उधर उस दिन शर्मा जी ऑफिस में काफी व्यस्त दिख रहे थे। चाय पीने भी नहीं उठे, वही सीट पर ही मंगा ली। दोस्तों के बुलाने पर उन्होंनें जवाब दिया,
“काम बहुत है, आप लोग जाइए।” दोस्त भी समझ रहे थे कि शर्मा जी किसी बात से खफ़ा है पर ‘किससे और क्यों?’ यह किसी को समझ नहीं आ रहा था।
“क्या बात है शर्मा जी, आज मिज़ाज कुछ बदले-बदले लग रहे हैं?” त्रिपाठी जी ने बिरयानी लेते हुए पूछा।
“बताईये न शर्मा जी, आप इस तरह चुप-चुप अच्छे नहीं लग रहे है। कोई परेशानी है तो बताईये,” गुप्ता जी ने उन्हें ध्यान से देखकर कहा, जैसे वह शर्मा जी का चेहरा देखकर कुछ समझना चाहते हों।
“कुछ नहीं, कोई बात नहीं है। सब ठीक है,” शर्मा जी ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा।
“क्या सुमन भाभी से झगड़ा हुआ है?’ वैसे बिरयानी वाकई बहुत उम्दा बनी है,” सक्सेना जी ने हँसते हुए कहा।
किसी को यह समझ में नहीं आ रहा था कि शर्मा जी क्या छुपा रहे हैं। लेकिन वह भी ऐसे मानने वाले नहीं थे, कारण जाने बगैर उन्हें भी चैन नहीं आ रहा था और शर्मा जी का चुप रहना भी किसी को अच्छा नहीं लग रहा था। बिरयानी बहुत अच्छी थी इसलिए उन्होंने सोचा कि पहले खाना आराम से खा ले, फिर बाद में शर्मा जी को चाय पिलाने ले जाएँगे और तभी पूछ लेंगे।
“शर्मा जी, अब तो बता दीजिये, क्या बात है?’ आपने अगर नहीं बताया तो आज का खाना पचेगा नहीं। क्या हम लोग आपके दोस्त नहीं है?’ अगर हमे नहीं बताएँगे तो किसे बताएँगे।” गुप्ता जी ने हक जताते हुये कहा।
गुप्ता जी का ऐसा कहना और शर्मा जी जैसे गुब्बारे की तरह फूट पड़े,
“क्यों पीछे पड़े हो सुबह से?’ सारी परेशानी तुम लोगों से ही है। रोज़ मेरा खाना खाते हो और मेरा ही मज़ाक उड़ाने में सबसे आगे रहते हो।”
“अरे शर्मा जी, क्या कह रहे है आप?’ आप खुद ही अपना खाना खिलाते है और हम भी तो आपको अपना खाना ऑफर करते है। हमारा खाना भी ठीक ही बनता है। कभी-कभी आप भी तो हमारा टिफिन शेयर करते हैं, हम तो आपको कुछ नहीं कहते।” गुप्ता जी ने सफाई दी लेकिन थोड़ा शरमा भी गए क्योंकि असलियत तो सब जानते थे कि शर्मा जी रोज़ सबके लिए ज्यादा खाना लाते थे। सुमन भाभी के हाथों के बने हुए खाने का मज़ा ही अलग होता था।
“देखिये शर्मा जी यह बात सही है कि हम सब आप का टिफिन ज्यादा खाते हैं, पर इस तरह से बेइज्जती करना ठीक नहीं है। आखिर हम सब दोस्त है।” मिश्रा जी नाराजगी जताते हुए बोले।
“बड़े दोस्त बनते है, आज बड़ी जल्दी बेइज्जती हो गयी तुम लोगों की और कल जब तुम लोग मेरा मज़ाक उड़ा रहे थे तब तो बड़ा मज़ा आ रहा था,” शर्मा जी बोले।
सबके चेहरे पर प्रश्न-वाचक भाव देखकर शर्मा जी समझ गए कि उन सब को समझ नहीं आया है कि शर्मा जी का इशारा किस ओर है, सो वह तुरंत बोले,
“कल जब बड़े साहब ने मुझे बुलाया था तो तुम लोग मिलकर मेरा कितना मज़ाक बना रहे थे।” यह कहते कहते शर्मा जी का चेहरा कुछ शर्म से और कुछ गुस्से से लाल हो गया।
दोस्त सारा माज़रा समझ गए और वक्त की नज़ाकत को देखते हुए उन्होंने शर्मा जी से माफी माँगना ही उचित समझा।
“अरे शर्मा जी, आप तो बुरा मान गए। हमारा वह मतलब नहीं था, भला हम आपका मज़ाक क्यों उड़ाएंगे?’ वह तो जरा मस्ती कर ली थी,” सक्सेना जी ने सफाई दी।
“हाँ शर्माजी, हम आपका मज़ाक नहीं उड़ा सकते?’ हमें उस समय लगा नहीं था कि आप इतना बुरा मान जायेंगे, नहीं तो भगवान कसम हम लोग ऐसा बिलकुल नहीं कहते,” गुप्ता जी धीरे से बोले और सच में किसी को भी यह नहीं लगा था कि शर्मा जी इतना बुरा मान जाएँगे।
“शर्मा जी, अब हमें माफ कर दीजिये और गुस्सा थूक दीजिये, हम कान पकड़ते है।” सक्सेना साहब ने अपने कान पकड़ते हुए कहा।
“शर्मा जी उन्हें देखकर मुस्कुराना नहीं रोक सके।” यह देखकर सभी ने शर्मा जी के कंधे में हाथ रख कर गले लगा लिया तो गुस्सा कहीं ‘बरसात की मिटटी की तरह पानी में बह गया।’
“चाय ले लीजिये साहब, ठंडी हो जाएगी।” छोटू की आवाज़ सुनकर सभी की नज़र मेज़ पर रखी चाय पर पड़ी। शर्मा जी के गुस्सा होने की वजह से उस दिन उनकी खास खिदमत हुई और एक सिगरेट सभी दोस्तों की तरफ से उन्हे फ्री में मिली। फ्री की सिगरेट का मज़ा ही कुछ और है, और वह भी तब जब जिगरी दोस्तों ने पिलाई हो।
“शर्मा जी, भाभी जी से कहिएगा कि बिरयानी बहुत बढ़िया थी,” मिश्राजी मुस्कुराते हुए बोले,
“तो कल क्या लाएँगे शर्मा जी।”
सक्सेना साहब की इस बात पर सभी ने जोर का ठहाका लगाया।
“तो तुम लोग खाने की वजह से मुझसे दोस्ती किये हो।” शर्मा जी बोले और फिर सभी हँसते हुए अपनी-अपनी सीट की तरफ चले गये।
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