बच्चों में आत्म-सम्मान के निर्माण में माता-पिता की भूमिका

Father and mother kissing her daughter

Synopsis

बच्चे की तारीफ करना जरूरी है, लेकिन इसे समझदारी से करना चाहिए ताकि इसका बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव पड़े।

आत्म-सम्मान को आत्म-मूल्य के रूप में जाना जाता है।

आत्मसम्मान का मतलब है कि आप अपने बारे में अच्छा महसूस करते है यानी खुद की respect  करें। ।

यह बताता है की व्यक्ति खुद को कितना पसंद करता है और अपनी खुद को कितना appreciate  करता है।

हम समाज में रहते हैं, और society  में सब तरह के लोग होते है वही कुछ ऐसे लोग भी मिलते हैं जो हमेशा आत्मविश्वासी होते है और खुद पर गर्व करते हैं।

ऐसे लोग चाहते है की हर कोई उन्हें पसंद करे और उन्हें स्वीकार करे 

समाज उनकी strength और  कमज़ोरी दोनों को देखता है, समझता है और उन्हें स्वीकार भी करता है।  society को उनकी क्षमताओं पर भी विश्वास होता है। Negative experiences उनके पूरे perspective को नहीं बदलते हैं, इसलिए वे अपनी आवश्यकताओं को व्यक्त करने का साहस करते हैं।

हमें अपने बारे में अच्छे से सोचना चाहिए तभी हम यह कह सकते है की ऐसे लोग अपने पूरे अस्तित्व में एक सकारात्मक दृष्टिकोण रख पाएंगे। 

ये लोग कुछ नया करने की हिम्मत रखते हैं।

हमें कभी भी अपने प्रयास में हार नहीं माननी चाहिए क्योंकि अगर हम अपनी गलतियों को स्वीकार करेंगे तो  आखिकार हमें अपने जीवन में सफलता जरूर मिलेगी। और हम  दोस्त बना भी सकते हैं और उन्हें स्वस्थ और मजबूत भी रख सकते हैं।

इसके विपरीत, हम कुछ ऐसे लोगों को भी देखते हैं जिनमे अपने जीवन में हुए नकारात्मक अनुभवों को स्वीकार करने का साहस नहीं होता है। कुछ में आत्मविश्वास की कमी होती है और इसलिए वे अपनी आवश्यकताओं को व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं।

वे अपने बारे में अच्छा महसूस नहीं करते हैं और अक्सर अपनी कमजोरियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो अंततः उन्हें depression और चिंता की ओर ले जाती हैं।

लोग self -critical और स्वयं के प्रति कठोर हो जाते हैं और अपनी क्षमता और कौशल पर संदेह करने लगते हैं। साथ ही वे यह भी सोचने लगते है की वो daily activities  करने के लायक नहीं हैं।

इसलिए उनका मानना है कि अगर वे कुछ नया करने की कोशिश करेंगे तो उन्हें अपने जीवन में सफलता नहीं मिलेगी।

ऐसे लोग अपनी गलतियों को अपने से बड़ा देखते हैं। और इसलिए उनके लिए उन चीजों से उबरना कठिन होता है। जब वे अच्छा नहीं करते हैं और एक बार असफल हो जाते है तो वे कोशिश करना छोड़ देते हैं। नतीजतन, वे उतना अच्छा नहीं कर पाते  जितना वे कर सकते थे।

अपने नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण, वे अपने जीवन में कुछ हासिल नहीं कर पाते हैं इसलिए वे पराजित और उदास महसूस करते हैं और इसके चलते वह गलत रिश्तों का चुनाव कर लेते है जो की बाद में destructive  साबित होते है। वह जिस potential  के साथ जी सकते थे वो वह नहीं कर पाते। 

वह कौन सा कारक है जो लोगों के बीच उपरोक्त दो विरोधाभासी दृष्टिकोणों की ओर ले जाता है?

“आत्मसम्मान कारक  है।”

आत्म-सम्मान को आत्म-सम्मान या आत्म-मूल्य के रूप में जाना जाता है।

आत्मसम्मान का मतलब है कि आप अपने बारे में अच्छा महसूस करते हैं।

यह इंगित करता है कि एक व्यक्ति खुद को कितना पसंद करता है और उसकी सराहना करता है।

आत्मसम्मान का महत्व:

1 जीवन भर प्रेरणा और सफलता के निर्माण में आत्म-सम्मान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2 कम आत्मसम्मान वाला व्यक्ति गलत विकल्प चुन सकता है, विनाशकारी रिश्तों में पड़ सकता है, या अपनी पूरी क्षमता तक जीने में विफल हो सकता है। वह कभी-कभी पराजित या उदास महसूस कर सकता है।

3 स्वस्थ आत्म-सम्मान होने से व्यक्ति को वह हासिल करने में मदद मिलती है जो वह जीवन के प्रति अपने सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण चाहता है।

4. उच्च आत्म-सम्मान होने से व्यक्ति स्वस्थ संबंध बनाए रख सकता है।

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बच्चों में आत्म-सम्मान के निर्माण में माता-पिता की भूमिका:

बच्चों के जन्म के बाद, उन्हें अपने अस्तित्व के बारे में पता नहीं होता है।

यह केवल सकारात्मक ध्यान, प्यार भरी देखभाल और स्वीकृति से होता है; कि वे धीरे-धीरे अपनी उपस्थिति के प्रति सचेत महसूस करते हैं।

वे सुरक्षित, प्यार और स्वीकृत महसूस करते हैं, और यही वह समय है जब शिशुओं को  जीवन में आत्म-सम्मान के बारे में बताया जाता है।

धीरे-धीरे यह बच्चों में प्यार और देखभाल के माहौल से बढ़ने लगता है।

इस स्तर पर माता-पिता की भूमिका आवश्यक है।

जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं  वे स्वयं की कुछ गतिविधियाँ करना सीखते हैं।

रेंगने, बैठने, चीजों को पकड़ने, चलने, खड़े होने, दौड़ने आदि जैसे नए कौशल सीखने पर वे अपने बारे में अच्छा महसूस करने लगते हैं।

जब भी वे नई गतिविधियाँ सीखते हैं, तो इससे उन्हें अपने आत्म-सम्मान को बढ़ाने का मौका मिलता है।

आत्म-सम्मान बढ़ाने में मदद करने वाले कारक हैं:

जब वे दोस्त बनाते हैं और उनके साथ मिलते हैं, नए कौशल सीखते हैं, पसंदीदा गतिविधियों का अभ्यास करते हैं, उनके उत्कृष्ट व्यवहार के लिए उनकी प्रशंसा की जाती है और इसी तरह, उनमें आत्म-सम्मान विकसित होता है।

यदि उन्हें नई और कठिन चीजों पर प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, तो ऐसी गतिविधियाँ उन्हें आत्म-सम्मान को बनाने में मदद करती हैं।

हर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चों में स्वस्थ आत्म-सम्मान हो लेकिन हर बच्चा अलग होता है, और कुछ के लिए आत्म-सम्मान की भावना लाना चुनौतीपूर्ण होता है।

इसका कारण यह है कि कुछ बच्चो को शारीरिक अक्षमता, डराने-धमकाने आदि जैसी चीजों का सामना करना पड़ता है जो उनके आत्म-सम्मान को कम कर सकता है। हालाँकि, माता-पिता बच्चों का आत्म-सम्मान बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।

माता-पिता अपने बच्चों के आत्म-सम्मान को बढ़ाने के लिए क्या कर सकते हैं,

यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं जो माता-पिता को बच्चों में आत्म-सम्मान को बनाने में मदद कर सकते हैं।

1 बच्चों को एक्टिव बनाएं-

हर उम्र में, ऐसी गतिविधियाँ होती हैं जो एक बच्चा कर सकता है, जैसे एक कप  पकड़ना या क्रेयॉन से एक रेखा खींचना आदि। ऐसी चीज़ें बच्चों में खुशी और चमक लाती हैं। वे इसमें sense of ownership और प्रसन्नता की भावना महसूस करते हैं।

जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, वे नई चीजें जैसे कपड़े पहनना, दौड़ना, पढ़ना आदि सीखते हैं। ये सभी गतिविधियाँ उनके आत्म-सम्मान को बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

जब बच्चे नई चीजें सीख रहे होते हैं, तो माता-पिता को उनके कार्यों को पूरा करने में मदद करनी चाहिए।

2 उन्हें गलतियाँ करने दें।

अगर वे गलतियाँ करते हैं, तो भी माता-पिता को उन्हें discourage नहीं करना चाहिए। जब भी वे कोई काम पूरा करें तो बच्चों पर तो गर्व महसूस करें  और उन्हें एहसास भी कराये की आपको उन पर गर्व है। 

3 अपने बच्चों की प्रशंसा करें-

बच्चे की तारीफ करना जरूरी है, लेकिन इसे समझदारी से करना चाहिए ताकि इसका बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव पड़े। इसे प्रभावी होने के लिए ही किया जाना चाहिए। अगर कोई बच्चा काम पूरा करने को तैयार है तो उसकी सराहना की जानी चाहिए।

4 एक आदर्श बनें-

माता-पिता को अपने बच्चों में आत्म-सम्मान बढ़ाने के लिए अच्छे रोल मॉडल के रूप में कार्य करना चाहिए। बच्चो को अपनी दैनिक गतिविधियों जैसे खाना बनाना, घर की सफाई करना, कपड़े धोना, खरीदारी करना आदि दिखाकर माता-पिता बच्चों को उनके खिलौने साफ करना, उनके बिस्तर बनाना, होमवर्क करना आदि गतिविधियों को सीखने में मदद कर सकते हैं।

5 कठोर आलोचना न करे –

बच्चो की कभी भी कठोर आलोचना मत करें। इससे बच्चे अपने बारे में नकारात्मक धारणा बना लेते है। और यह उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है।

इसलिए जब भी वे कोई गलती करें तो माता-पिता को शांत रहना चाहिए और बच्चों को धैर्य और समझ के साथ उनको समझाने की कोशिश करनी चाहिए। कभी भी कड़वे शब्दो  का प्रयोग न करें।

6 बच्चों को उनकी पसंद को पहचानने दें-

माता-पिता को अपने बच्चों को वह काम करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए जो बच्चों को पसंद हो।

माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के कौशल को पहचानें और उनमें सुधार करने के लिए उन्हें प्रेरित करें।

अगर किसी बच्चे को पेंटिंग, डांसिंग आदि पसंद है तो उसे सपोर्ट करना चाहिए।

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7 दान देने का अभ्यास कराये –

बच्चो को दूसरों की मदद करना और धर्मार्थ गतिविधियाँ करना सिखाये जो की आत्म-सम्मान बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण साधन है।

इसलिए, अपने बच्चों को दूसरों की मदद करने के लिए छोटे-छोटे काम करने के लिए प्रोत्साहित करें जैसे किताबें इस्तेमाल करने के बाद दान करना या अपने इस्तेमाल किए हुए कपड़े किसी अनाथालय में दान करना आदि।

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Anshu Shrivastava

Anshu Shrivastava

मेरा नाम अंशु श्रीवास्तव है, मैं ब्लॉग वेबसाइट hindi.parentingbyanshu.com की संस्थापक हूँ।
वेबसाइट पर ब्लॉग और पाठ्यक्रम माता-पिता और शिक्षकों को पालन-पोषण पर पाठ प्रदान करते हैं कि उन्हें बच्चों की परवरिश कैसे करनी चाहिए, खासकर उनके किशोरावस्था में।

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