माता-पिता को अपने बच्चों की भलाई के लिए कुछ पेरेंटिंग टिप्स को याद रखना चाहिए-
1. बच्चों के लिए एक सकारात्मक रोल मॉडल बनना:
माता-पिता अपने बच्चों के लिए रोल मॉडल होते हैं। बच्चे अक्सर अपने माँ बाप की आदतें देख कर ही सीखते है । इसलिए, जब माता-पिता अपने रोजमर्रा के तनाव, जीवन की चुनौतियों और समस्याओं से अच्छी तरह निपटते हैं, तो वे बच्चों को दिखाते हैं कि उन्हें अपने जीवन में ऐसा कैसे करना है। और बच्चे जीवन में अपनी चुनौतियों और तनाव का मुकाबला करने के लिए शांत और flexible रहना सीखते हैं।
जबकि जब कोई माता-पिता किसी कठिन परिस्थिति को गलत तरीके से संभालते हैं, तो उनके बच्चे भी अपने जीवन में ऐसा ही करना सीखते हैं।
2. बाहरी सहायता की आवश्यकता:
मनुष्य स्वभाव से सामाजिक है। एकांत जीवन को शांति से व्यतीत करना कठिन है। माता-पिता को यह याद रखना चाहिए की हम सभी को दैनिक जीवन की गतिविधियों को करने के लिए लोगों के समर्थन और साथ की आवश्यकता होती है । इसलिए माता-पिता को बच्चों को अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और अन्य लोगों के साथ मजबूत संबंध स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
इससे बच्चों को जीवन भर उनके साथ रहने के लिए एक मजबूत समर्थन प्रणाली विकसित करने में मदद मिलेगी।
3. बच्चों का अच्छी तरह से ध्यान रखना :
रोजमर्रा की जिंदगी में हम सभी को अपने निकट और प्रियजनों पर ध्यान देने की जरूरत होती है; बच्चों को भी अपने माता-पिता का ध्यान रखने की जरूरत है। जब माता-पिता उनके विचारों को सुनते हैं तो वे अच्छा और महत्वपूर्ण महसूस करते हैं।
मुस्कुराना, सिर हिलाना और गले लगाना जैसे gestures बच्चों को माता-पिता द्वारा ध्यान देने के उदाहरण हैं और माता-पिता को यह याद रखना चाहिए कि इस तरह बच्चों में आत्म-मूल्य और आत्म-सम्मान का विकास होता है।
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4. अपना स्नेह दिखाना और बताना:
इस तरह जब लेखक कहानी या नावेल लिखते हैं तो वह अपने पात्रों की भावनाओं को शब्दों द्वारा नहीं बल्कि उनके व्यवहार से प्रकट करते हैं। उसी तरह से वास्तविक जीवन में भी हमें अपनी भावनाओं को अपने व्यवहार से व्यक्त करना चाहिए नाकि केवल शब्दों द्वारा बताना चाहिए।
माता-पिता को अपने बच्चों को यह बताना चाहिए कि वे अपने बच्चों से कितना प्यार करते हैं। इसको बताते समय वह प्यारभरी मुस्कुराहट और गले लगाने जैसे भाव लाने चाहिए।
उसके साथ-साथ ‘मैं तुमसे प्यार करती हूं’, या ‘मैं तुमको पसंद करती हूं’ जैसे वाक्यांशों का उपयोग करने से आपके बच्चे सुरक्षित और प्यार महसूस करते हैं।
5. बिना शर्त स्वीकृति:
इस दुनिया में कोई भी परफेक्ट नहीं है। हम सभी में कुछ बुराइयां होती हैं, लेकिन हम उन्हें स्वीकार नहीं करते। यह मानव स्वभाव है कि हम स्वयं पूर्ण होना चाहते हैं और हम दूसरों से भी यही अपेक्षा रखते हैं।
अपूर्णताओं की स्वीकृति एक दुर्लभ वस्तु है।
यही गलती तब भी होती है जब माता-पिता अपने बच्चों को जज करते हैं। वे अपने बच्चों को वैसे ही स्वीकार नहीं करते जैसे वे हैं। माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे किसी और की तरह हों। इससे बच्चे अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं।
बच्चों को आत्मविश्वासी और सुरक्षित बनाने के लिए, माता-पिता को अपने बच्चों को बिना शर्त स्वीकार करना चाहिए। ‘मैं तुम्हें पाकर बहुत भाग्यशाली हूं’, ‘तुम मेरे सितारे हो’ और ‘नन्ही परी’ जैसे वाक्यांशों का उपयोग करने से बच्चे सुरक्षित और स्वीकार्य महसूस करवा सकते हैं।
6. बच्चों की बात ध्यान से सुनें:
किसी भी अप्रिय स्थिति या घटना के कारण जब बच्चे आहत, दुखी या क्रोधित महसूस करते हैं, तो माता-पिता को उनकी बात ध्यान से सुननी चाहिए। माता-पिता को उस समय बहस या मार्गदर्शन नहीं करना चाहिए। जब माता-पिता ध्यान से उनकी बात सुनते हैं, तो बच्चों को सुकून मिलता है। और उन्हें लगता है कि वे अपनी बुरी भावनाओं के साथ अकेले नहीं हैं। इस प्रकार, वे बड़े होने पर खुद को और दूसरों को आराम देने के स्वस्थ तरीके सीखते हैं।
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7. स्पोर्ट्स एक्टिविटीज में समय बिताएं:
मस्ती का समय अपने बच्चों के साथ जुड़ने का सबसे अच्छा समय है। और स्पोर्ट्स एक बहुत ही मजेदार स्पोर्ट्स एक्टिविटीज है। बच्चों के साथ खेलने के कई फायदे हैं, लेकिन इसका सबसे अच्छा हिस्सा उन्हें बेहतर तरीके से जानना है। यह माता-पिता को बच्चों की भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्थिति को समझने में मदद करता है। माता-पिता को यह महत्वपूर्ण पहलू याद रखना चाहिए।
स्पोर्ट्स एक्टिविटीज से बच्चों में शारीरिक, कल्पना और सामाजिक कौशल का भी विकास होता है।
8. उनके विचारों का स्वागत करें:
माता-पिता को कभी-कभी लगता है कि बच्चे परिपक्व तरीके से सोचने के लिए बहुत छोटे हैं। और इस तरह, वे बच्चों के विचारों को कम समझते हैं। माता-पिता का यह रवैया बच्चों को महत्वहीन महसूस कराता है और उनमें हीन भावना पैदा हो जाती है। इसलिए माता-पिता को बच्चों की भावनाओं, विचारों की कद्र करनी चाहिए। इससे उन्हें महसूस होता है कि वे जो सोचते हैं और कहते हैं वह महत्वपूर्ण है। इससे बच्चों में आत्मविश्वास की भावना विकसित होती है।
9. बच्चों के साथ सहानुभूति रखें:
चीजों को बच्चों के नजरिए से देखना अच्छा होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि माता-पिता को हमेशा बच्चों से सहमत होना पड़ता है। इसका मतलब सिर्फ इतना है कि माता-पिता बच्चों की भावनाओं और दृष्टिकोण को समझते हैं।
जब बच्चे अपने माता-पिता द्वारा समझे जाते हैं, तो वे दूसरों को समझना सीखते हैं।
सहानुभूति बच्चों को जीवन भर अन्य लोगों से जुड़ना सिखाती है।
१० . बच्चों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सिखाना:
बच्चे कई भावनाओं से गुजरते हैं, उदाहरण के लिए, चोट, भय, खुशी, दुख, निराशा आदि। हालांकि, कई बार अपने अंतर्मुखी स्वभाव के कारण बच्चे अपनी भावनाओं और विचारों को किसी के साथ साझा नहीं करते हैं। यह उनके व्यक्तित्व में जटिलताएं पैदा करता है। इसलिए, माता-पिता को यह बताना चाहिए कि अन्य लोग अपनी भावनाओं को क्यों शेयर करते हैं इससे बच्चों में भावनाओं को व्यक्त करने का महत्व समझ आएगा।
(ध्यान दें कि भावनाओं को शेयर करने से व्यक्ति मनोवैज्ञानिक रूप से स्थिर, भावनात्मक रूप से मजबूत और मानसिक रूप से सक्रिय रहता है।)
10. स्क्रीन पर प्रतिबंध (टीवी, कंप्यूटर, स्मार्टफोन) समय:
दो साल से कम उम्र के बच्चों को कोई भी स्क्रीन नहीं देखनी चाहिए और दो साल के बाद वे दिन में एक घंटे से भी कम समय में देख सकते हैं। बड़े बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम भी कम होना चाहिए। यह उनकी दृष्टि को प्रतिकूल प्रभाव से बचाएगा
स्क्रीन देखने के बजाय उन्हें पार्कों में दोस्तों के साथ खेलना चाहिए, किताबें पढ़नी चाहिए और नई गतिविधियां सीखनी चाहिए। इससे उन्हें अपने स्वास्थ्य और ज्ञान में सुधार करने में मदद मिलेगी।
11. किताब पढ़ने की आदत विकसित करें:
पुराने जमाने में दादी-नानी बच्चों को लोक कथाएँ सुनाया करती थीं। इससे बच्चों में जिज्ञासा पैदा होती थी और वे लोगों की कई अलग-अलग संस्कृतियों और परंपराओं से परिचित होते थे। एक अच्छी कहानी सूक्ष्म रूप से बच्चों को मूल्य सिखाती है।
कहानी सुनाने के माध्यम से माता-पिता बच्चों को उन लोगों के बारे में सिखा सकते हैं जो दूसरों के प्रति दया, समझ दिखाते हैं। अभिभावकों को बच्चों को किताबें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। वे उनके जन्मदिन पर किताबें भेंट कर सकते हैं।
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