स्कूल काउंसलर से अगर बात की जाए तो वो बताते हैं कि अक्सर प्री-टीन और टीन्स जब किसी इशू को लेकर उनके पास आते हैं तो जब उनसे कहते हैं कि बच्चे अपने पैरेंट्स से ये चीज डिस्कस करे तो बच्चों का जवाब क्या होता है कि मेरे पैरेंट्स मुझे समझते नहीं है, वो मुझे डांटेंगे गुस्सा करेंगे, ब्लेम करेंगे या लेक्चर देंगे। अपने इशूज वो फ्रेंड्स के साथ डिस्कस करते हैं। अपनी प्रॉब्लम्स को लेकर कई बार वो गूगल करते हैं। उससे अपना सलूशन ढूंढने की कोशिश करते हैं। रेडिट या कोरा जैसी वेबसाइट में जाकर अपनी प्रॉब्लम्स लिखते हैं और वहां से वो सलूशन ढूंढते हैं। कई बार उससे अच्छे सलूशंस मिल जाते हैं। लेकिन पैरेंट्स ये आपके लिए गलॉमिंग सिचुएशन है कि बच्चे अपने इशूज आप से न डिस्कस करके आउटसाइड वर्ल्ड से पूछ रहे हैं। यह बात जरूर सोचनी चाहिए। इस आर्टिकल में हम लोग बात करेंगे कि पेरेंट्स से कहां पर चूक हो जाती है कि बच्चे आपके पास नआकर, बाहर वालों से अपनी प्रॉब्लम डिस्कस करते हैं।
बच्चों का comparison मत करिये :
इस प्रॉब्लम का सलूशन ढूंढने के लिए सबसे पहले हम लोग जानने की कोशिश करेंगे कि हम लोग पैरेंट्स बनते क्यों हैं तो कुछ रीजन्स होते हैं। मोस्टली लोगों का रीजन होता है कि हमें फैमिली कंप्लीट करनी है, हमारे सुख दुख का कोई साथी चाहिए, अपना सपोर्ट सिस्टम चाहिए। इसके लिए वो बच्चों को अपनी जिंदगी में शामिल करना चाह रहे हैं। फिर जब बच्चा आपके सामने आता है तो आप पूरा समय बच्चों के सपने पूरा करने में लगाते हैं और उनको रेज करने में लग जाते हैं। प्रॉब्लम तब शुरू होती है जब आपके उनसे एक्सपेक्टेशन होने लगती हैं और आप सोचते हैं कि इस बच्चे को हम ऐसा बनाएंगे और आप एक मॉडल बना के अपने दिमाग में रख लेते हैं। उसी तरह से जब कोई आता है और आपके बच्चों को किसी और से कम्पेयर करता है या आप खुद उसको किसी और से कंपेयर करना शुरू करते हैं तो वहां से प्रॉब्लम शुरू हो जाती है। बच्चे ने चलना शुरू किया आपका कोई और मिलने वाला है और उसने कहा कि अच्छा इसने इतना लेट चलना शुरू करा। मेरा बच्चा तो इस एज में बोलना तक शुरू कर दिया था और वहीं से ये प्रॉब्लम कॉम्पेटिशन की स्टार्ट हो जाती है। कहीं न कहीं हम लोग आगे रहना चाहते हैं और उसी रेस में भूल जाते हैं कि हम बच्चे की परवरिश कर रहे हैं।
पैरेंट बच्चों के गाइड बने :
उसको एक गाइड की जरूरत है। हमारा रोल ऐसे गाइड की है जिसमे हमे पूरा फोकस उनकी तरफ रखना है और फिर जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं आउटसाइड वर्ल्ड से मिलते हैं। कई फ्रेंड्स बनते हैं उनके कजिन्स होते हैं सबसे उनका कंपैरिजन कहीं न कहीं स्टार्ट हो जाता है। और आपके मन का जो 1 ड्रीम है अपने बच्चे को कुछ बनाने का वो आपको आपके बच्चे से थोड़ा सा अलग कर देता है। आपका फोकस ही चेंज हो गया। जो पैरेंटिंग का मेन फोकस था कि आप बच्चे को अच्छे से रेज़ करेंगे। वहां वो बच्चा एक प्रोडक्ट की तरह बन जाता है और आप उसको बेस्ट बनाने की कोशिश करने लग जाते हैं। कभी हम लोगो के पास ये टाइम नहीं होता। ये सोचने का कि बच्चों को किस चीज की जरूरत है, वो क्या करना चाहते हैं, वो कैसा सोच रहे हैं और उन्हें हमसे क्या एक्सपेक्टेशन है।
बच्चों से ज्यादा एक्सपेक्टेशन मत रखिये :
हम चाहते हैं कि वो हमेशा नंबर वन रहे हैं। नोट ओनली पढ़ाई में, परफॉर्मेंस में भी, एक्टिविटीज में भी, अच्छे से बिहेव भी करें, हमारी बात भी माने, फैमिली के ट्रेडिशन्स को भी फॉलो करें। सब कुछ हम करवाना चाहते हैं। लेकिन क्या बच्चे भी हम लोगो से कुछ एक्सपेक्ट कर रहे हैं, ये नहीं सोच पाते हैं। वो आपसे अपने लिए सपोर्ट चाहते हैं।तो बच्चे जैसे हैं। अगर आप उनको वैसे ही देखेंगे, वैसे ही उनको एक्सेप्ट कर लेंगे तो आपका उनके बीच में रिलेशन बहुत स्ट्रॉंग रहेगा। वो आपसे कनेक्टेड फील करेंगे और पैरेंट्स आपको मालूम है कि जो बच्चे अपने पैरेंट्स से कनेक्टेड फील नहीं करते, वो कई बार लाईफलॉंग, बहुत लोनलीनेस फील करते हैं। आपने देखा होगा कि बहुत से अडल्ट और बहुत बड़े बड़े लोग भी कई बार बहुत लोनली फील करते हैं। और उसका खास कारण यह होता है कि उनका कनेक्ट अपने पैरेंट्स से उतना स्ट्रॉंग नहीं होता जितना होना चाहिए।
Read Also:
बच्चों में आत्म सम्मान के निर्माण में माता पिता की भूमिका
बच्चों को आशावादी कैसे बनाये ?
सेल्फ क्रिटिकल होने से कैसे बचे
जजमेंटल मत बनिए, बच्चों को समझिये :
बहुत सी बातें जो वो अपने पैरेंट से एक्सपेक्ट करते थे वो नहीं पूरी हो पाई , वो उनसे खुल के बात नहीं कर पाते थे। क्यों? क्योंकि पैरेंट्स हमेशा जज करते हैं, मोस्टली जज करते हैं। इसलिए पेरेंट्स आपको समझना है कि बच्चों की रिक्वायरमेंट क्या है? उनकी कुछ साइकोलॉजिकल नीड्स हैं जो पेरेंट्स को पूरी करना मस्ट है। अगर आप बच्चों को नहीं समझेंगे तो और कौन समझेगा? तो बच्चों को समझना शुरू करिये। सम झने का मतलब यह है कि आप उनको पहले जैसे वो हैं, वैसे एक्सेप्ट करिए, उनकी स्किल्स, पोटेंशियल्स, उनका बिहेवियर सब कुछ पहले एक्सेप्ट करिए कि वो ऐसे ही हैं। वो आप ही के तो हैं। पहले उनको पूरी तरह से एक्सेप्ट करिए और फिर उनको मोटिवेट जरूर करिए कि वो अच्छे बने। पर किसी और की तरह ने वो जैसे हैं। अपना बेस्ट करें, कोशिश करिये उनको समझने की।
बच्चों से कनेक्टेड रहिये :
पहले उनको पूरी तरह से एक्सेप्ट करिए और फिर उनको मोटिवेट जरूर करिए कि वो अच्छे बने, पर किसी और की तरह नहीं। कोशिश करिये और जिस दिन आप इसकी कोशिश करेंगे, आप देखेंगे कि आपके बच्चे आपसे ही हर बात कहना चाहेंगे। वो कहीं और जाना ही नहीं चाहेंगे। बच्चे हमसे क्या चाहते हैं, वो हमें चेंज नहीं करना चाहते हैं। वो जैसे हम हैं, उसमें बहुत खुश होते हैं। उनको कभी ऐसा नहीं कहते सुना होगा कि उनकी मम्मी बहुत अच्छी हैं या उनके पापा बहुत अच्छे हैं। क्या कभी ऐसा हुआ कि हम लोग ने कभी अपने पैरेंट्स को चेंज करने की सोची कि वो ऐसे होते या वो ऐसे करते? नहीं। वो जैसे हैं हम लोगो के लिए वो बेस्ट हैं। लेकिन पेरेंट्स हमेशा बच्चों को चेंज करना चाहते हैं।
बच्चों को सपोर्ट करें :
बच्चों की एक्सपेक्टेशन क्या होती है। वो चाहते हैं कि पेरेंट्स का पूरा फोकस उनके ऊपर है। उनको अनकंडिशनली प्यार करे, उनकी बात को सुने, उन्हें समझें और जब जरूरत हो तो उनको सपोर्ट करें। पेरेंटका रोल गाइड का है। आपको बच्चों को सही दिशा में रखना है, पर ऐसा नहीं है कि उनको चेंज कर देना है। बच्चों को समझिए, उनकी स्किल्स के परे उनके इंटेलिजेंस लेवल, उनके पोटेंशियल केपरे एक्सपेक्टेशन को मत रखिए। हर बच्चा इंजीनियर नहीं बन सकता। उसको जबर्दस्ती कोटा मत भेज दीजिये। समझने की कोशिश करिए कि वो उसकी लाइक है कि नहीं, उसकी पसंद है कि नहीं, उससे हो पाएगा कि नहीं। बच्चों को अनकंडीशनल लव करिए बस यही वो आपसे चाहते है।
निष्कर्ष :
अगर आप उनको पूरी तरह से समझ लेंगे, उनको सुनेंगे, उनके साथ रहेंगे, टाइम देंगे, हर सिचुएशन में को सपोर्ट करेंगे तो बच्चे आपसे दूर नहीं जाएंगे। उनकी लाइफ में कोई भी इशू आएगा तो वो आपके साथ बैठ के ही डिस्कस करेंगे। तो पेरेंट्स आप बच्चों को इस दुनिया में इसलिए लाए हैं कि आप उनके गाइड बने, उनको सपोर्ट करें, उनको प्यार करें और सुखख में उनके साथ रहें। ये पर्पस है कम्प्लीट फैमिली का। इस फैमिली के एसेंस को अपने कॉम्पिटिटिव वर्ल्ड से कंपैरिजन की वजह से डिस्ट्रॉय मत करिए। यह आपका अपना वर्ल्ड है, इसके साथ रहिए, इसको आउटसाइड वर्ल्ड से कोई कॉम्पिटिशन की जरूरत नहीं है। अपने आप से कॉम्पिटिशन करें, अपना बेटर वर्जन बने, उसकी जरूरत है। सो इस आर्टिकल का क्रक्स यह है कि पैरेंट्स अपने बच्चों को समझें और उनके साथ रहे, उनको मोटिवेट करते रहे, गाइड बनकर रहें और कोशिश करें कि बच्चे हर तरह के इशू के लिए आपके पास जाएं। आउटसाइड वर्ल्ड में न जाएं। तो मिलते हैं नेक्स्ट आर्टिकल में किसी नए टॉपिक के साथ में। तब तक इस आर्टिकल को लाइक शेयर करिए और कमेंट करके बताइए कि यह आपको कैसा लगा।
