजिता ने धीरे से मुस्कुराने की कोशिश की।
मन बहुत दुखी हो रहा था।
अजिता अंदर चली गई।
पता नहीं क्यों उसे अपने अम्मा और पिताजी की बहुत याद आ रही थी।
शादी के बाद वह उनसे मिल नहीं पाई थी।
“दिन अशुभ चल रहे हैं।”
ऐसा कहकर उसे गाँव भेज दिया गया।
यह शुभ और अशुभ दिन की बात उसे समझ नहीं आ रही थी।
माँ बाप से मिलने के लिए कौन सा दिन अशुभ हो सकता है।
वह लोग भी उसे बहुत याद कर रहे होंगे।
वह कभी भी उनसे दो दिन से ज़्यादा अलग नहीं रही थी।
उसे याद आया कि एक बार वह अपने मामा के साथ नानी के घर चली गई थी।
तब पिताजी तीन दिन बाद ही उसे लेने वहाँ आ गये थे।
वहाँ सब लोग हँसने लगे
नानी बोली “दामाद जी, अभी तो अजिता को यहाँ से ले जा रहे हो पर जब ससुराल जाएगी तो कैसे वापस लाओगे?”
उस समय अजिता को समझ नहीं आया था कि ससुराल से क्यों नहीं वापस ला पायेंगे लेकिन अब उसे एहसास हुआ कि ससुराल से बेटी को लाना कितना मुश्किल होता है।
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जैसे-तैसे अजिता ने गाँव में दूसरा महीना काटा और वापस शहर आ गई।
लौटते समय विजय उसे लेने आए थे।
जिद्द करके वह पहले अपने मायके गई।
अचानक बेटी दामाद को देखकर, पिताजी इतना खुश हुए कि शाम तक उनका बुखार उतर गया।
थोड़ी देर रुक कर अजिता और विजय अपने घर चलने को तैयार हुए।
माँ ने पता नहीं क्या अपनी बेटी की आँखो में पढ़ लिया था कि चलते समय बोली, “अपना भी ध्यान रखना।
खुद खुश रहोगी तभी किसी और को भी खुश रख पाओगी।”
अजिता ने माँ को भरोसा दिलाते हुए कहा, “आप परेशान नहीं होइए अम्मा।
आपकी दी हुई शिक्षा मुझे हमेशा याद रहेगी।”
माँ अपनी बेटी का हाथ पकड़कर बैठ गई, तभी विजय की आवाज़ सुनाई दी।
“अजिता जल्दी करो अब चलना चाहिए घर में सब सोच रहे होंगे कि हम लोग कहाँ रह गए होंगे।
बाहर निकलते समय विजय के चेहरे पर कुछ परेशानी साफ दिख रही थी।
वह जिस बात के लिए डर रहा था वह मुसीबत मिश्रा आंटी के रूप में सामने से आ रही थी।
“अजिता अपने मम्मी-पापा से मिलकर ससुराल जा रही थी इसलिए वह बहुत खुश थी लेकिन विजय बहुत डरे हुए थे।
रास्ते में उसने अजिता को मायके जाने वाली बात किसी को ना बताने के लिए कहा।
वह लोग जब घर पहुँचे तो उस समय वहाँ केवल अजय था।
चाचा-चाची और उनके बच्चे किसी रिश्तेदार के घर गये थे।
विजय की जान में जान आई यह देखकर कि घर में कोई और नहीं था।
अजिता ने सामान अपने कमरे में रखा और सबके लौटने के पहले खाना तैयार करने के लिए तुरंत किचन में चली गई।
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