निराशावादी और अस्वास्थ्कर विचार अक्सर नाकारात्मक विचारो को बढ़ावा देती है। लम्बे समय तक ऐसी सोच बने रहने से लोग डिप्रेशन की ओर अग्रसर हो जाते है। इसलिए लोगो को निराशावाद से डील करना सीखना चाहिए और साथ में यह भी सीखना चाहिए कि कैसे आशावादी बनें।
निराशावाद को डील करना सीखने से पहले यह समझना आवश्यक कि कितने प्रकार के नकारत्मक विचार होते है।
१. सोच जिसमे लोग अपने आप को या तो परफेक्ट मानते है या फिर असफल । इस वर्ग के लोग हमेशा ही परफेक्ट बनना चाहते है ।उनके परफेक्शन के अपने स्टैंडर्ड है और उससे नीचे का लेवल उन्हें स्वीकार नहीं । जब उनके लक्ष्य उस स्तर तक नहीं पहुँचते तो वे अपने आप को असफल मानलेते है ।
उदाहरण – अगर यह परफेक्ट नहीं हुआ तो मैं हमेशा असफल ही रह जाऊंगा।
२. प्रत्येक को जीवन में कभी न कभी असफलता का सामना करना पड़ता है । कुछ ही लोग है जो जीवन में फेल होने पर अपने आप को हारा हुआ मान लेते है। वे यह विश्वास करने लगते है कि वे जीवन में कभी सफल नहीं होंगे।
उदाहरण – मैं गिटार नहीं बजा सकता इसलिय मैं किसी भी चीज़ में सफल नहीं हो सकता।
३. लोग जो जीवन में हुए नकारत्मक घटनाओ पर ज्यादा ध्यान देते है और सकारत्मक पलो को नज़र अंदाज करते है वे हमेशा नकारत्मक ही रहते है । वे उन्ही चीज़ो को नोटिस करते है जो गलत हो रही होती है वजाय उनक॓ जो सही हो रहा हो ।
४. कुछ लोग दिए गए कार्य को करने की कोशिश करने के बजाय सीधे निष्कर्ष पर पहुंच जाते है । वे अपने ऊपर फेलियर, मूर्ख और हारा हुआ जो किसी काम का नहीं आदि का लेबल लगा लेते है।
उदाहरण – मैं इस कार्य के लिय॓ इतना अयोग्य हुं कि मुझसे सब चीज़े खराब हो जाएगी ।
५. हम ऐसे कुछ लोगो को देखते है जो अपने बनाये हुए रूल्स और रेगुलेशन को मानते है।
अगर उन्हें ऐसी किसी परिस्थिति का सामना करना पड़े तो उन्हें वो नियम तोड़ने पड़ते है, उन्हें ऐसा करने में मुश्किल होती है। वे इस प्रकार के कार्यो को अनैतिक मान लेते है और अपने बारे में नकारत्मक सोचने लग जाते है ।
ऊपर दिए गए विभिन्न वर्ग है नकारत्मक विचारो के ढांचे की। अगर कोई व्यक्ति यह पहचान कर लेता है कि उसकी सोच निराशावाद की तरफ जा रही है तो वे उसी समय विचारो को नकारत्मकता से सकारत्मकता में बदल सकता है।
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लोगो को अपनी भावनाओ को नियंत्रण करने के लिए खुद से कुछ सवाल पूछने चाहिए।
१) अपनी भावनाओ पर फोकस करके उन्हें अपने आप से यह सवाल पूछना चाहिए कि वह उस समय क्या सोच रहे है।
२) क्यों वे इस तरह सोच रहे है? क्या उनके पास कोई सबूत है कि उनके विचार सही है या गलत ? तर्क शक्ति के द्वारा लोग यह जाँच सकते है कि उनकी भावनाएं यथोचित है या नहीं ।
३) परिस्थितियों का पुनर्विचार कर लेना अच्छा है जिससे यह समझ में आ जाये कि चीज़ो को इतनी गहराई तक ले जाना सही है अथवा वास्तविक परिस्थिति इससे अलग है और वैसी नहीं है जैसा वे सोच रहे थे।
४) लोग उसी परिस्थिति में किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में जानकारी ले सकते है कि वह व्यक्ति उसी परिस्थितियों में कैसी प्रतिक्रिया करेगा? या वह कोई दूसरा निर्णय लेगा।
५) कोशिश करके परिस्थितियों को अलग नजरिए से देखें। कुछ नया और सृजनात्मक विकल्पों को ढूढ़ना चाहिए। अपने विवेक से विचारों को सही दिशा दें।