अस्वीकृति और जीवन में सम्मान खोने से कैसे निपटें?

A man sitting on the chair and playing guitar

Synopsis

जीवन में तिरस्कार का सामना करना और अपमानित होना, यह बहुत विषम स्थिति होती है।

जीवन में तिरस्कार का सामना करना और अपमानित होना, यह बहुत ही विषम स्थिति होती है। और ऐसी स्थिति में अगर व्यक्ति के पास कोई दुख दर्द बांटने वाला ना हो तो यह और भी मुश्किल हो जाता है।ऐसी परिस्थिति में अगर कोई इंसान यह सोचता है कि उसके जीवन में कभी कुछ ठीक नहीं होगा तो यह कोई असामान्य बात नहीं है। क्योंकि जो भी व्यक्ति ऐसी परिस्थिति में होगा वह ऐसा ही सोचेगा।

ऐसी परिस्थिति जीवन में दो कारणों से हो सकती है।

१ जब कोई व्यक्ति अनुपयुक्त हो 

२ जब कोई व्यक्ति अक्षम हो 

उपर्युक्त कारणों में से किसी एक कारण से भी जब कोई व्यक्ति अपना सम्मान खो देता है तो उसके दिल में बहुत चोट लगती है। अगर ऐसी स्थिति का विश्लेषण करें तो दो स्थितियां मिलेंगी।

 पहली, अगर आप ने कुछ गलत किया है तो आप लोगों का सम्मान खो देंगे। हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है कि वह काम गलत ही हो। किसी और के दृष्टिकोण से वो काम गलत होगा पर आपके दृष्टिकोण से वो काम सही भी हो सकता है। अगर आपको ऐसा लगता है कि आप गलत नहीं है, केवल आपकी राय के अलग है, तो आप अपने आप को अपमानित नहीं महसूस करें।

लेकिन अगर आपको लगता है कि आप ने कुछ गलत किया है तो अपनी गलतियों को स्वीकार करें और उन्हें सही करने का प्रयास करें।ऐसी स्थिति में आप को यह याद रखना होगा कि मनुष्य अपने जीवन में गलतियां कर सकते हैं। कोई भी इंसान ऐसा नहीं होता है जिसने कभी कोई गलती ना की हो। हम सभी अपनी गलतियों से ही सीखते हैं इसलिए अगर आप ने कुछ गलत किया है तो खुद को क्षमा करें और अपमानित ना महसूस करें।

दूसरा, अगर आपको किसी चीज के लिए अनुपयुक्त कहा जाता है तो आप अपने आप को अयोग्य और बेकार महसूस करते हैं। इस बात के लिए आप शर्मिंदा और अपमानित भी महसूस करते हैं।

इस बारे में मैं यह कहना चाहूंगी कि हम लोगों को हमेशा दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना सिखाया जाता है। हम बचपन से ही यह सीखते आए हैं कि दूसरों का सम्मान करो, आदर करो, उनके साथ अच्छा व्यवहार करो, दया, प्रेम, क्षमा करो। यह सब चीजें हम दूसरों के लिए सीखते हैं लेकिन कभी भी हम लोगों को यह नहीं सिखाया कि खुद को भी क्षमा करना चाहिए, अपना भी सम्मान करना चाहिए, अपने साथ भी प्रेम का व्यवहार करना चाहिए।

यह हमारी शिक्षा प्रणाली में शामिल नहीं किया गया है। हमारी शिक्षा प्रणाली हमें आत्मसम्मान और आत्मा प्रेम के महत्व को नहीं सिखाती है। इसलिए जब कोई हमें यह कहकर अस्वीकार करता है कि हम अनुपयुक्त हैं तो हम अपने आप को अपमानित महसूस करते हैं और बेकार महसूस करते हैं। आत्म पहचान की कमी ही इस दुख का कारण है।

संसार में कोई भी अयोग्य या अनुपयुक्त नहीं होता। हर व्यक्ति में कुछ ना कुछ योग्यता और कुशलता अवश्य होती है। जरूरी नहीं है कि सब में एक जैसी क्षमता  हो। इसलिए हमें उसको ढूंढ कर अपने लिए सही स्थान खोजने की जरूरत होती है जहां हमारी क्षमताओं का मूल्य हो।

तो यदि आपको कोई अस्वीकार करता है तो आपके लिए यह समय है कि आप अपने लिए दूसरा उपयुक्त स्थान ढूंढें।

अस्वीकृति की भावना से निपटने के लिए कुछ सुझाव:

१ आपको अपने दोस्तों को अभिभावक या किसी व्यक्ति से बात करनी चाहिए जो आपकी भावनाओं को समझ सके।

२ जब भी इस तरह से आप का मन उदास हो तो बाजार जाकर कुछ खरीदने की कोशिश करें।

३ प्रकृति के साथ कुछ समय बिताएं। अच्छी जगहों पर जैसे पार्क में या नदी तालाब के किनारे जाएं।

४ अपनी पसंद की कोई फिल्म देखें य टीवी सीरियल देखें। अगर आपको गेम खेलना पसंद हो तो गेम खेलें। अपनी पसंद का कोई ऐसा काम करें जो आपको आप की वर्तमान स्थिति से ध्यान हटाने के योग्य हो। अच्छा होगा कि आप उन चीजों मैं समय बिताए जिनका आपको शौक हो।

५ जिम या योगा जॉइन कर सकते हैं। योगा और  व्यायाम का अभ्यास करने से आपका मूड अच्छा होगा और आप अपने आप में एक अच्छा परिवर्तन महसूस करेंगे। जिस समय आप अपने अंदर अच्छी भावनाओं और अच्छा परिवर्तन महसूस करेंगे उस समय आप अपने दुख की परिस्थिति से निपटने के लिए तर्कसंगत उपाय सोच पाएंगे। तभी आप सोच पाएंगे कि हर एक के जीवन में इस तरह की परिस्थिति कभी ना कभी जरूर आती है और ऐसे समय में उसको चुनौती के रूप में लिया जाना चाहिए ना की विफलता के रूप में।

तिरस्कार और अपमानित होने की स्थिति से निपटने का सामना करना सीखने के लिए एक कहानी यहां प्रस्तुत  की गई है।

एक बार एक राजा और रानी  रहते थे। उनकी तीन बेटियां थी। कुछ सालों के बाद राजकुमारियां बड़ी हो गई और वह विवाह के योग्य हो गई। राजा अपनी तीनों बेटियों को बहुत प्यार करते थे। विवाह के नाम पर राजा का मन उदास हो जाता था कि उनकी बेटियां उनसे दूर चली जाएंगी। इसी बात को सोचते हुए उनके मन में एक विचार आया और उन्होंने अपनी तीनों बेटियों को अपने पास बुलाया और उनसे पूछा,

‘ मेरी प्रिय पुत्रियों, आप लोग कुछ सालों में यहां से विवाह करके दूर चली जाएंगी। इसलिए मैं यह जानना चाहता हूं कि आप लोग मुझे कितना प्यार करते हो?

सबसे बड़ी राजकुमारी ने कहा,’ पिता जी मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं और मैं आपके लिए कई महलों का त्याग कर सकती हूं।’

 राजकुमारी की यह बात सुन कर राजा बहुत प्रसन्न हुए।

 उन्होंने फिर अपनी दूसरी बेटी से भी यही सवाल किया।

दूसरी राजकुमारी ने कहा कि वो राजा के लिए कई राज्यों को त्याग कर सकती है। राजा यह सुनकर अति प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी बेटियों पर बहुत गर्व महसूस हुआ।

 जब तीसरी राजकुमारी से यही सवाल किया गया तो उसने जवाब दिया कि,

‘ पिताजी मैं आपको  दाल में नमक के बराबर प्यार करती हूं। राजा यह सुनकर चौंक गए और उन्हें अपनी बेटी की बात बहुत नागवार लगी। वह क्रोधित हो गए और उन्होंने तुरंत ही अपनी बेटी को राज्य के बाहर निकाल दिया।

राजकुमारी अपने पिता के व्यवहार से चकित रह गई और बुरी तरीके से टूट गई।  वह बहुत दुखी हुई और उसे अपने पिता का यह व्यवहार समझ में नहीं आया। उसको यह नहीं समझ में आया कि उसने क्या गलत कह दिया था कि उसके पिता इतने नाराज हो गए।

राजकुमारी विभिन्न कलाओं में निपुण थी और बुद्धिमान भी थी। उसने अपनी परिस्थिति का विश्लेषण किया और इस इस निष्कर्ष पर पहुंची कि उसके पास अपनी कुशलता और बुद्धिमता के अलावा और कुछ भी नहीं था। उसे सहारा चाहिए था। यह सोच कर किसी अन्य राज्य के राजकुमार से मिलने गई।

राजकुमार को अपनी पूरी कहानी बताई और अपनी पहचान कराई। राजकुमारी की कहानी सुनने के बाद राजकुमार को उससे सहानुभूति हो गई। राजकुमार उसकी सुंदरता और प्रतिभा से आकर्षित हो गए और उन्होंने विवाह का प्रस्ताव रखा।

 राजकुमारी भी राजकुमार की विनम्रता से प्रभावित हो गई। वह विवाह के लिए तैयार हो गई। कुछ दिनों के बाद राजकुमार और राजकुमारी का धूमधाम से विवाह सम्पन्न हुआ।

 राजकुमारी बहुत खुश थी लेकिन उसे अपने माता पिता के व्यवहार से बहुत चोट लगी थी। वह अपने माता पिता को और अपनी बहनों को बहुत याद करती थी। लेकिन उसके मन में यह साबित करने की कामना थी कि वह अपने माता पिता को यह समझा सके कि वह उन से कितना प्यार करती है।

एक साल के बाद जब राजकुमारी एक बेटे की मां बन गई तो उसने इस अवसर  का समारोह मनाने का निश्चय किया। उन्होंने आसपास के राज्यों से सभी राजा और रानियों को आमंत्रित किया और मेहमानों के लिए एक रात्रि भोज की व्यवस्था करी।

 मेहमान उत्सव की सुंदर व्यवस्था को देखकर आश्चर्यचकित हो गए। मेहमानों के लिए एक से बढ़कर भव्य व्यवस्थाएं की गई थी। प्रत्येक अतिथि के लिए अलग से बैठने का इंतजाम था और उनके लिए एक अलग से सहायकों की समूह रखा गया था।

राजकुमारी ने अपने माता पिता को भी आमंत्रित किया था। हालांकि उन लोगों को यह मालूम नहीं था कि यह निमंत्रण उनकी बेटी की तरफ से आया है।

जलसे के समय राजकुमारी के माता-पिता भी  बैठे थे। राजकुमारी उनको दूर से देख रही थी। सभी मेहमानों को स्वादिष्ट भोजन परोसा जा रहा था। खाने में तरह-तरह के व्यंजन बने थे। व्यंजनों की सुगंध से पूरा महल सुगंधित हो रहा था।

 राजकुमारी ने अपने माता पिता के मेज पर केवल दाल परोसने का आदेश दिया था। तो आदेशानुसार उनकी मेज पर विशिष्ट प्रकार की दालें परोसी गईं। राजा ने देखा कि अन्य मेहमानों को विभिन्न प्रकार का भोजन परोसा गया है लेकिन उनकी मेज पर केवल दाल के ही विशिष्ट व्यंजन है। वह इस व्यवस्था से बहुत चकित हुए।

जब उन्होंने खाना शुरू किया तो देखा कि किसी भी व्यंजन में नमक नहीं है। सभी व्यंजन बहुत स्वाद में थे लेकिन बिना नमक के राजा एक हिस्सा भी खा नहीं पा रहे थे। वह अपने आप को बहुत अपमानित महसूस कर रहे थे और बहुत क्रोध भी आ रहा था। उन्होंने देखा कि अन्य राजा अपने भोजन का आनंद ले रहे हैं।

 वह इतनी निराश थे कि उन्होंने यह ध्यान ही नहीं दिया कि मेजबान राजकुमारी उनकी मेज की तरफ आ रही थी। जब राजकुमारी करीब आ गई तो राजा ने उन्हें ध्यान से देखा। और उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह राजकुमारी और कोई नहीं बल्कि उनकी अपनी पुत्री है।

राजा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा,

 ‘पुत्री तुम यहां कैसे’

 राजकुमारी मुस्कुराई और बोली,

यह आमंत्रण मेरी तरफ से ही था। मैं इस राज्य की राजकुमारी हूं। यह सुनकर राजा को आश्चर्य हुआ और बहुत प्रसन्नता भी हुई।

राजा ने पुत्री को आशीर्वाद दिया और फिर उनके खाने में नमक ना होने के कारण कुछ पूछा तो राजकुमारी मुस्कुराई और बोली,

‘ पिताजी यह सभी भोजन बड़ी अच्छी तरह से पकाया गया है लेकिन नमक के बिना यह स्वादिष्ट है। क्योंकि स्वाद के लिए नमक का होना बहुत जरूरी होता है।  क्या आप इस बात के लिए सहमत है?’

राजा आश्चर्य से बोला,

‘ हां मैं सहमत हूं।’

 पिता जी क्या आपको याद है कि आपने मुझे अपने घर और राज्य से बाहर क्यों निकाला था? क्योंकि मैंने आपसे कहा था कि मैं आपको दाल में नमक जितना प्यार करती हूं। आपने मेरी बात समझने की कोशिश नहीं की।  मेरा जवाब बिल्कुल सही था। आप नमक के बिना खाना नहीं खा सकते हैं। आप मेरे जीवन में लिए कितना जरूरी है, इस बात की अनुभूति कराने के लिए मैंने ही आपके खाने से नमक हटवाया था ताकि आप नमक के महत्व को समझ सके।

राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह बहुत दुखी हुआ। वह अपने आप को दोषी महसूस कर रहे थे। उन्होंने अपनी बेटी से उसके लिए माफी मांगी।

 राजकुमारी ने अपने पिता को माफ कर दिया और फिर वह सब एक साथ खुशी से रहने लगे।

इस कहानी से हमें क्या शिक्षा ले सकते हैं?

 इस कहानी से हम यह शिक्षा ले सकते हैं कि जब कोई आपको जीवन में अस्वीकार करता है तो आप निराश मत महसूस करें। उस समय आप यह ध्यान रखें कि आपको अपनी क्षमताओं के लिए अन्य लोगों के प्रमाणीकरण की आवश्यकता नहीं है। आपको राजकुमारी की तरह खुद को नीचा नहीं देखना है। राजकुमारी ने जिस तरह से अपने आप को संभाला और अपनी कुशलताओं और अपनी बुद्धिमता का परिचय देकर खुद को राजकुमार के सामने साबित किया और अपने लिए एक जगह बनाई, उसी प्रकार से आप अपनी क्षमताओं और अपने हुनर  की पहचान करके उसका सम्मान करें।

राजकुमारी ने अपने पिता से बदला नहीं लिया, ना ही उन्हें अपमानित किया। परंतु उनको उनकी गलती का एहसास कराया। इसी तरह से हम सबको किसी से बदला लेने की जरूरत नहीं है बल्कि अपने लिए उपयुक्त स्थान बनाने की जरूरत होती है।

हर परिस्थिति में आपको याद रखना है कि आपकी कुशलताओं का प्रमाणीकरण दूसरों से नहीं  बल्कि  खुद करना है।

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Anshu Shrivastava

Anshu Shrivastava

मेरा नाम अंशु श्रीवास्तव है, मैं ब्लॉग वेबसाइट hindi.parentingbyanshu.com की संस्थापक हूँ।
वेबसाइट पर ब्लॉग और पाठ्यक्रम माता-पिता और शिक्षकों को पालन-पोषण पर पाठ प्रदान करते हैं कि उन्हें बच्चों की परवरिश कैसे करनी चाहिए, खासकर उनके किशोरावस्था में।

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