शर्मा जी सुबह से जितना भारी महसूस कर रहे थे, अब उतना ही हल्का महसूस कर रहे थे। गुनगुनाते हुए अपनी सीट पर बैठ गये और फाइल खोल दी। सामने दुष्यंत जी बैठे अपनी फाइल पूरा होने का इंतजार कर रहे थे। उनका काम तो जरा सा था पर शर्मा जी उन्हें तीन बार से लौटा रहे थे। लोगो को एक काम के लिए कम से कम दो तीन बार तो बुलवाते ही थे, लेकिन उस दिन शर्मा जी का मूड अच्छा था तो उन्होंने दुष्यंत जी का काम दो मिनट में ही कर दिया और उन्हें बुलाकर कहा,
“दुष्यंत जी आपका काम हो गया, यह पेपर्स ले जाइए, बाकि सारी सुचना आपको ई-मेल पर भेज दी जायेगी।”
“तो फिर अब कब आना होगा?” दुष्यंत जी दुविधा में दिख रहे थे। पिछली बार वह जब आये थे तो शर्मा जी के मिज़ाज देखकर, लग रहा था कि उन्हें कई बार चक्कर लगाने पड़ेंगे। इसलिए, जब काम इतनी जल्दी और आसानी से हो गया तो उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था।
“आपका काम हो गया है। आप जाइए, अब आने की जरुरत नहीं पड़ेगी,” शर्मा जी ने उन्हें समझाते हुए कहा।
“अरे साहब, बहुत-बहुत धन्यवाद आपका,” हाथ जोड़ते हुए दुष्यंत जी बोले। उन्हें देखकर लग रहा था कि वह खुशी के कारण रो देंगे। शर्मा जी को भी बड़ा आश्चर्य हुआ कि दुष्यंत जी इतना भावविहल क्यों हो गए हैं। दुष्यंत जी का काम होता देखकर उनके बाद के नंबर पर बैठे दिनेश जी का भी हौसला काफी बढ़ गया था। वह जल्दी से उठ खड़े हुए और हाथ जोड़ कर बोले,
“शर्मा जी, आज आप मेरा काम भी करवा दीजिये, आठ-दस बार आ चुका हूँ, पर फाइल वहीं की वहीं है। प्लीज करवा दीजिये।”
दिनेश जी हाथ तो जोड़े थे लेकिन उनकी आवाज़ में कुछ तल्खी थी। शर्मा जी को अच्छा नहीं लगा। वह किसी का काम अपनी मर्ज़ी से करते थे या कोई उनके सामने गिड़गिड़ाए तो कर देते थे नहीं तो कम से कम पाँच-छः चक्कर जरूर लगवाते थे। कोई एक बार आये और उसका काम हो जाये, ये उन्हें कतई पसंद नहीं था। लोग लाईन लगा कर खड़े हो और रिक्वेस्ट कर रहे हो, शर्मा जी के मन को तभी शांति पहुँचती है।
“इस दिनेश को तो मैं अच्छा मज़ा चखाऊँगा,” शर्मा जी ने सोचा लेकिन फिर याद आया कि एक दिन पहले ही बड़े साहब ने उन्हें अल्टीमेटम दिया था।
“कहीं दिनेश बड़े साहब के पास न पहुँच जाये, नहीं तो सब गड़बड़ हो जायेगी। पर मज़ा तो चखाना ही है। कुछ दिमाग लगाता हूँ।”
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