अगर पेरेंट्स को ऐसा लगता है कि उनके बच्चों के साथ में कुछ गलत हो रहा है तो वह कुछ बातों का ध्यान रखें।
कुछ दिन पहले रोहित का नाम टॉप 100 यंगेस्ट सीआईओ की लिस्ट में देखकर खुशी से ज्यादा आश्चर्य हुआ था।
करीब 25 साल पहले मेरे पड़ोस में रोहित का परिवार रहता था।
वह लोग सीधे साधे मध्यमवर्गीय लोग थे। रोहित दुबला, पतला कमजोर सा दिखने वाला बच्चा था।
बोलने में कभी कभी हक़लाता था इसलिए वह बहुत कम बोलता था।
रोहित जैसे-जैसे क्लास में बढ़ता जा रहा था उसका परफॉर्मेंस खराब होता जा रहा था।
वह खिन्न सा बना रहता था और किसी से कोई बात नहीं करता।
दिन भर अपने कमरे में बंद रहने लगा और किसी भी एक्टिविटी में उसकी कोई रुचि नहीं रह गई थी।
उसके माँ-बाप दोनों बहुत परेशान रहने लगे। जब बहुत खोजबीन की गई तो पता चला कि स्कूल में कुछ बच्चे उसे बहुत परेशान करते थे।
उसकी कमजोरियों का मिलकर मज़ाक बनाते थे और अगर रोहित कुछ कहता तो उसे मार भी देते थे। आजकल इसे बुल्लिंग कहते हैं।
यह जानकर मां बाप को बहुत धक्का पहुंचा।
जिस बच्चे को माँ-बाप जी जान से चाहते हैं और फूल की तरह पालते हैं, उसे ऐसे दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा था।
यह सहन करना उनके लिए असहनीय था लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
स्कूल टीचर्स, काउंसलर, डॉक्टर की मदद से रोहित पर ध्यान देना शुरू किया।
कुछ दिन बाद से रोहित में कुछ बदलाव दिखना शुरू हो गया था।
तभी उसके पापा का ट्रांसफर दूसरे शहर हो गया और वह सब साथ में चले गए।
तब से उनका हाल कभी मिला नहीं।
उस दिन न्यूज़पेपर में जब रोहित का नाम पढ़ा तब पता चला कि वह हमारे ही शहर में है।
रोहित में इतना बदलाव कैसे आया उसका कारण साफ था कि उसकी समस्याओं को सही ढंग से डील किया गया होगा।
नहीं तो उस बच्चे का भविष्य अंधकारमय भी हो सकता था।
स्कूल कॉलेज और सोसाइटी में कई बार देखा जाता है कि कुछ बच्चे दूसरे बच्चों को डराते हैं धमकाते हैं, बदमाशी करते हैं और चिढ़ाते हैं।
ऐसा एक बच्चा भी कर सकता है या कई बार ग्रुप बनाकर भी बच्चों को परेशान किया जाता है, इसको बुलिंग कहते हैं।
बुलिंग दो तरह से हो सकती है।
1 बच्चे एक दूसरे को फिजिकल चोट पहुँचा सकते हैं।
2 उनको मेंटली या इमोशनली परेशान कर सकते हैं। जैसे बच्चों का मजाक उड़ा कर, चिढ़ाकर, उनकी नकल बनाकर, उनकी किसी कमी को बार-बार कह कर।
जिन बच्चों के साथ ऐसा होता है वह अधिकतर या तो बहुत मोटे होते हैं या बहुत पतले होते हैं।
उनमें कोई एक अटपटी चीज होती है जो उनको बाकी बच्चों से अलग रखती है – जैसे या तो वह चश्मा पहनते हैं या उनके कपड़े या हेयर स्टाइल अलग होता है।
वह नये स्कूल से आए होते हैं। उनको फिजिकली कमजोर माना जाता है।
वह किसी प्रकार से पहले से ही डिप्रेशन या सेल्फ एस्टीम के शिकार होते हैं। इस तरह के बच्चे पॉपुलर नहीं होते हैं और उनके फ्रेंड्स भी कम होते हैं।
वह दूसरों के साथ अच्छी तरह से मिल नहीं पाते हैं और बहुत जल्दी उनको कोई बात बुरी लग जाती है। वह बहुत जल्दी झगड़ जाते हैं और गुस्सा हो जाते हैं।
बुलिंग को रोकना जरूरी है?
बुलिंग को रोकना बहुत जरूरी है क्योंकि जिन बच्चों के साथ ऐसा होता है। उनके ऊपर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
1.वह मानसिक रूप से परेशान हो जाते हैं और कई बार वह डिप्रेशन में चले जाते हैं। वह दुखी और अपने आप को बहुत अकेला महसूस करते हैं।
2.पढ़ाई में मन नहीं लगता है। स्कूल जाने का मन नहीं होता है क्योंकि वह डरते हैं कि अगर स्कूल जायेंगे तो वहाँ फिर से उनकी परेशानी बढ़ेगी।
3. उनके सोने और खाने का पैटर्न भी चेंज हो जाता है। पढ़ाई में उनके स्टैंडर्ड भी गिर जाते हैं और वह स्कूल की किसी एक्टिविटी में पार्टिसिपेट नहीं करते हैं।
4. ऐसे बच्चे किसी को जल्दी कुछ नहीं बताते हैं क्योंकि वह अपने आप को बहुत हेल्पलेस फील करते हैं।
5. कभी-कभी बच्चे अपने माँ-बाप को इसलिए नहीं बताते हैं क्योंकि उनको लगता है कि उनके माँ-बाप इस बात के लिए उनकी कोई मदद नहीं कर पाएंगे।
अक्सर ऐसा होता भी है कि बड़े लोग समझ भी नहीं पाते हैं कि सिचुएशन कितनी सीरियस है क्योंकि उनको बुलिंग के बारे में ज्यादा मालूम नहीं होता।
6. कई बार वह खुद ही इस चीज को हैंडल करना चाहते हैं। वह डरते हैं कि उनको कमजोर मान लिया जाएगा।
वह कोई बात किसी से कहने में इसलिए भी डरते हैं कि उनको लगता है कि शिकायत करने से शायद उनकी प्रॉब्लम और बढ़ जाएगी।
7. बच्चों के लिए एक तरह का बहुत ही शर्मनाक एक्सपीरियंस होता है इसलिए भी वह शर्म की वजह से भी किसी को नहीं बताते हैं।
वह अधिकतर अपने आप को अलग सा महसूस करते हैं, उनको लगता है कि कोई उनकी परवाह नहीं करता है इसलिए भी वह किसी को नहीं बताते हैं।
उनको यह भी डर लगता है कि वह बच्चे भी उनको छोड़ देंगे , जो उनका साथ देते हैं।
इस प्रकार से बहुत तरह – तरह की परेशानियों का सामना उन बच्चों को करना पड़ता है।
अगर पेरेंट्स को ऐसा लगता है कि उनके बच्चों के साथ में कुछ गलत हो रहा है तो वह कुछ बातों का ध्यान रखें।
1. क्या बच्चों को किसी तरह की इंजरी दिख रही है जिसका कारण वह बता नहीं पा रहे हैं कि वह किस वजह से हुई है।
2. उनके कपड़े, बुक्स या कोई और सामान खो जाता हो।
3 .अक्सर ही उनको सर दर्द या पेट दर्द होता है या किसी तरह की सिकनेस हो जाती है जिसकी वजह से वो स्कूल नहीं जाना चाहते हैं।
4 खाने का भी पैटर्न एकदम अचानक से बदल जाता है। वह अक्सर खाना छोड़कर कुछ और चीजें खाने लगते हैं। उनके सोने का भी पैटर्न चेंज हो जाता है। और अक्सर रात में जागते रहते हैं।
5 उनका पढ़ाई में इंटरेस्ट कम हो जाता है उनके ग्रेड कम हो जाते हैं। स्कूल की अलग एक्टिविटीज में भी नहीं जाना चाहते हैं।
6 उनके फ्रेंड्स भी अचानक बहुत कम हो जाते हैं और उनका सेल्फ एस्टीम भी काफी लो हो जाता है।
7 वह अक्सर घर पर इरिटेट हो जाते हैं कभी कभी घर से भागने की बात करते हैं। वह कभी-कभी खुद को नुकसान पहुँचाने की भी बात करते हैं।
अगर इस तरह का कोई भी लक्षण दिखाई पड़ता हैं तो तुरंत एक्शन लेना चाहिेए।
पेरेंट्स क्या कर सकते हैं ?
1 पेरेंट्स को अपने बच्चों का क्लास न्यूज़ लेटर और पैरेंट्स को स्कूल से मिली हुई किसी सूचना को घर पर देखना चाहिए। स्कूल की वेबसाइट चेक करते रहना चाहिए।
2 स्कूल में जो इवेंट्स होतें है उसमें जरूर देखना चाहिए।
3 बस के ड्राइवर को भी अच्छी तरह से ग्रीट करना चाहिए ताकि वह बस में बच्चे का ध्यान रख सके।
4 टीचर और काउंसलर से अक्सर जाकर मिल लेना चाहिए ताकि स्कूल की एक्टिविटी का पता चलता रहे।
5 साधारणतया बच्चे अपने स्कूल में हुई बुलिंग के बारे में पैरेंट्स को नहीं बताते हैं, तो पेरेंट्स के लिए मालूम करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए बच्चों के साथ कुछ बातें करके देखें। उनसे बुलिंग के बारे में बात करें। और यह बताएं कि बुलिंग क्या होती है।
6 बच्चों को यह बताएं कि कभी भी स्कूल या सोसायटी में इस तरह की कोई वारदात होती है तो घर में पैरेंट्स या अपने टीचर को इस के बारे में बताएं।
7 बच्चों को यह बताएं कि बुलिंग होना उनकी गलती नहीं है बल्कि यह उन बदमाश बच्चों की गलती है जो ऐसा करते हैं।
इसलिए बुलिंग होने पर बड़ो को या टीचर्स को बताना बहुत जरूरी है। और जरूरत पड़े तो साइकॉलजिस्ट या काउंसलर से भी मदद लेनी चाहिए।
अगर बच्चे के साथ बुलिंग हो रही है तो पेरेंट्स और बच्चों को क्या करना चाहिए।
1 ऐसे केस में बच्चों के साथ पेरेंट्स, टीचर को मिलकर इस परिस्थिति का कोई हल निकालना चाहिए। अपने बच्चों को समझाएं कि वह खुद लड़ाई ना करें।
2 सबसे पहले बच्चों को उन्हें सेफ फील कराना चाहिए। बच्चों को तरीका समझाएं कि अगर उनके साथ ऐसी कोई घटना होती है तो उन्हें क्या करना चाहिए।
3 स्कूल में अकेले ना रहे, बच्चों के साथ ही रहे और बुलिंग करने वाले बच्चों से दूर रहे।
स्कूल में अकेली जगह जैसे बाथरूम या लॉकर अकेले ना जाए। कोई परिस्थिति ऐसी ना होने दें जिसमें उन्हें बुलिग की आशंका हो।
4 उनको यह बताना चाहिए कि यह उनकी गलती नहीं है।
5 स्कूल में जो बच्चे परेशान कर रहे हैं उनसे इन बच्चों को अलग कर देना चाहिए।
6 यह मालूम करने के लिए कि घटना के समय क्या हुआ था वहाँ मौजूद बच्चों से अलग-अलग पूछना चाहिए।
7 बुलिंग करने वाले बच्चे इस तरह से परेशान करते हैं कि उनकी यह बात बड़ों तक ना पहुंचे।
इसलिए पेरेंट्स को अपने बच्चों को यह समझाने की जरूरत होती है कि अगर कोई इस तरह की बात क्लास में हो रही है तो वह टीचर्स को जरूर बताएं।
यह बताना कायरता नहीं है बल्कि शक्ति की निशानी है।
8 बुलिंग रोकने के लिए बहुत जरूरी है कि उसकी पहचान जल्दी ही कर ली जाए।
जैसे ही कोई बुलिंग करना शुरू करता है उसको वहीं रोक दिया जाना चाहिए नहीं तो उसकी ताकत बढ़ती जाती है।
9 इसलिए बच्चों को मुखर बनाना चाहिए ।
“मुखर” होने का मतलब है, अपनी बात को दृढ़ता पूर्वक कहना, बिना किसी डर के, बिना किसी संकोच के, अपना आत्म सम्मान ध्यान रखते हुए और दूसरों का निरादर बिना करते हुए अपनी बात को कहना।
अगर किसी बच्चे के अंदर यह कौशल है तो उसे कहीं पर भी एडजस्ट करने में कोई प्रॉब्लम नहीं होती है।
10 बुलिंग करने वाले बच्चे को भावहीन होकर दृढ़ता के साथ प्रतिक्रिया देना बहुत जरूरी है।
जब बच्चे दृढ़ता के साथ प्रतिक्रिया देते हैं तो इसका प्रभाव अनुकूल पड़ता है।
बुली करने वाला इस व्यवहार से हतोत्साहित हो जाता है उसको इस बात का एहसास हो जाता है कि उसकी बात का दूसरे पर असर नहीं हो रहा है।
11 इस तरह की परिस्थिति से निपटने के लिए सही बॉडी लैड्ग्वेज रखने का तरीका सिखाये।
बिना किसी से डरे, बिना किसी से नाराजगी के कैसे आत्मविश्वास के साथ जवाब देना है इसके लिए कैसी बॉडी लैड्ग्वेज तैयार करें।
12 इसके लिए उन्हें सिखाएं कि वो बुली करने वाले बच्चों को सामने और सीधे आँखों में देख कर बात करें।
शांत रहें और उससे थोड़ा दूरी बनाए रखें। जब उस बुली से बात करें तो उसका नाम लें।
इतना करने पर स्कूल और सोसाइटी में बच्चों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार से बचा आ सकता है।
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